“हिन्दी भवन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी

 


“हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बने हमारा यही प्रयास है”– श्री सुखदेव प्रसाद दुबे, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति

“राष्ट्रीय जन मानस को हिन्दी के सम्मान को जीना होगा”- मनोज श्रीवास्तव, प्रधान संपादक, अक्षरा, भोपाल

“विदेशों में हिन्दी शिक्षण के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं” - प्रो. आनंदवर्धन शर्मा, पूर्व प्रतिकुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा

“विश्व हिन्दी सम्मेलनों के मन्तव्य पूरे होने से हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बन सकेगी – प्रो. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति, ब्राउस, महू 

“हिन्दी बोलने बालों की संख्या विश्व में बड़ रही है” – प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई



मध्य प्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति एवं हिन्दी भवन न्यास के संयुक्त तत्त्वावधान में हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित “राष्ट्रीय संगोष्ठी – संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी : चुनौतियाँ एवं संभावनाएं” विषय पर आयोजित कि गई। संगोष्ठी संयोजक ब्राउस की पूर्व कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए प्रस्तावना वक्तव्य दिया और समस्त विषय विशेषज्ञों का स्वागत किया उन्होंने कहा वर्धा में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन का पहला पारित मन्तव्य यही था कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को विश्व भाषा के तौर पर प्रतिष्ठापित किया जाए लेकिन आज इतने विश्व हिन्दी सम्मेलनों के बावजूद ये कार्य पूर्ण नहीं हुआ है। आधार वक्तव्य देते हुए अक्षरा के प्रधान संपादक श्री मनोज श्रीवास्तव ने हिन्दी की वैश्विक स्थितियों, राजनैतिक इच्छाशक्तियों, मीडिया में इसकी स्थिति इत्यादि पर एक शोध परक व्याख्यान देते हुए यह आव्हान किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को प्रतिष्ठापित करने के लिए यह आवश्यक है कि हम हिन्दी के गौरव को पूरे आत्मसम्मान के साथ जियें। प्रो. आनंदवर्धन शर्मा, पूर्व प्रतिकुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए कहा कि मुझे विदेशों में शिक्षण कार्य करने का अवसर मिला है और मैंने यह देखा है कि हम पूरे गौरव के साथ विदेशों में शिक्षण करते हैं लेकिन अपने देश में हिन्दी का राष्ट्र भाषा न होना चिंता की बात है। अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए श्री सुखदेब प्रसाद दुवे जी ने कहा कि मुझे प्रशन्नता है कि आज इस ऑनलाइन कार्यक्रम के माध्यम से मध्य प्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति का नाम देश दुनिया तक पहुँच रहा है और लोग इससे जुड़े हैं इससे हमारी हिन्दी के प्रयासों को बल मिलेगा। चर्चा सत्र की अध्यक्षता मुंबई विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय ने की, प्रो. उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि जिस प्रकार हम भारत में हिन्दी दिवस मनाते हैं उसी प्रकार चीन, रूस इत्यादि देश भी अपनी भाषा का दिवस मनाते हैं, उन्होंने कहा हिन्दी बोलने की, उपयोग करने की संख्या विश्व के अनेकों देशों में बढ़ रही है और भविष्य में ये निश्चित ही संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा के रूप में प्रतिष्ठापित होगी उन्होंने अनेकों आंकड़ों के माध्यम से अपनी बात को संपुष्ट किया।

चर्चा सत्र में प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ला, पूर्व निदेशक साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश द्वारा अपने वक्तव्य में हिन्दी के व्याकरण एवं वरतनियों कि शुद्धता पर बात की गई। प्रो. आनंदप्रकाश त्रिपाठी, हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर द्वारा कहा कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो बड़े आसानी से समझी ओर बोली जाती है इसको विश्वमंच तक ले जाने कि आवश्यकता है। प्रो. शैलेन्द्र शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा अपने वक्तव्य में कहा कि हमे अधिक से अधिक हिन्दी बोलने लिखने पर जोर देना चाहिए। प्रो. शशिकला त्रिपाठी, आचार्य, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा कहा कि हम भारतवासियों को हिन्दी बोलने लिखने और सुनने पर गर्व महसूस करना चाहिए। प्रो. प्रताप राव कदम, माखन लाल चतुर्वेदी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खंडवा द्वारा कहा कि हम सभी कि यह जिम्मेदारी है कि हिन्दी हमारी आने बाली पीड़ी को गर्व के साथ बोलना लिखना आना चाहिए। डॉ. संदीप अवस्थी, शिक्षाविद एवं आलोचक, जयपुर द्वारा अपने वक्तव्य में कहा कि हम सभी आज ऑनलाइन संगोष्ठी में हिन्दी के विस्तार पर चिंतन कर रहे हैं यह बहुत ही सार्थक प्रयास है हमे हिन्दी साहित्य और साहित्यतर वांगमय को विस्तार करने कि आवश्यकता है। कार्यक्रम में श्री कैलाशचंद पंत के अलावा कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर सहित लगभग 200 लोग शामिल हुए।  



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