जानिए पूरा सच तुलसीदासजी की उस चौपाई के बारे में जिस पर चल रही है तीखी बहस

 



डॉ योगिता जौहरी, शिक्षाविद 

तुलसीदास जी की एक चौपाई इस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है और हम देख रहे हैं कि विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर किस तरह से वे लोग जिनका हमारे धर्म से कोई नाता नहीं है यानी वामपंथी और विधर्मी लोग, वह भी इस तरह की बहस का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। वे रामचरितमानस को ही गलत ठहराने में अपनी एनर्जी, अपना पैसा, अपना समय और अपना सब कुछ लगा रहे हैं।

हमें यह समझना होगा कि इसके पीछे के कारण क्या है और उन तत्वों के उद्देश्य क्या है क्योंकि जब तक हम यह नहीं समझेंगे तब तक इस कंट्रोवर्सी की गहराई में पहुंचना हमारे बस का काम नहीं है।

उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का अगर हम ध्यान रखेंगे तो हम पाएंगे कि तुलसीदास जी ने जब यह चौपाई लिखी थी तब उसका मतलब क्या था और तभी हम समझ पाएंगे की जिस तरह का एजेंडा चलाया जा रहा है, वह सही है या गलत।

एक ताजा उदाहरण देकर मैं यहां बात करना चाहूंगी कि जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था उस समय आर्टिकल 14 लिखा गया और उसके हिसाब से देश के हर नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, संस्कृति, जन्म स्थान का हो सबको बराबर कर दिया गया। लेकिन उसके बावजूद आर्टिकल 15 भी बनाया गया जिसमें कुछ लोगों को जो आज की के परिपेक्ष में एससी/एसटी की श्रेणी में आते हैं, उनके लिए विशेष प्रावधान बनाए गए। उस समय उन श्रेणियों को नीचा दिखाना संविधान का उद्देश्य नहीं था बल्कि संविधान निर्माताओं या यह कहें कि हमारे राष्ट्र का निर्माण करने वाले नेताओं को लगा कि सिर्फ आर्टिकल 14 से काम नहीं चलेगा इसी कारण से एक और आर्टिकल बनाकर विशेष प्रावधान किए गए।

जब एससी/एसटी के लिए विशेष प्रावधान बने उसी समय एक और बात सोची गई कि महिलाओं और बच्चों की स्थिति भी समझनी पड़ेगी और उनके लिए भी विशेष प्रावधान बनाए जाएं।

यहां इस बात का यह मतलब कतई नहीं है की महिलाओं को निम्न दर्जे का, कमजोर या किसी भी स्थिति में कमतर माना गया बल्कि उस समय की परिस्थिति को ध्यान में रखकर यह समझा गया कि अगर महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान संविधान में नहीं बनाए गए तो उनका समग्र विकास और उत्थान नहीं हो पाएगा। इस उदाहरण को देने के पीछे का उद्देश्य यही है की जब हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने संविधान बनाते समय महिलाओं, बच्चों और एससी/एसटी के लोगों के लिए विशेष प्रावधान बनाए ताकि उनका अधिक से अधिक ध्यान रखा जा सके और उनका उत्थान किया जा सके, साथ ही उनकी रक्षा भी की जा सके क्योंकि वह समय की दौड़ में पीछे गए थे। तो तुलसीदास जी ने अगर उनके बारे में सोचा तो क्या गलत किया।


इसी तरह से तुलसीदास की इस चौपाई में हर शब्द महत्वपूर्ण है लेकिन इसके खिलाफ चल रही वर्तमान कंट्रोवर्सी से देश में आग लगाने की साज़िश के परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्त्वपूर्ण शब्द है *"अधिकारी"* जिसकी व्याख्या हम अभी करने जा रहे हैं पर उससे पहले नजर डालते हैं उन शब्दों पर जिनके बारे में विधर्मी और वामपंथी उल्टे सीधे राग अलापते हैं।


*ढोर का मतलब चौपाये पालतू जानवर जैसे गाय भैंस, कुत्ता बिल्ली आदि। इनसे खेतों को रौंद डालने या चर लेने का खतरा, सींग मारने व काट खाने‌ आदि का खतरा होता है 


*गंवार यानि ज्ञान व बुद्धि से हीन जिसकी*जरा सी भी गलती उसे स्वयं को, उसके अपने परिवार को व अन्य लोगों को भी अनजाने में ही खतरे में डाल देने का खतरा बन सकती है।


*शूद्र यानि ऐसा कार्य करने वाला जिससे कार्य के दौरान जरा सा ध्यान बंटने पर स्वयं के लिए, स्वयं के परिवार को और अन्य लोगों को भी इन्फेक्शन फैलने का खतरा हो सकता है। 


*पशू यानि ऐसे जानवर जो पालतू नहीं है जैसे कि सांप, बिच्छू, शेर, भालू आदि जो कि किसी मनुष्य को घायल करने, काट खाने और नुकसान पहुंचाने या जान तक के लिए खतरा बन सकते हैं।


*नारी के बारे में हमें उस समय की परिस्थितियों के बारे में विचार करना होगा। तब तक भारत की भूमि पर बहुत से विधर्मी आक्रांताओ के हमले हो चुके थे और कुछ विधर्मियों ने तो यहां पर शासन भी शुरू कर दिया था जिस कारण से हमारे समाज पर काफी अत्याचार हुआ था और उनके अत्याचार की सबसे बड़ी टारगेट हमेशा महिलाएं ही होती थी। इसी कारण से महिलाओं को घुंघट में रखा जाने लगा था, साथ ही आमतौर पर शिक्षा से भी वंचित रखा जाने लगा था। इसी कारण से उस समय के लोक व्यवहार के अनुसार जानकारी, सतर्कता और दुनियादारी के बारे में समझ की कमी, घूंघट प्रथा आदि के चलते अनजाने में असुरक्षित हो कर खुद का परेशानियों में फंसना, साथ ही अपने परिवार आदि को भी चिंता या खतरे या परेशानी में डालने का सबब बन सकता था।


अब हम आते हैं अधिकारी शब्द की व्याख्या पर और इस मामले में जब हम देखेंगे तो पाएंगे कि इन चारों श्रेणियों को यह अधिकार था कि उनके लिए समाज विशेष इंतजाम करें और उनका विशेष ध्यान रखें। उनके लिए यह जरूरी है और इसीलिए उनको यह *अधिकार* है कि वह *अपनी, अपने परिवार और अन्य लोगों की सुरक्षा की आवश्यकता को ध्यान में रख कर* प्रबुद्ध लोगों से *आवश्यक सपोर्ट और सुपरविजन* रूपी सहयोग यानि *ताड़न* की मांग कर सकें और इस कारण से उन्हें समाज का सहयोग प्राप्त होने का *अधिकार* भी है।

आशा है आपको यह वीडियो पसंद आया होगा और अगर आपकी जिज्ञासा शांत हो गई हो तो कृपया इसे अन्य लोगों में फॉरवर्ड करें, जिससे उनको भी जानकारी लगे।

पर किसी कारण से अगर आपकी जिज्ञासा अभी भी बनी हुई है इस चौपाई में किसी विषय को लेकर तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें। हमारी कोशिश रहेगी कि हम उस जिज्ञासा को भी शांत करें।

                          डॉ योगिता जौहरी

टिप्पणियाँ