प्रशासन ने अडगे लगाए तो भी रखेगें हिंगोट युद्ध की परम्परा को कायम, कहा गौतमपुरा-रूणजी के लोगों ने

*शोसल मिडीया पर नागरिको का वार हिंगोट नही तो नगर परिषद चुनाव में वोट नही।* 


 


गौतमपुरा। गौतमपुरा के जाबाज योध्दा दीपावली के अगले दिन पडवा की शाम को आयोजित अति प्राचीन पंरपरा हिगोंट (अग्निबाण) युध्द को लेकर इस बार गौपनीय तरिके से पुर्ण रूप से तैयार हो चुके है। शासन प्रशासन का जो भी आदेश मिले हिग्गोट युध्द की पारम्परीक रूप से इस वर्ष भी गौतमपुरा मे आयोजित कीया जाएगा । वेसे तो प्रतिवर्ष हिंगाौट बनाने का कार्य नवरात्री से गौतमपुरा रूणजी के कई घरो मे प्रारम्भ हो जाता है पर इस वर्ष हिंगोट बनाने का कार्य कीसने, कब, और काहा कीया ये कोई बता नही रहा पर कुल मीलाकर तुर्रा व कलंगी दोनो दलो के यौध्दाओ ने हिंगोट युध्द की तैयारीया पुरी करली है। कोरोना सक्रमण के चलते प्रशासन द्वारा इस युध्द बनाम खेल को रोकने को जरूर कहा है परतु इस परम्परा को निभाने के लिए दोनो दलो के लोग आतुर है। इस परंपारगत युध्द मे न किसी की हार होती हे और न कीसी की जीत बस ये युध्द भाई चारे का युध्द होता हे जहाँ तुर्रा (गौतमपुरा) और कलगी (रूणजी) नाम दो दल अपने पुरवजो द्वारा दि गई इस पारंपरीक धरोहर को जिवित रखने के लिए 1 माह पुर्व नवरात्री से ही हिंगोट बनाने की प्रक्रीया मे जुट जाते हे और दीपावली के अगले दिन पडवा को अपनी इस अद्वितीय परंपरा को जिवित रखते है।


 


 *प्रषासन की सख्ती के कारण सीमीत मात्रा मे तैयार हो रहे हे हिंगोट* 


गोरतलब हे की पिछले 10 वर्षो से प्रषासन की सक्ती के कारण हिंगोट युध्द मे उतरने वाले योध्दा सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहे हे इस बार भी हिंगोट तैयार करने वाले योध्दा भी केवल युध्द मे लडने तक के ही हिंगोट तैयार कर रहे है। उल्लेखनीय यह हे पहले प्रषासन की सक्ती नही होने तक गली मोहल्लो व घर घर मे भी हिंगोट तैयार करते लोग देखे जा सक्ते थे। परंतु अब केवल योध्दा ही सीमीत मात्रा मे हिंगोट तैयार कर रहै है।


 


 *पुर्व विधायक व विधायक मील कर गौतमपुरा की इस परंपरा को बरकार रखवाए।* 


तुर्रा और कलंगी दोनो दलो के योध्दाओ का कहना है की हिगोट युध्द रूणजी गौतमपुरा वासियो की सदियो पुरानी परम्परा है जो उनके पुर्वजो ने उन्हे दि हे एसा आयोजन पुरे विश्व मे सीर्फ गौतमपुरा नगर मे ही देखा जाता है जेसे जेसे इसका प्रचार बढता गया इस आयोजन को नकारातमक दृष्टि से देखा गया कईयो ने तो इसे खुनी खेल का नाम तक दे डाला जो गलत है हिगोट कीसी को मारने या चोट पहुचाने के लिए नही खेला जाता है बस परम्परा के लिए खेला जाता है इसमे न किसी की हार होती हे और न कीसी की जीत यह तो एक परम्परा की धरोहर हे जिसको खेलने का हुनर सीर्फ यही के नागरिको है। साल दर साल इसे बंद कराने की मांग चलती गई पर कभी इस के लिए सकारत्मक सोच कीसी ने नही दिखाई जिसमे एक अच्छे स्टेडीयम का निर्माण कर इसका आयोजन कीया जाए और दर्शको के बेठने व खडे होने के स्थान के आगे बारीक जालीया लगा दि जाए योध्दाओ व ग्रामीणो का कहना हे की जिस तरह 2010 मे काग्रेस भाजपा ने एक जुट होकर यह आयोजन करवाया था बस उसी तरह इस वर्ष भी पुर्व विधायक मनोज पटेल व वर्तमान विधायक विशाल पटेल मिलकर इस परम्परा को बरकार रखवाए और सुरक्षा के कडे इन्तेजाम करवाए ।


 


 *साल दर साल युध्द मे उतरने वाले योध्दाओं की बड रही हे मुशकीले ।* 


हिंगोट युध्द मे उतरने वाले 100 से ज्यादा योध्दाओ को हर वर्ष कई परेशानीयो से जुझना पडता है जेसे जेसे इस परम्परा का प्रचार बड रहा हे वेसे वेसे योध्दाओ कि परेशानीया भी बड रही हे सन् 2010 मे तातकालीन कलेक्टर राघवेन्द्र सिह ने पुरे नगर को इस युध्द को बंद करने की चेतावनी दे दी थी जिस को लेकर पुरे नगर के साथ काग्रेस , भाजपा के सभी नेता व तातकालीक विधायक सत्यनारायण पटेल और पुर्व विधायक मनोज पटेल भी एक जुट हो गए और कलेक्टर को साफ साफ शब्दो मे इस परंपरा को बंद नही होने की बात कही थी इथर कलेक्टर के आदेश पर नगर मे हिंगोट की छापा मारी हुई जिस मे 1 ट्राली भर के हिंगोट पुलिस ने जब्त करलीए परंतु नगर वासियोने गुप्त रुप से ताबड तोड पुनः हिंगोट को बानाया और पुरे नगर की एक जुटता ने इस परंपरा को जिवित रखा और कलेक्टर को हार माननी पडी वही सन् 2015 मे एडव्होकेट दिपक बोरसे द्वारा युध्द को बंद करने के लिए कोर्ट मे जनहीत याचीका लगाई गई युध्द देखने स्वयं जज मोके पर पहुचे और कोर्ट ने विभीन्न शर्तो के साथ परंपरा को निभाने की बात कही 2018 और 2019 मे प्रशासन द्वारा दर्शको की सुरक्षा के पुखते इनतेजामत कीये कडी और कडी सुरक्षा के बीच युध्द बनाम खेल का आयोजन हुवा इन सब उलझनो के बाद अब कोरोना सक्रमण का डर दिखा कर इस बार प्रशासन इस परम्परको बंद कराने की सोच रहा है । इधर योध्दाओ का कहना है यह परम्परा तो हो कर रहेगी जब नेताओ की रेली मे हजारो की भीड की परमिशन मिल सकती है तो यहां तो परम्परा को नीभाया जा रहा है । कुछ योध्दाओ का कहना हे यह खेल तो वेसे भी शोसल डिस्टीन्स से खेला जाता है जहा दोगज की दुरी तो क्या दस गज की दुरी पर योद्धा खड़े रहते है। वही तुर्रा व कलगी दोनो दलो के यौध्दाओ का कहना यह भी है की इस आयोजन का न कोई आयोजक है और नही कोई प्रायोजक यह तो सदियो पुरानी परमपरा है जिसका हम बशीन्दे निर्वाह कर रहे है हम यहा आने के लिए किसी को निमत्रण नही देते सब अपनी स्वेच्छा से बीन बुलाए आते है । 


 


 *क्या हे हिंगोट युध्द का इतिहास।


हिंगोट युध्द के इतिहास के बारे मे जाना जाऐ तो बस इतना ही जान सकेगे कि यह गौतमपुरा व रुणजी नगर वासियो की सदियो पुरानी सांस्कृतिक परम्परा हे जिसे यंहा के नागरिक अपने पुर्वजो की धरोहर समझ कर प्रति वर्ष इस परंपरा का निर्वाह करते है। 82 वर्ष की उर्म के हो चुके देवजी चौधरी का कहना हे कि हमारे दादा ने हमे बताया था की उनके दादा के समय से वह इस युध्द का खेल देख रहे और कब से खेल रहे हे यह बात तो उन्हे भी नही पता थी वही उनका यह भी कहना था की युध्द को हम क्यो खेलते हे किस लिए खेलते हे इस का कारण भी पुर्वजो के साथ ही चला गया। 


 


 *क्या हे हिंगोट।* 


हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड पर पेदा होता है। जिसे यहा के नागरिक जंगल मे पहुचकर पेड से तोडकर लाते है नीबु आकारनुमा फल जो उपर से नारियल समान कठोर व अंदर खोखला गुदे से भरा हुवा जिसे उपर से साफ कर एक छोर पर बारिक व दुसरे पर बडा छेद कर दो दिन धुप मे रखने के बाद स्ंवय योध्दा द्वारा तैयार किया गया बारूद भरकर बडे छेद को पीली मिटटी से बंद कर दुसरे बारिक छेद पर बारूद की टीपकी लगाने के बाद निषाना शीधा लगे इस लिए हिंगोट के उपर आठ इंची बास की किमची बांधदी जाती है इन सभी कार्य मे यौध्दा अभी जुटे हुवे है। हिंगोट युध्द के दिन तुर्रा व कंलगी दल के यौध्दा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले हाथ मे जलती लकडी लेकर दोपहर दो बजे बाद हिंगोट युध्द मैदान की और नाचते गाते निकल पडते है। मैदान के समीप भगवान देवनारायण मंन्दिर मे दर्षन के बाद मैदान मे आमने सामने खडे हो जाते है शाम पंाच बजे बाद संकेत पाते युध्द आंरभ कर देते है करीब दो घंटे तक चलने वाले इस युध्द मे सामने वाले यौध्दा द्वारा फेका गये हिंगोट की चपेट मे आये यौध्दा का झोला जलता है कई यौध्दा घायल भी होते वही पथभ्रष्ट हिंगोट दिषाहीन होकर दर्षकांे मे घुस ंजाता है तो दर्षक भी चोटिले हो जाते है वही रात्रि मे हिंगोट से निकलने वाली अग्नि रंेखाये आसमान मे खीच जाती है जो मनोहरी दृष्य पैदा करती है।


 


 *इनका कहना है* 


शासन की गाइड लाइन को देखते हुवे व कोरोना सक्रमण को ध्यान मे रखते हुवे कीसी भी तरह का बडा आयोजन नही हो सकता है इस लिए इस वर्ष हिंगोट युध्द की परम्परा नही होगी ।-बजरंग बहादुर सिंह, तहसीलदार


 


कोरोना सक्रमण के चलते हिंगांट युध्द के लिए अभी तो कोइ आदेश प्राप्त नही है । आगे चलकर शासन प्रशासन द्वारा जोभी आदेश दिए जाएगे पालान कराया जाएगा - रमेश चन्द्र भास्कर,  थाना प्रभारी





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