किसानों की महेनत तो दूर मजदूरों की मजदूरी भी नही निकाल पा रहे किसान लहसुन प्याज की फसलो से किसानों का तौबा नही करेगे अब खेती

आशीष यादव धार


खेतों में महेनत कर लगाए फसलो के दाम नही मिलने जे किसानो घाटा जा रहा है अब वह लहुसन प्याज़ की खेतो से तौबा करने को तैयार हो गए है वही लगातार कोरोना काल के बाद से ही किसानों को अपनी उपज का सही दाम नही मिल पा रहा है जो खेतो में मेहनत कर लगया गया पैसा भी नही निकाल पाए जिसे अब इन उद्यानिकी फसलों से मुंह मोड़ का मन बना लिया है। जहा दूसरी ओर किसान हित की बात करने वाली सरकार हर एक सभा में हर एक कार्यक्रम में सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात करती है मगर जमीनी स्तर पर आए दिन किसान अपनी उपज का सही दाम ना मिलने का कारण फसलों कोडियो के दामों में बेचते है या फिर उसे फेक देते है लहसुन किसान बोलेते हैं कि- "मोदी जी आपने कहा था तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे, हमारी फसलें कौड़ियों के भाव जा रहीं" किसान का लहसुन 1 रुपये से 3 रुपए किलो बिका रहा है उसने आने वाले चुनावो तक  किसानों आमदनी दोगुनी कर देंगे वही लहसुन की बंपर उत्पादन होने के बाद भी किसान परेशान हैं। क्योंकि किसानों को मंडियों में लहसुन के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। व्यापारी 100 से लेकर 400 रूपए प्रति क्वींटल के हिसाब से किसानों से लहसुन खरीद रहे हैं। वही अच्छी व

अच्छी क्वालिटी की लहसुन 1000 क्विंटल

तक जा रही है अपनी उपज के उचित दाम नहीं मिलने से हताश होकर किसान नदियों में और सडकों पर लहसुन फेंक रहे हैं। आये दिन किसानों ने विरोध प्रदर्शन कर अपनी उपज का सही दाम दिलाने की मांग कर रहे है तो कुछ किसान लहसुन से भरी दर्जनों बोरियां  नदी में फेंक कर अपना विरोध जताया। किसानों ने लहसुन और प्याज की माला पहनकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते अपना विरोध दर्ज करवाया जिले में लहसुन और प्याज का अच्छा उत्पादन होता है। बीते कुछ सालों में जिले में लहसुन और प्याज का रकबा बढा है। इस वर्ष लहसुन की बंपर उत्पादन हुई है लेकिन मंडियों में लहसुन कोडियों के दाम व्यापारी खरीद रहे हैं। एक क्वींटल फसल की लागत करीब 3 से 4 हजार रूपए के बीच किसान को आती है। डीजल के दाम भी अधिक हैं ऐसे में किसान को मंडी आने में काफी नुकसान है। लहसुन के उचित दाम नहीं मिलने से नाराज किसान आये दिन  विरोध जताया। किसान अपनी फसल के उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए तरस रहा है किसान अपना पेट नहीं भरता किसान तो पूरे प्रदेश और देश की जनता का पेट भरता है लेकिन किसान आज पूरी तरह बर्बाद हो रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग है कि कृषि उपज लहसुन एवं प्याज का निर्यात तुरंत प्रभाव से लागू करवाए या भावांतर योजना या राजस्थान की तर्ज पर बाजार हस्तक्षेप योजना को लागू करवाया जाए जिसे किसान अपनी उपज बेच सके।


पारंपरिक खेती छोड़ नवाचार की देते हैं सीख:

एक तरफ सरकार किसानों को परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रही है. दूसरी तरफ किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने में नाकाम नजर आ रही है. सरकार  किसानों को लहुसन की खेती करने के लिए काफी प्रचार प्रसार किया. जब किसान परंपरागत खेती छोड़ लहसुन की खेती करने लगा, तो उसे उसकी फसल आधी लागत भी हासिल नहीं हो रही है. परेशान किसान अब लहसुन की खेती करने से तौबा कर रहा है वही दूसरी ओर सरकार किसानों को खेती से लाभ का धंधा बनाने की बात करती है वहीं जमीनी स्तर पर किसान अपना खून पसीना बहाकर उत्पादन करता है खेत से घर व घर से मंडी में जाते-जाते उसकी उपज का भाव पानी के दाम बीकता है जिससे किसान उसकी लागत भी अपने हाथ में नहीं आती है जिससे किसान दुःख से टूट जाता है वही इस बार अधिकांश किसान इस फसल से तौबा कर करने की बोल रहे है बता देकि लहसुन के भाव न मिलने से किसान इन दिनाें निराशा है। जिन किसानों ने लहसुन-प्याज की खेती की है,किसानों के लिए इस बार लहसुन की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। लहसुन की पैदावार आते ही दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। इससे किसान खासे परेशान है। लहसुन के मौजूदा भाव में लागत भी निकलना मुश्किल हो गई है। लहसुन को किसान ज्यादा समय तक स्टॉक भी नहीं कर सकते हैं। भीषण गर्मी में खराब होने लग जाता है। उधर मुंबई मंडी में एक किसान का बढिय़ा गुणवत्ता का लहसुन 2.50 रुपए किलो बिका है

जिसे बचा हुआ लहसुन 2 रुपये खर्च किलो मंडी बेचा



मंडियों में 1 रुपए से 10 रुपए किलो भाव:

किसान जिस तरह लहसुन प्याज की खेती करता है समझो अपने बच्चों का पालन पोषण करता है वही बुवाई के समय लहसुन के दाम 8 से 10 हज़ार रुपए किलो चल रहे थे, इस कारण किसानों की अच्छी बुवाई की थी, लेकिन अब दाम काफी गिर गए हैं। मंडियों में 1 रुपए से 10रुपए किलो बिक रहे हैं। औसम दाम 3 रुपए किलो रह गए है। किसानों ने बताया कि जब बुवाई की उस वक्त लहसुन में जोरदार तेजी थी। अब जब फसल घर में लाए तो लहसुन में मेहनत भी नहीं निकल पाने से किसान परेशान हो रहे। किसानों के कर्ज के बोझ की वजह किसानों को लहसुन प्याज़ की फसल में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है वही इस बार लहसुन की फसल में बीमारियों का प्रकोप भी अधिक रहा व उत्पादन भी कम हुआ मंडियों में फसलों का दाम भी नहीं मिला जिससे किसान आज ठगा सा महसूस कर रहा है



सताने लगा डर कहीं खराब ना हो जाए लहुसन:

घरों में रखा है , भाव आए तो बेचे लहसुन उत्पादक किसानों अजीत पटेल  ने बताया उनके द्वारा लहसुन को रोक रखा है। इस वक्त मण्डियों में भाव नही मिलने की वजह से घरों गोदामों में लहसुन को रख रखा है। जब अच्छा भाव आएगा तब लहसुन को बेचेंगे। अब बारिश के चलते खराब होने का डर भी सता रहा है वहीं सरकार द्वारा निर्यात पर रोक लगाई है जिसके कारण लहुसन व अन्य फसलों का दाम नहीं मिल रहा है जिसके कारण किसान काफी नाखुश है वह सरकार अगर निर्यात खोलती है तो लहसुन की फसलों के भाव भी चमकेंगे व किसानों को फायदा होगा। इस साल लहसुन की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान हो रहा था इसकी वजह से क्षेत्र के किसान बेहद परेशान हैं. 



यह होती है लहसुन की खेती में लागत 

अगर किसान लहसुन की फसल लगाता है तो उसे बच्चों की तरह संभालना होता है सबसे पहले किसान लहुसन को धूप लगाकर फोड़ते हैं। एक बीघा में दो से तीन क्विंटल चौपाई  लगती है। इसको किसान से खरीदी 8 से 10 हजार रुपये का बीज लगया जाता है  उसको 300 रुपए रोज की मजदूरी में चौपाई की किसान शुरुआत से लेकर उसे दवाई से निकालने तक कुल खर्च 35 से 40 हजार रुपये के बीच का होता है जो कि एक बीघा में लगता है। एक बीघा में किसान 15 से 16 क्विंटल तक उत्पादन करते हैं मगर आज के मंडी भाव 1 रुपए से 1500 सौ रुपये क्विंटल  तक ही किसान अपनी लहसुन बेंच पा रहे है आज किसान अपनी उपज बेच रहे है  तो उसे उसे हजारों रुपए का घाटा जा रहा है। साथ ही उसे मंडी ले जाने व खेतों से लाने का किराया अलग है।इसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. किसानों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसकी लागत कैसे निकलेगी.अभी स्थिति देखते हुए आज मजदूरों की मजदूरी भी नही निकाल पा रहे है।




ऐसे बिगड़ा किसानों का गणित:

किसानों पिछले साल की तुलना में इस साल लहुसन की खेती का रकबा बडा कर बो दिए जिसे बाजार में माल बढ़ गया


मौसम के कारण इस बार फसलों में रोग से गुणवत्ता खराब हुई, ओर दाम गिरे। कही जगह लहसुन में फफूंद लगी गई जो खेतो में ही खराब हो गई


कही किसानों के पास भंडारण व्यवस्था न होने से खराब हुए, इसलिए कम दाम में बिक रहे। इस समस्या पर सरकारों ने ध्यान नहीं दिया ओर मंडियों में अच्छी लहुसन का दाम भी किसानों को सही से नही मिल पा रहा है


लहुसन निकलते ही किसानों ने लहसुन बेचना शुरू किया, जिसकी कीमत लगातार घटती चली गई। व्यापारियों ने भी औने-पौने दामों पर ले लिया। इसी वजह से लागत तो दूर किसानों की मजदूरी भी नहीं निकल पा रही।


लहसुन उत्पादकों की इस समस्या की ओर केंद्र और राज्य सरकार ने समय रहते कोई ध्यान नहीं दिया। बाजार में किसनो को प्याज व लहुसन का दाम नही मिला


केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि लहसुन को निर्यात करेंगे, लेकिन पहल नहीं की। इसी तरह से राज्य सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया। भाव नहीं मिला, नदी में फेंका शुरू कर दिया व जगह जगह सरकार का विरोध कर रहेहै





लहुसन का रकबा सरकारी आकड़ो में:

लहसुन उत्पादन में प्रदेश देश में नंबर-1 पर है इसकी खेती 

ज्यादा मालवा-महाकौशल क्षेत्र में हो ज्यादा होती व कही जगह निमाड़ में भी होने लगी है। उद्यानिकी विभाग के आंकड़े बताते हैं, अभी सूबे में लहसुन का रकबा वर्ष 2021-20 के मुताबिक 15 हजार 603 हेक्टेयर में थी वही इसका उत्पादन 1 लाख 61 हजार 701 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है वही वर्ष 21-22  में देखा जाए तो 16 हजार 382 हेक्टेयर लग लगाई गई है व 1लाख 69 हजार 786 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है वहीं इस बार लहुसन के साथ रकबे के साथ उत्पादन भी बड़ा है। वही आपको बता देकी जो अच्छे मूल्य मिलने से कुछ सालों में लगातार इसका रकबा बढ़ा। विशेषज्ञों का कहना है, अच्छे दाम मिलने से किसानों ने एक साल में रकबा दो गुना तक बढ़ाया, लेकिन किसान केंद्र व राज्य सरकारों ने इसके लिए कारगर रणनीति नहीं बनाई। इसलिए ऐसी हालत हुई। बता दें, एक दशक पहले भी ऐसी स्थिति में किसानों ने लहसुन जलाया व फेका था। आज भी बाजार में फसल लाने का किराया तक नहीं निकल पा रहा है। तो मजबूरी में नदी या कही अन्य जगह फेकर जा रहे है



3 से 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल की लागत:

लहसुन की खेती करने पर करीब तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल की लागत आती है। प्याज की हालत भी खराब है। इसकी लागत करीब दो हजार रुपए प्रति क्विंटल आती है, लेकिन इस समय भाव 500 से 800 रुपए प्रति क्विंटल ही है। किसानों की मांग है कि लहसुन, प्याज का निर्यात होना चाहिए। सरकार भावांतर योजना का लाभ किसानों को दे।

नारायण डोडिया किसान 



लागत तो दूर मेहनत का पैसा नहीं निकल रहा:

कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएं पहले तो लागत निकल जाती थी मगर आज तो मजदूरी निकालना भी कठिन साबित हो रहा है हमने उपज तो लगा दी मगर आज उसका मंडी में भाव नहीं मिल रहा है जिससे हमें आने ले जाने का भाड़ा तक नहीं निकल रहा है कैसे खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे जब किसानों के घर में फसल पककर आती है और जब बाजारों में सरकार बाहर से माल बुलवा लेती है या निर्यात पर रोक लगा देते है और किसानों का फसल गोदामों में रखी रह जाती है महीनो तक भाव बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। इस बार भी लहसुन का भाव नही आया 

परसराम पटेल किसान, अनारद


फेंकने को मजबूर भाव ही नहीं हैं क्या करें –

किसान की उपज बेचने का समय आता है जब बाजारों से भाव गायब हो जाता है जब किसान के पास उपज नहीं रहती है तो बाजार में भाव दुगना हो जाता है किसान को अब खेती करना ही दुश्वार हो गया अब किसानों के पास खून के आंसू रोने के अलावा कुछ नहीं है। लहसुन की उपज खेतों में लगाई मगर मजदूरी भी निकालना आज दुर्भाग्य पूर्ण है नेता जी अपने भाषणो में बोलते अधिकारीयो को निर्देशित करते मगर व सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाती है। लगातार दो सालों से हमें लहसुन की फसल में घाटा ही उठाना पड़ रहा है। 

राजेश लववंशी किसान, सकतली

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