अपने को दोहराता इतिहास-- राजमाता ने गिराई थी डीपी मिश्र की कांग्रेस सरकार

●अपने को दोहराता इतिहास-- राजमाता ने गिराई थी डीपी मिश्र की कांग्रेस सरकार


●मध्य भारत के राजप्रमुख थे जीवाजी राव सिंधिया


●पं नेहरु की पहल पर राजनीति में आयीं विजयाराजे


कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को कभी न कभी दोहराता ज़रूर है। ग्वालियर के भूतपूर्व सिंधिया राजघराने का कांग्रेस पार्टी के साथ रिश्ता इतिहास दोहराने की अजब गजब नजीर बन गया है। आज़ादी के बाद से यह तीसरी बार है जब किसी सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़ा है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफे के मौके पर आइये एक नज़र इतिहास के झरोखे से झांक लिया जाये।


● जीवाजी राव बने पहले राजप्रमुख


आज़ादी के बाद सिंधिया रियासत के विलय के बाद पं जवाहरलाल नेहरु की पहल पर तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया मध्य भारत राज्य के "राज प्रमुख"
नियुक्त किये गये थे। इंदौर के होल्कर नरेश यशवंतराव उप राज प्रमुख बनाये गये थे।
कालांतर में यही राज प्रमुख का पद "राज्यपाल" कहलाया। तब नेहरु जी की ही पहल पर महारानी विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी।


● पहली बार 1957 में सांसद बनी विजयराजे


विजयाराजे ने पहला चुनाव गुना संसदीय सीट से लड़ा और हिन्दू महासभा के विष्णुपंत घनश्याम देशपांडे को करारी मात दी।विजयाराजे को एक लाख 18 हजार,578 वोट मिले जबकि देशपांडे को मात्र 58 हज़ार 521वोट।
अगले आम चुनाव 1962 से पहले 17 जुलाई 1961को जीवाजी राव सिंधिया का निधन हो गया। तब विज्याराजे राजमाता कहलाईं।
वे शोक के कारण चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी लेकिन पं नेहरु को समझाइश पर वे तैयार हो गईं।
वे सिर्फ परचा भरने महल से निकली और चुनाव जीत गईं।उन्होने जनसंघ के माणिक चंद बाजपेयी को चुनाव हराया जो कि बाद में प्रखर पत्रकार बने।


●राजमाता की बगावत से बनी गैर कांग्रेस सरकार


सन 1967 का साल वह साल है जिसने राजमाता सिंधिया की बगावत और पहली गैर कांग्रेस सरकार बनने का इतिहास रचा।
नेहरु,शास्त्री के अवसान के बाद इन्दिरा गांधी का युग था।
मप्र के मुख्यमंत्री पं द्वारिका प्रसाद मिश्र थे जो उस दौर में राजनीति के चाणक्य कहलाते थे। तब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने का ऐलान हुआ।


विजयाराजे सिंधिया ने गुना से लोकसभा और करैरा से विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ा।
करैरा में कांग्रेस के दिग्गज गौतम शर्मा को हराया और गुना में अपने ही करीबी रिश्तेदार सरदार देवराव कृश्नराव जाधव को शिकस्त दी।
इस चुनाव से पहले राजमाता ने कांग्रेस छोड़ दी थी।


दरअसल राजमाता की जिद थी कि ग्वालियर,चम्बल के सारे टिकिट सिर्फ उनकी मर्जी से तय हों। द्वारिका प्रसाद मिश्र से इसी बात पर तनातनी बढ़ी तो बाद इंदिरा गांधी तक पहुंची लेकिन वहां भी राजमाता सिंधिया की नहीं चली। 
इससे पहले युवक कांग्रेस के पचमढी अधिवेशन में मिश्र ने राजे रजवाड़ों के खिलाफ आग उगली थी जिससे राजमाता बेहद खफा हो गईं थीं।
अंतत: राजमाता ने कांग्रेस छोड़ दी और दीपक चुनाव चिन्ह पर अपने प्रत्याशी उतार दिये।
अंचल में राजमाता के प्रत्याशी जीत गये और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा में सत्र के बीच राजमाता के इशारे पर 36 विधायकों के साथ गोविंद नारायण सिंह ने पाला बदल लिया और पं द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार गिर गई।
राजमाता के सहयोग से जनसंघ,स्वतंत्र पार्टी और अन्य सोशलिस्तों के गठबंधन की पहली गैर कांग्रेस सरकार बनी।
राजमाता ने खुद मुख्यमंत्री न बन कर गोविंद नारायण सिंह को मुख्य मंत्री बनाया। इसे संविद सरकार कहा गया यानी संयुक्त विधायक दल की सरकार।
यह सरकार 18 महीने चली और बाद में गोविंद नारायण सदल बल कांग्रेस में लौट गये।
प्रसंगवश: पं द्वारिका प्रसाद मिश्र श्रेष्ठ कवि और प्रखर पत्रकार भी थे। कृश्णायन महा काव्य की रचना की।
लोकमत,और सारथी के संपादक रहे।
वे सागर विवि के कुलपति भी रहे थे।


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