आजादी के बाद भी नदी में तैर कर स्‍कूल जाने की मजबूरी, चार गांव के लोगों को पुलिया का इंतजार

 


सरदारपुर के कचनारिया गांव की तस्‍वीर, पिछड़ेपन काेे लेकर उठा रही शासन-प्रशासन पर सवाल 

आशीष यादव, धार. 

पूरा देश आज आदिवासी दिवस मना रहा है। जनजातीय वर्ग को समर्पित यह दिन सरकार के विकास के दावे और समाज की उन्‍नति के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है। लेकिन जनजातीय वर्ग की दहलीज तक विकास के कदम पहुंचे है या नहीं....इसका अंदाजा एक तस्‍वीर से लगाया जा सकता है। यह तस्‍वीर सरदारपुर से करीब 20 किमी दूर राजोद के समीप गांंव कचनारिया की है। करीब दो हजार की आबादी वाला गांव कचनारिया व उसके आसपास चार गांव की बसाहट है। वनांचल में मौजूद इन गांवों को शहर और स्‍कूल से जोड़ने के लिए आज तक सड़क नहीं मिल पाई है। इसका खामियाजा गांव के बच्‍चों की शिक्षा से लेकर बुजुर्गों की सेहत से जुड़ी इमरजेंसी तक में देखने को मिलता है।  

बात करें शिक्षा की तो ग्राम पंचायत कचनारिया में चार मजरे यानी गांव आते है।  दो दशक से इन गांवों को जोड़ने में बाधा बनने वाली कोटेश्‍वरी नदी पर पुल बनाने की मांग की जा रही है। लेकिन ग्रामीणों को पुलिया की सौगात आज तक नहीं मिल पाई है। विभागों ने पुलिया निर्माण के लिए सर्वे तो कई बार करवाया। साथ ही पुलिया निर्माण की मंजूरी भी हासिल की। लेकिन निर्माण आज तक नहीं हो पाया। इस कारण हालात यह है कि स्‍कूली बच्‍चों को स्‍कूल पहुंचने के लिए नदी में तैरना पड़ता है। तैरकर नदी पार करना होती है और इसके बाद स्‍कूल की राह आसान होती है। 


करीब चार फीट तक गहरा पानी : 

इन दिनों बारिश कम है। इसके बावजूद नदी का जलस्‍तर करीब चार फीट तक है। ऐसे में स्‍कूल पहुंचने के लिए स्‍कूली बच्‍चों को जान जोखिम में डालकर नदी पार करना होती है। तैरते हुए बच्‍चे नदी पार करते है और उनके माता-पिता स्‍कूल बैग को सिर पर रखकर नदी के दूसरी तरफ लाते है। स्‍कूल पहुंचने की ललक ही है जो इनकी आफतों के बाद भी बच्‍चों को स्‍कूल से जोड़े रखी है। 


कोटेश्‍वरी नदी पर बनना है पुलिया : 

राजोद से करीब 4 किमी दूर कचनारिया पंचायत है। यहां पर कोटेश्वरी नदी बहती है। नदी के दूसरे किनारे पर रसानिया, राजघाटा, गुलरीपाडा और पेटलावद रोड जैसे आदिवासी बाहुल्य गांव है। इनके लिए शिक्षा, स्वास्थ सहित कई मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिए राजोद व कचनारिया पर निर्भर रहना पड़ता है। कोटेश्वरी नदी में 12 में से 10 माह तों पानी से लबरेज रहती है। नदी पर पुल नहीं है, इसलिए ग्रामीणों को तैरकर नदी पार करना पड़ती है। बच्चों को भी इसी तरह स्कूल जाने के लिए करीब 200 मीटर की दूरी तैरकर ही पार करना पड़ती है। वहीं यदि कोई बिमार या फिर प्रसूता महिला को अस्पताल भिजवाना हो तो ग्रामीणों को नदी पार करवाने के लिए काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।


1993 में हुआ था सर्वे : 

दो दशक इस पुलिया के लिए पहली बार सर्वे कर मंजूरी मिली थी। साथ ही भूमिपूजन किया गया था। ग्राम पंचायत कचनारिया के सरपंच प्रतिनिधी पन्नालाल डामर बताते है कि यह समस्या 1990 के समय से आ रही है। वर्ष 1993 में आरईएस विभाग ने 80 लाख की लागत के पुल का सर्वे किया था। मंजूरी मिल कर निर्माण के लिए भूमिपूजन भी हुआ। डामर ने बताया मीडिया के माध्यम से कई बार पुल निर्माण के लिए मांग की गई। लेकिन सुनवाई नहीं हुई। पिछले वर्ष जरूर तकनीकी स्वीकृति के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजे गए थे। लेकिन मंजुरी नहीं मिल पाई। 


लाड़ली दिखा रही साहस : 

इस तरह की परेशानी धार जिले के लिए नई नहीं है। बरमंडल के पास पंचरूडी नदी के समीप बहने वाली खईडिया नदी पर भी आ रही थी। 5 वर्ष तक मीडिया की मुहिम ने नदी पर दो करोड़ की लागत का पुल निर्माण करवाया था। इस दौरान एक साहसी बालिका ज्योति प्रतिदिन टयुब पर सवार होकर नदी पार करके स्‍कूल जाती थी। इस बालिका के साहस एवं हौसले के चलते नदी पर पुल का निर्माण हो पाया था। इस प्रकार का साहस राजघाटा से आने वाले बालिका शिवानी दिखा रही है। शिवानी ने बताया प्रतिदिन नदी को तैरकर पार करके विद्यालय आते है। लेकिन ठंड और बारिश के समय काफी समस्या होती है। जब नदी उफान पर होती है तो उसे तैर कर पार करना मौत से सामना करने के बराबर होता है। 



बच्‍चों के लिए दी वैकल्पिक नांव : 

इधर यह मामला सामने आने के बाद गंधवानी विधायक उमंग सिंघार भी मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों से बात की। उन्‍होंने ग्रामीणों और बालिकाओं से बात की। इस दौरान बालिकाओं को नदी पार करने के लिए वैकल्पिक नांव की भी व्‍यवस्‍था करवाई। इस दौरान उन्‍होंने सरकार पर भी आरोप लगाए और कहा कि आज बड़े दुख की बात है प्रदेश में अत्‍याचार बढ़ रहे है। सीधी पेशाब कांड हो या मणीपुर में बलात्‍कार केस हो या  फिर हत्‍याओं की बात हो। इस तरह की घटनाओं से समाज में रोष है। 


क्या कहते हैं जिम्मेदार?

इस मामले को लेकर धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा का कहना है कि मामला संज्ञान में आया है। तात्काल प्रभाव से सुरक्षा संबंधी क्या उपाय किया जा सकता है, इसके प्रयास किए जा रहे हैं। कलेक्टर का कहना है कि मामले में पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा साल 2019 में ही एस्टीमेट भेजा गया था। लेकिन किन्ही कारणों के चलते उसे स्वीकृति नहीं मिल सकी। अब दोबारा मामला संज्ञान में आया है। सरदारपुर एसडीएम को मौके पर भेजा है। कलेक्टर के अनुसार शासन स्तर पर भी वे पत्र भेज रहे है, ताकि पुल निर्माण का कार्य स्वीकृत हो।

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