पानी या पसीना किससे नहा रहें हैं आपके बच्चे ? धार

 आशीष यादव, धार 

श्रमशील और साहसी व्यक्तित्व हमेशा पसीने से नहाकर, वर्तमान स्थिति को पीछे छोड़ते ,हुए हमेशा आगे बढ़ने के लिए कड़ी मेहनत करता है।पसीने से नहाने वाले हमेशा एक अलग इतिहास रचते आए हैं ।

आईए इस बात को हम विल्मॉ रूडोल्फ़ के जीवन से समझतें हैं । 1940 में टेनेसी अमेरिका में अश्वेत परिवार में जन्मी,विल्मा रूडोल्फ ने ढाई वर्ष की उम्र में पोलियो के चलते अपने पैरों की ताकत गँवा दी। विल्मा के पिता कुली और मॉं नौकरानी का काम करती थीं ।उस समय अमेरिका में अश्वेतो के अस्पताल अलग हुआ करते थे ।इलाज के लिए इनकी मॉं इन्हें 50 मील दूर लेकर जाती थी ।शुरूआती इलाज के बाद 5 वर्ष की उम्र में कैलीपर्स के सहारे विल्मा ने चलना शुरू किया। डाक्टरों ने विल्मा की मॉं को बताया कि आपकी बेटी पूरे जीवन भर बिना सहारे के चल नहीं पाएगी । मॉं ने यह सुनकर अपनी बेटी को हौंसला दिया और कहा कि तुम यदि जी-तोड़ मेहनत करोगी तो चलना तो दूर एक दिन सबसे बड़ी धाविका भी बन सकती हो । 

अपनी मॉं की इस बात को मन में बैठाकर विल्मा ने 9 वर्ष की उम्र से बिना सहारे के चलने की कोशिश करने लगी । इस कोशिश में बह सैंकड़ों बार गिरी , पर कोशिश करना बंद नहीं किया । और दो वर्ष बाद वह बिना सहारे के चलने लगी। जब यह बात विल्मा रूडोल्फ़ के डॉक्टर को पता लगी , तो वो उसे चलते हुए देखने के लिए आए ।और उसको दौड़ने का सपना देकर चले गए । फिर विल्मा ने पसीने से नहाना शुरू किया । सबसे पहले अंतरविद्यालयीन प्रतियोगिता में 8 बार असफल होने के बाद 9 वीं बार सफल हुई ।फिर 21 वर्ष की उम्र में 1960 में हुए रोम ओलंपिक में उस समय की प्रसिद्ध धाविका जूता हेन को 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ की कुल तीन स्पर्धाओं में हराकर 3 स्वर्ण पदक अपने नाम कर पहली अमेरिकन महिला बनीं ।इस अश्वेत धाविका का स्पर्धा से लौटने पर अमेरिका में ज़बर्दस्त स्वागत किया गया ।

जरा सोचिए कि पोलियो से ग्रस्त, गरीबी से त्रस्त विल्मा ने पसीने से नहाकर इतिहास रच दिया।हम सभी जानते हैं कि,जन्म लिए बच्चे एक अनगढ़ पत्थर की तरह होते हैं ।उसे जैसी छैनी और हथौड़ी से गढ़ा जाएगा ,वैसा ही उनका व्यक्तित्व बन जाएगा।आज अभिभावकों के एक या दो ही बच्चे हैं ।ज्यादा जतन से पालने के चक्कर में,हम उनकी डिमांड पूरी करने में ही लगे रहते हैं । ज़रा उन्हें पसीने से नहाने की आदत भी डालिए ,क्योंकि उनके शिल्पकार तो आप ही हैं ।

लेखक- नागेश्वर सोनकेशरी ने पूर्व में अद्भुत श्रीमद्भागवत ( मौत से मोक्ष की कथा ) की रचना भी की है । 



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