आज प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में जो संबोधन दिया, उससे स्पष्ट हो गया कि देश के मूड को उनसे बेहतर कोई नहीं समझता है। उन्होंने शुरू किया इससे कि कैसे कोरोना के खिलाफ भारत ने जंग जीती और देश में आ रहे रिकॉर्ड निवेश, विदेशी मुद्रा भंडार के रिकॉर्ड स्तर और स्टार्टअप्स के उदय की बात की। आँकड़े गिनाए। फिर विपक्षियों के प्रपंच पर धावा बोला और उनकी कह के ले ली। एक नेता के लिए ज़रूरी होता है कि वो हर मुद्दे पर पूरी तैयारी कर के आए और मोदीजी ने भी ऐसा ही किया। पिछले 3 महीने के प्रपंच पर 1 घण्टे में पानी फेर दिया।
सबसे बड़ी बात थी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को प्रथम प्रधानमंत्री कहना। वो 'आज़ाद हिंद फौज' की प्रथम सरकार के नेतृत्वकर्ता थे कई देशों ने उनकी सरकार को मान्यता दी थी। पश्चिम बंगाल में चुनाव आ रहे हैं, उस परिदृश्य में भी किसी बंगाली विभूति के साथ इतिहास में न्याय होना वहाँ की जनता को पसंद आएगा। ध्यान रखिए, नेताजी की फाइलें जब डिक्लासिफाई कि गई थीं, तब कोई चुनाव नहीं था। PM ने INA का स्थापना दिवस मनाया था और वयोवृद्ध सेनानियों को सम्मानित किया था। वो हमेशा से इस मामले में मुखर रहे हैं।
दूसरी बड़ी बात थी कि वो 'FDI (Foreign Destructive Ideology) को समझते हैं। रिहाना, मीना हैरिस, ग्रेटा थनबर्ग और मिया खलीफा जैसों को खरीद कर उनसे कैसे भारत विरोधी षड्यंत्र में काम लिया जाता है, PM की इन पर नजर है। नजर है, इतना बहुत है। याद कीजिए, असम की जनता को उन्होंने याद दिलाया था कि कैसे उस खलिस्तानी टूलकिट में योग और चाय को लेकर भारत की छवि बदनाम करने की बातें की गई हैं। चाय का असम एक बड़ा उत्पादक है और वहाँ कइयों की जीविका का साधन भी।
तीसरी और सबसे मजेदार है कि उन्होंने एक और नया शब्द ईजाद किया - 'आंदोलनजीवी'। ये सोचने वाली बात है कि मुट्ठी भर लोग कभी किसान, कभी अल्पसंख्यक, कभी छात्र, कभी राजनेता, कभी समाजसेवी और कभी वकील कैसे बन जाते हैं। जिन्हें हर उस चीज से दिक्कत है जो मोदी सरकार करती है, मतलब सारी गड़बड़ इन्हीं में है। ये उस प्रकार के परजीवी हैं, जो मनुष्य के शरीर में रह कर उसका स्वास्थ्य खराब करते हैं। इनकी एक ही वैक्सीन है - राष्ट्रवाद। हम जब इनके प्रपंच की पोल खोलते हैं, ये खूब बिलबिलाते हैं।
चौथा और ये मीम मैटेरियल भी है, वो है 'नाराज फूफा' वला बयान। उन्होंने विपक्षी नेताओं से कहा कि देश में विरोध करने के लिए हजारों मुद्दे हैं, तब भी वो ऐसे अलूलजलूल उठा लेते हैं। याद कीजिए, राफेल के समय कैसे 'चौकीदार चोर है' इन पर ही भारी पड़ा था। ये ऐसे फूफा हैं, जिन्हें मोदी के छींकने से भी परेशानी है। उससे भी 'लोकतंत्र की हत्या' हो जाती है। ये 'नाराज फूफे' ये कभी नहीं बताएँगे कि दिक्कत क्या है, जैसे कृषि कानूनों के मामले में हो रहा - लेकिन विरोध करेंगे। बिना जाने, बिना समझे।
पाँचवाँ और सबसे महत्वपूर्ण है कि उन्होंने कैसे डेरेक ओब्रायन को धोया। वो 'Indimidation' और 'FOE की हत्या' की बातें करते हुए बड़ी-बड़ी हाँक रहा था। PM ने कह दिया कि ऐसा लगा जैसे बंगाल की बात कर रहे हों, क्योंकि वहाँ 24×7 यही सब होता रहता है। आप देखिए, देश के समर्थन में ट्वीट करने पर सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसी हस्तियों के खिलाफ जाँच होगी। इन पर आपने एक बार भी 'लोकतंत्र की हत्या' गैंग का बयान सुना? लेकिन, जब कोई देश के टुकड़े करने की बात करेगा और उस पर एक FIR भी होगी तो ये एक्टिव हो जाएँगे।
कहने का अर्थ है कि सोशल मीडिया से लेकर विरोधों तक, ऐसे आंदोलनों से लेकर विपक्ष की नेतागिरी तक, उन्हें सब पता है। कैसे आगे बढ़ना है, ये भी। MSP पर खरीद की मात्रा हो या किसानों को योजनाओं का लाभ देना, जब हर मामले में आँकड़े मोदी सरकार के पक्ष में है तो सच्चाई के इस रास्ते पर क्या डरना! आपातकाल लगाने वाले लोकतंत्र की बात करें, करोड़ों के हत्यारे माओ को पूजने वाले अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करें और 'रिहाना वाओ' करने वाले 'अम्बानी हाय-हाय' करें तो गड़बड़ तो जरूर है।
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