16 फरवरी को भारत बंद के आह्वान को लेकर संशय


केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू) और संयुक्त किसान मोर्चा ने अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए 16 फरवरी को राष्ट्रव्यापी बंद के साथ रेल और सड़क नाकाबंदी का आह्वान किया है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा और सशक्त लोकतंत्र है और अपनी मांग के लिए प्रदर्शन करना हर एक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है, यह हम सब मानते हैं और इस बात में पूर्णतया विश्वास करते हैं। हालाँकि हम यूनियनों द्वारा विरोध करने के अधिकार को स्वीकार करते हैं, लेकिन इस समय मध्य प्रदेश में बोर्ड परीक्षा शुरू हो चुकी है। उस दिन बंद रखने का निर्णय, जब कई छात्र अपनी 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होंगे, सभी छात्रों और उनके अभिभावकों को परेशान कर सकता है। बच्चे इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यदि वे छात्र रेल/सड़क अवरोधों और परिवहन सेवाओं की अनुपलब्धता के कारण अपने परीक्षा केंद्रों तक पहुँचने में असमर्थ होते हैं तो उनकी वर्ष भर की मेहनत व्यर्थ जा सकती है। 

इसलिए, विद्यार्थियों के हित में विचार करते हुए संगठनों द्वारा इस दौरान हड़ताल/बंद करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है जिससे स्कूल जाने वाले बच्चों का उनके शैक्षणिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण पडाव पर नुक्सान न हो।

एक पत्रकार होने के साथ साथ एक जागरूक नागरिक और एक शिक्षाविद होने के नाते मेरी आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों से विनम्र अपील है कि अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें। क्योंकि आने वाले दिनों में हो सकता है कि उन विद्यार्थियों के चिंतित माता-पिता श्रमिक और किसान यूनियनों द्वारा 16 फरवरी को प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी हड़ताल/बंद के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए मजबूर हो जाये।

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