आशीष यादव, धार
ज्योतिषाचार्य डाॅ. अशोक शास्त्री ने विशेष मुलाकात मे बताया कि इस वर्ष गणेश जी का आगमन बहुत शुभ योग मे हो रहा है । गणेश स्थापना भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि दिनांक 31 अगस्त बुधवार से रवि योग प्रातः 06:04 से मध्य रात्रि 12:22 बजे तक है । यह योग मांगलिक कार्यों के लिए शुभ होता है । इसमे पार्थिव गणेश की स्थापना होगी । इस दिन गणेश स्थापना व पूजन प्रातः 11:09 से दोपहर 01:46 बजे तक श्रेष्ठ रहेगा । 10 दिवस पश्चात् 09 सितंबर तक अपने भक्तों के साथ रहने बाद अपने लोक मे चले जाते है और गणेश विसर्जन के साथ गणेशोत्सव संपन्न होता है । एक मान्यतानुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि दिनांक 03 सितंबर शनिवार को गणेश जी विसर्जन कर गौरी का आव्हान कर गौरी की स्थापना की जाती है और दशमी तिथि दिनांक 05 सितंबर सोमवार को गौरी का विसर्जन किया जाता है ।
डाॅ. अशोक शास्त्री ने बताया कि इसे कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है । धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन चंद्रमा देखने से कलंक लगता है । कलंक चतुर्थी दिनांक 30 अगस्त को मानी जाएगी । कलंक चतुर्थी को लेकर चंद्रमा से जुडी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को देखना निषेध है । कहा जाता है कि चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है ।
पौराणिक मान्यतानुसार भाद्रपद मास से शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नही करना चाहिए । धार्मिक मान्यता है कि इस दिन चांद को देखने से कलंक लगता है यही कारण है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी कहा जाता है । डाॅ. शास्त्री के अनुसार इसका मुख्य कारण भगवान गणेश द्वारा चंद्रमा को दिया गया एक श्राप है । पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी के पेट और गजमुख के स्वरूप कौ देखकर चंद्रमा हंस दिया जिस पर गणेश जी ने नाराज होकर चंद्रमा को श्राप दे दिया । उन्होने चंद्रमा से कहा कि तुम्हे अपने रुप पर बडा गर्व है , इसलिए तुम्हारा क्षय हो जाएगा और तुम्हे कोई नही देखेगा अगर कोई देखेगा तो उसे कलंक लगेगा , कहा जाता है कि इस श्राप से चंद्रमा आकार क्रमशः घटने लगा । चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी की उपासना की । शिवजी ने चंद्रमा को गणेश जी की पूजा करने की सलाह दी फिर गणेश जी ने कहा मेरे श्राप का असर समाप्त नही होगा लेकिन इसके प्रभाव को घटा देता हूं । इसमे 15 दिन तुम्हारा क्षय होगा लेकिन फिर बढकर पूर्ण रूप प्राप्त करोगे । साथ ही भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के जो तुम्हे देखेगा उसे कलंक लगेगा । कहते है कि तब से ही चंद्र 15 दिन घटता है और 15 दिन बढता है । साथ ही भाद्रपद माह की चतुर्थी को चंद्रमा नही देखा जाता है और तब से ही इसका नाम कलंक चतुर्थी भी पड गया ।
डाॅ. शास्त्री ने बताया कि एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश से महाभारत की रचना को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी जिसके बाद गणेश जी ने उसे लिपिबद्ध करना शुरु किया और बिना रुके 10 दिनों तक लगातार लेखन कार्य किया और 10 दिनों मे गणेश जी पर धूल - मिट्टी की परत चढ गई । गणेश जी इस परत को साफ करने के लिए 10 वे दिन सरस्वति नदी मे स्नान किया और चतुर्थी थी , तभी से गणेश चतुर्थी का पूजन किया जाता है ।
डाॅ. शास्त्री ने बताया कि अन्य पौराणिक कथाओं मे भगवान गणेश जी को देवी पार्वती ने चंदन के लेप से बनाया था । जिसका उपयोग उन्होने अपने स्नान के लिए किया था । शक्ति के देवता होने के कारण उन्होने इतनी शक्ति से गणेश जी को जगाया की युद्ध मे बडे से बडे देवता भी उनका सामना नही कर सके । देवताओं के युद्ध के दौरान भगवान शिव ने गलती से गणेश का सिर काट दिया था । जिससे पार्वती का क्रोध भडक उठा ।
जिसके बाद भगवान शिव ने अन्य देवताओं के साथ गणेश के मस्तक पर हाथी के बच्चे का स्थापित कर दिया । इसलिए हाथी के सिर वाले भगवान गणेश की रचना की गई । गणेश चतुर्थी के इस शुभ दिन पर भगवान शिव ने घोषणा की कि गणेश ही एकमात्र ऐसे देवता होंगे जिनकी पूजा किसी अन्य भगवान से पहले की जाएगी । उन्हे हमेशा ज्ञान और शक्ति के प्रतीक के रूप मे पूजा जाता है ।
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