पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ शिक्षक भी हैं कोरोना वारियर, पर अब तक शिक्षकों को नहीं मिला यह तमगा

 कोरोना वायरस की महामारी जैसे-जैसे अपना विकराल रूप इस देश में लेती जा रही है वैसे-वैसे समाज के हर वर्ग को इसमें जुड़ना पड़ रहा है। पर जब भी हम इस महामारी के लिए समाज में काम करने वाले लोगों के बारे में बात करते हैं तो नाम आता है फ्रंट लाइन पर उपस्थित पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के लोगों का। यह बात सही भी है कि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के लोग 24 घंटे इस काम में लगे हैं और जितनी रिस्क उन लोगों की है उतनी रिस्क समाज के किसी भी वर्ग की नहीं है।


लेकिन अगर इस बीमारी की बात की जाए तो इस बीमारी में यह जरूरी नहीं है कि कोई इंसान लंबे समय तक किसी संक्रमित व्यक्ति से संपर्क में रहेगा तो ही संक्रमण उसको लगेगा। इसमें तो कुछ सेकंड की चूक या यह कहें कुछ सेकंड का संपर्क भी अगर हो गया तो भी सामने वाला व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।


लगभग एक सप्ताह से बहुत से शिक्षकगण कोरोना वायरस की ड्यूटी में सतत लगें हुए हैं। लेकिन उन लोगों की गिनती कोरोना वारियर्स में नहीं की जा रही है। जिन विभागों के अधिकारी, कर्मचारियों की ड्यूटी करोना वारियर्स मानकर लगी है, उनको आपदा प्रबंधन के तहत सुविधा प्रदान की जाएगी जैसे पचास लाख का बीमा, निशुल्क इलाज आदि।  शिक्षक भी फ्रन्ट पर है लेकिन अभी तक विभाग में किसी ने उनके लिए आवाज नहीं उठाई है। उनकी यूनियन के नेता अपनी नेतागिरी की दम पर अपनी ड्यूटी केन्सल करवा कर ही अपने आप को बेेेहद सफल मान रहे हैं और लाँकडाउन का आनंद ले पानेे को ही अपने जीवन की सार्थकता मान रहे हैं।


अखबारों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओ के फोटो सर्वे करते दिखाई देते हैं  पर शिक्षकों की सुध लेने वाला कहीं कोई नहीं दिख रहा है।


इस समाचार को प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि जिस तरह से पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वारियर माना जा रहा है, उसी तरीके से उन शिक्षकों को भी कोरोना वारियर माना जाए जो विभिन्न तरह के सर्वे और अन्य ऐसे कर कार्यों में लगे हैं जिनके लिए सीधे फील्ड में जाना पड़ता है और लोगों से मिलना पड़ता है।



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