*धरती माँ की प्यास बुझाने के लिए महु में होंगा हलमा*

सूखे की गम्भीर समस्या से जूझते आदिवासी पांच किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर ग्राम पिपलीया के आदिवासीयो ने संकल्प लिया श्रमदान करके अपनी समस्या का समाधान स्वयं करेगे और अपने पुरखों की महान भीली परम्परा हलमा को किया जागृत।हलमा परम्परा के माध्यम से जनभागीदारी करके तालाबों के गहरीकरण का काम करेगे, जिससे बारिश के पानी का संग्रहण किया जा सके । एक महान भीली परम्परा है हलमा जिसका अर्थ है निःस्वार्थ भाव से मानव कल्याण के लिए एक दूसरे का सहयोग करना और परेशानी से बाहर निकलना।



 प्राचीन काल से ही आदिवासी समाज में प्रत्येक कार्य चाहे वह कृषि का काम हो, शादी ब्याह या कोई अन्य काम सभी आपसी सहयोग से हलमा करके पूरे किए जाते हैं । हलमा में आकर काम करने वाले कोई शुल्क नही लेते है ,अपना भोजन भी साथ लेकर आते और काम करके चले जाते है। ऐसी परमार्थी परम्परा हलमा को पहली बार इंदौर जिले की ग्राम पंचायत पिपलीया के डमालि गाँव में 22 मई को सुबह 9 बजे कीया जाएगा। जिसमे सैकड़ो आदिवासी समाज के लोग गेती, फावड़ा लेकर हलमा करेगे और तालाब का गहरीकरण करेगे । 




 प्रकृति पूजक आदिवासी हलमा में भागीदारी के लिए गाँव के घर घर जाकर निमंत्रण दे रहे है। परमार्थ की महान भीली परम्परा के साक्षी बनने इंदौर व महु नगर के सभी सामाजिक, वरिष्ठ गणमान्य, प्रशासनिक अधिकारी, वन अधिकारी, डॉक्टर,इंजीनियर, पत्रकार , शैक्षणिक संस्थान ,एवं विशेष अतिथि के रूप में पर्यावरणविद, जल, जंगल, जमीन,जन,और जानवर के सवंर्धन में झाबुआ में विगत 20 वर्षों से शिवगंगा ग्रामीण विकास परिषद को संचालित करने वाले माननीय पद्मश्री महेश शर्मा जी ग्रामीणों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनके बीच उपस्थित होंगें। 




स्वाभीमानी, स्वावलंबी और समृद्धशाली गाँवो से ही देश का अक्षय विकास संभव है और इस विकास की सम्भावनाये हलमा जैसी श्रेष्ठ परम्परा में है। इस परंपरा के माध्यम से पिपलीया ग्रामीण युवा परमार्थ और स्वाभिमान के बीज बो रहे है, जिससे समाज में सामूहिकता, परमार्थ,स्वाभिमान जैसे संस्कारो का पुनः जागरण होंगा।

टिप्पणियाँ
Rajesh Jauhri ने कहा…
Excellent Work being undertaken by Dr Deepmala Rawat