करवा चौथ विशेष...... चन्द्रमा को छलनी में देखना?

 


करवा चौथ में दो परम्पराओं का प्रवेश बहुत ज्यादा तेजी से हुआ था

एक तो चन्द्रमा को छलनी में देखना और अपने पति का मुख भी छलनी से निहार कर पति के हाथ से ही जल पीकर व्रत खोलना.

जबकि हमेशा देखा था कि घर की महिलाएं घर के आंगन में पूजा करके पूजा छतों इकट्ठी होतीं उगते चन्द्रमा को शीघ्रता से अर्घ्य देती नीचे आकर घर में दूसरे बड़ों के चरण स्पर्श करने के साथ ही अकेले या ओट में मौका पाकर पति के भी पांव छू लेती थीं.

अब गूगल पर करवा चौथ पूजा के फोटो सर्च करे तो एक भी फोटो ऐसा नहीं दिखा जिसमें कि महिलाएं बिना छलनी के सीधे सीधे चन्द्र दर्शन कर रही हों.

जबकि व्रत की कहानी में तो छलनी ही व्रत नष्ट होने का कारण बनी

"""एक सेठ की पुत्री जो कि अपने 7 भईयों की लाड़ली थी , करवा चौथ पर अपने मायके में थीं.... उसने व्रत रखा.... भाई लोग शाम को घर आये.... व्रत की वजह से भूख प्यास से व्याकुल लाड़ली बहिन का मलिन चेहरा देखा.... चंद्रोदय में देरी थी...

एक भईया छलनी दिया लेकर पेड़ पर चढ़ गया... वहां छलनी के पीछे दिया दिखा कर बहिन को चन्द्रमा बता कर अर्घ दिलवा दिया...

चन्द्रमा के धोखे में छलनी को अर्घ देने से व्रत टूट गया....."""


शेष कथा स्थानीय परम्परा के अनुसार अलग अलग हो सकती है लेकिन एक बात कॉमन है कि छलनी को अर्घ देने से व्रत टूट गया

लेकिन करण जौहर यश चौपड़ा ने करवा चौथ को लेकर ना जाने कौन सा शास्त्र पढ़ा कि बिल्कुल अर्थ ही बदल कर रख दिया. 

अरे चलो बजारवाद , शॉपिंग , मंहगे गिफ्ट , ब्यूटी पार्लर का श्रंगार आदि की एंट्री हुई तो हुई लेकिन समझ में नहीं आता कि व्रत का आध्यत्मिक और शास्त्रीय रूप क्यों बदल कर रख दिया

महिलाएं चाहें तो व्रत परायण और चन्द्रमा को अर्घ देने की मूल परम्परा को पुनः वापस ला सकती हैं, बस थोड़ा साहस कर चलनी को हटाना पड़ेगा. 

करवा चौथ ही है जिस व्रत पर चंद्रदेव अपनी उच्च राशि में स्थित होते हैं, छलनी से उनके तेज का लाभ मत गंवाईये. 

उनके दर्शन खुली आँखों से करके उनसे अपनी मनोकामना करना शुरू तो करें, कुछ ही सालों में चलनी गायब हो जाएगी 

डॉ योगिता जौहरी, 

प्राचार्या, उत्कर्ष पब्लिक स्कूल, महू

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