लहसुन की फसल लगाकर किसान हो गए हैं बेहाल का अब नहीं करेंगे इन फसलो की खेती, किसानों को रुला रहा लहसुन केसी खेती को लाभ का धंधा बनायेगी किसान

 आशीष यादव,धार

एक तरफ सरकार किसानों को परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है. दूसरी तरफ किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने में नाकाम नजर आ रही है. सरकार किसानों को लहुसन की खेती करने के लिए काफी प्रचार प्रसार किया. जब किसान परंपरागत खेती छोड़ लहसुन की खेती करने लगा, तो उसे उसकी फसल आधी लागत भी हासिल नहीं हो रही है. परेशान किसान अब लहसुन की खेती करने से तौबा कर रहा है वही दूसरी ओर सरकार किसानों को खेती से लाभ का धंधा बनाने की बात करती है वहीं जमीनी स्तर पर किसान अपना खून पसीना बहाकर उत्पादन करता है खेत से घर व घर से मंडी में जाते-जाते उसकी उपज का भाव पानी के दाम बीकता है जिससे किसान उसकी लागत भी अपने हाथ में नहीं आती है जिससे किसान दुःख से टूट जाता है वही इस बार अधिकांश किसान इस फसल से तौबा कर करने की बोल रहे है बता देकि लहसुन के भाव न मिलने से किसान इन दिनाें निराशा है। जिन किसानों ने लहसुन-प्याज की खेती की है,किसानों के लिए इस बार लहसुन की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। लहसुन की पैदावार आते ही दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। इससे किसान खासे परेशान है। लहसुन के मौजूदा भाव में लागत भी निकलना मुश्किल हो गई है। लहसुन को किसान ज्यादा समय तक स्टॉक भी नहीं कर सकते हैं। भीषण गर्मी में खराब होने लग जाता है। उधर पुना मंडी में एक किसान का बढिय़ा गुणवत्ता का लहसुन 1.50 रुपए किलो बिका है, इसकी बिक्री पर्ची वायरल हो रही है। किसान केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री पर तंज कस रहे हैं। वहीं किसानो की फसल को लगता मूल्य तो दिलवा दो। मोदी जी खेती को लाभ का धंधा बना दो।

मंडियों में 1 रुपए से 15 रुपए किलो बिक रहे हैं

बुवाई के समय लहसुन के दाम 8 से 10 हज़ार रुपए किलो चल रहे थे, इस कारण किसानों की अच्छी बुवाई की थी, लेकिन अब दाम काफी गिर गए हैं। मंडियों में 1 रुपए से 15 रुपए किलो बिक रहे हैं। औसम दाम 8 रुपए किलो रह गए है। किसानों ने बताया कि जब बुवाई की उस वक्त लहसुन में जोरदार तेजी थी। अब जब फसल घर में आई तो लहसुन में मेहनत भी नहीं निकल पाने से किसान परेशान हो रहे। किसानों के कर्ज के बोझ की वजह किसानों को लहसुन प्याज़ की फसल में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। लहुसन की बुवाई के बाद जमीन में लगातार बीमारियां व नमी होने के कारण इस बार लहसुन का उत्पादन भी कम हुआ है। अब दामो में कमी होने के कारण किसान सदमें में है। किसानों ने बताया कि मौजूदा भावों में बेचने पर घाटे का सौदा साबित हो रहा है। इस कारण मण्डियों में लहसुन की आवक बहुत अधिक हो रही है।


लहसुन खराब होने का डर

किसान खेतो से लहसुन निकाल कर वहीं सूखा रहे थे लेकिन इस बार भीषण गर्मी का दौर जल्दी शुरू होने से लहसुन खराब होने का डर किसानों को सत्ता रहा था जिसके चलते लहसुन के भंडारण के लिए न्यूनतम तापमान 30 से 35 डिग्री अनुकूल रहता है। लेकिन इस वक्त पारा 40 से 45 डिग्री के ऊपर जाने की वजह किसानों की ङ्क्षचता बढ़ रही है। इस वक्त किसान घरों पर कूलर पंखा लगाकर लहसुन के रखने के बंदोबस्त करने में जुटे हुए है।बुवाई के वक्त खरीदा 8 से 10 हजार रुपए किलो किसानों ने रबी सीजन में लहसुन की बुवाई की तैयारी में लगें उस वक्त लहसुन के दाम 80 से 100 रुपए किलो पहुंच गए थे। किसानों ने बताया कि उस वक्त अच्छे दामों की उम्मीद में बंपर बुवाई कर दी। परन्तु अब जब फसल आते ही दाम औधे मुंह आगे गिरे है। इस मण्डियों में लहसुन का भाव 1 रुपए से 15 सो रुपए क्विंटल चल रहा है।


घरों में रखा, भाव आए तो बेचे

लहसुन उत्पादक किसानों ने बताया उनके द्वारा लहसुन को रोक रखा है। इस वक्त मण्डियों में भाव नही मिलने की वजह से घरों गोदामों खुले आसमान के नीचे लहसुन को रख रखा है। जब अच्छा भाव आएगा तब लहसुन को बेचेंगे। वहीं सरकार द्वारा निर्यात पर रोक लगाई है जिसके कारण लहुसन व अन्य फसलों का दाम नहीं मिल रहा है जिसके कारण किसान काफी नाखुश है वह सरकार अगर निर्यात खोलती है तो लहसुन की फसलों के भाव भी चमकेंगे व किसानों को फायदा होगा।

 

खराब मौसम और कम दाम की मार से कैसे उबरेंगे किसान

इस साल लहसुन की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान हो रहा था इसकी वजह से क्षेत्र के किसान बेहद परेशान हैं. पिछले साल जहां लहसुन की खेती में किसानों को अच्छा खासा मुनाफा हो जाया करता था. वहीं इस साल मौसम की बेरुखी के चलते किसानों की लागत तक नहीं निकली ओर. ऊपर से कम दाम की मार. इन दोनों वजह से इस साल किसानों को लहसुन की खेती में काफी नुकसान होने की उम्मीद बताई जा रही है.




यह इस बार लहसुन में लागत 

सबसे पहले किसान लहुसन को धूप लगाकर फोड़ते हैं। एक बीघा में दो क्विंटल लगती है। इसको किसान से खरीदी 8 से 10 हजार रुपये का बीज लाए ओर उसको 300 रुपए रोज की मजदूरी में चौपाई की किसान शुरुआत से लेकर उसे निकालने तक कुल खर्च इस बार 40 हजार रुपये हुआ जो कि एक बीघा में लगता है। एक बीघा में किसान 15 से 18 क्विंटल तक उत्पादन करते हैं मगर आज के मंडी भाव 1 रुपए से 2000 हजार रुपये क्विंटल भी लहसुन किसान बेचे तो उसे उसे हजारों रुपए का घाटा है। साथ ही उसे मंडी ले जाने व खेतों से लाने का किराया अलग है।इसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. किसानों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसकी लागत कैसे निकलेगी.


यह था रकबा

   वर्ष               रकबा                   उत्पादन

  20-21         15। ,603 हजार       1,61,701 मे.ट   

  21-22         16382 हजार          1,69,786 में.ट

वहीं इस बार लहुसन के साथ रकबे के साथ उत्पादन भी बड़ा है।


कुछ हाथ नही आ रहा

कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे जब किसानों के घर में फसल पककर आती है और जब बाजारों में सरकार बाहर से माल बुलवा लेती है या निर्यात पर रोक लगा देते है और किसानों का फसल गोदामों में रखी रह जाती है महीनो तक भाव बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं।लेकिन, इस साल भी लग रहा लहसुन के भाव नहीं मिलने वाला है। अभी 100 से 1500 रुपये क्विंटल के हिसाब से बिक्री हो रही है तो कैसे माल मंडी ले जाएं।     – रतन लाल यादव, किसान, अनारद


भाव ही नहीं हैं क्या करें –

इस बार लहसुन साफ करके रख ली है। अगर भाव बढ़ेंगे तो मंडियों तक ले जाएंगे। क्या करें लहसुन के भाव ही नहीं हैं। लगातार दो सालों से हमें लहसुन की फसल में घाटा ही उठाना पड़ रहा है। अब मंडियों में लहुसन की आवक बढ़ रही है और निर्यात नही होने से भाव भी नही है और किसानों के पास पुरानी लहुसन रखी है उसका तो भाव ही नहीं मिल रहा है।    – शांतिलाल चौधरी, किसान, सकतली

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