काकोरी कांड ने आजादी की लड़ाई का रुख बदल दिया

डॉ राघवेंद्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

भारत की आजादी में और इसके लिए भारतीय जनमानस को तैयार करने में अगस्त क्रांति का महती योगदान है। यही वह माध्यम है, जिसने आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी और एक प्रकार से अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था। कुछ लोग अगस्त क्रांति को वर्ष 1942 और इसके आसपास प्रचलित आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में ही देखते हैं। फल स्वरूप हमें आजादी दिलाने वाली उन विभूतियों की अनदेखी हो गई, जिन्होंने अपनी युवावस्था अथवा सारी उम्र इस देश पर कुर्बान कर दी। यही नहीं, कईयों ने तो भारत माता को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान कर दिया। इस कटु सत्य को जानने के लिए बतौर उदाहरण हमें 1925 के उस कालखंड को पढ़ना और समझना चाहिए, जब हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से संबंधित 10 क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड घटित करने की संरचना बनाई और भारतीय जनमानस में आजादी की लड़ाई का जुनून पैदा कर दिया था। दरअसल स्वतंत्रता संग्राम का बीज तो इस देश में बहुत पहले ही पड़ गया था। यह बात और है कि हमें आजादी वर्ष 1947 में प्राप्त हो पाई‌। बर्ष 1925 से पहले के हालात कुछ इस तरह के थे कि बहुत से क्रांतिकारी येन केन प्रकारेण हासिल किए गए हथियारों के दम पर अंग्रेजी सरकार की नाक में दम किए हुए थे। विडंबना यह रही कि जब हथियारों और गोला बारूद के लिए पैसा कम पड़ने लगा तो हमारे क्रांतिकारियों ने उन लोगों के यहां डकैतियां डालना शुरू कर दिया, जो आम जनता का खून चूस कर अपनी तिजोरियां भर रहे थे। यह वो लोग थे जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत का संरक्षण मिला हुआ था‌। क्योंकि सामाजिक क्षेत्र में प्रभावशाली यह वर्ग अंग्रेजों का हिमायती बना हुआ था। इन्हें लूट कर क्रांतिकारियों को हथियार तो मिले, लेकिन वह बदनाम भी होने लगे। अनैतिक तरीकों से धन एकत्र करने वाले और अंग्रेजों की तीमारदारी में लगे सरमाएदार उन्हें चोर लुटेरा और डाकू कहकर संबोधित करने लगे। ब्रिटिश साम्राज्य ने भी इन मुनाफाखोरों का साथ दिया। फल स्वरुप क्रांतिकारियों के हिस्से में धन कम रह गया और बदनामी ज्यादा हाथ लगने लगी। इस प्रतिकूल माहौल को देखकर क्रांतिकारियों ने लड़ाई का तरीका तो नहीं बदला, लेकिन धन प्राप्ति के साधन बदलने पर गौर किया। भारी चिंतन मनन के बाद यह तय किया गया कि अब निशाने पर सीधे-सीधे ब्रिटिश हुकूमत और उसका खजाना रहेंगे। इससे प्राप्त धन से हथियार और गोला बारूद हासिल किया जाएगा। जिससे ब्रिटिश हुकूमत की नींवव हिलाई जाएगी। अपनी इस नई और प्रभावी रणनीति को अंजाम देने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 10 क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 का दिन तय किया। इन सभी क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास स्थित काकोरी नामक स्थान पर उस ट्रेन को लूटा, जिसमें सरकारी खजाना जा रहा था। भारी सुरक्षा प्रबंधों के बीच भी हमारे क्रांतिकारी उक्त खजाने को लूटने में कामयाब रहे। यह बात और है कि बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारियां संभवतः इसलिए भी संभव हो पाईं, क्योंकि काकोरी कांड को अंजाम देने वाले क्रांतिकारियों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए भागना उचित नहीं समझा। यह लोग विदेशी सरकार के असली चेहरे को हर मोर्चे पर उजागर करना चाहते थे। अतः एक ओर लड़ाई चलती रही, दूसरी और गिरफ्तारियां होती रहीं और अदालतों में जिरह के माध्यम से तत्कालीन विदेशी हुकूमत के चेहरे से लोकतांत्रिक नकाब हटाए जाते रहे। दुख की बात यह रही कि काकोरी कांड को लेकर भारी पैमाने पर गिरफ्तारियां की गईं। पूरे 10 महीनों तक चली जिरह के बाद अंततः राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को फांसी की सजा सुना दी गई। जबकि सचिंद्र नाथ सान्याल को काला पानी भेज दिया गया। मन्मथ नाथ गुप्ता को 14 साल की कैद हुई। योगेश चंद्र चटर्जी, मुकुंदी लाल, गोविंद चाणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10 - 10 साल की सजा सुनाई गई। विष्णु शरण दुब्लिश, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य को 7 - 7 साल एवं भूपेंद्र नाथ, राम दुलारे त्रिवेदी व प्रेम किशन खन्ना को 5 - 5 साल की सजा सुना दी गई‌। बेशक इस लड़ाई में एक झटके में हमने महान क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर खो दिया। लेकिन काकोरी कांड में ब्रिटिश हुकूमत के उस गर्व को चूर-चूर कर के रख दिया, जिसके तहत वह अपनी सुरक्षा व्यवस्था को अभेद मानकर चल रहा था। जब यह भ्रम टूटा तो आम भारतवासी के मन में यह विश्वास बढ़ा की हम भी उन 10 क्रांतिकारियों की तरह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े तो अंग्रेजी सुरक्षा व्यवस्था को तहस-नहस किया जा सकता है। यही हुआ, अंग्रेजों को लगातार चुनौती देने और भारत माता की स्वतंत्रता हेतु प्राणों को बलिदान करने का यह सिलसिला वर्ष 1947 तक चलता रहा। फल स्वरुप हमें हिंसक और अहिंसक तरीकों से चले निरंतर आंदोलनों के माध्यम से आजादी प्राप्त हो पाई। भारत की आजादी के बाद लिखे गए इतिहास में काकोरी कांड को वांछित स्थान नहीं मिला। लेकिन यह बात अपनी जगह सही है कि इसी काकोरी कांड ने आजादी की लड़ाई को पैनी धार दी, जिसके चलते स्वतंत्रता के आंदोलन को और तेज दिशा दी जा सकी। 



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