चलते-चलते थका हूँ मैं पर साहस
अभी डिगा नही,
हूँ मजदूर मेहनतकश मैं आसान
रास्ता कभी मेरे लिए था ही नही,
मीलो चलना अब दिखता है, सूरज में खपना अब दिखता है,
ऊंची ऊंची इमारतों पर नीचे ऊपर नीचे ऊपर हर दम ही तो चलता था मैं,
तब ना थी तुमको मेरी कदर तो अब क्यो करते हो तुम मेरी फिकर,
हाँ चला हूँ कदमों से गगन नापने गर गिरू जमीं पर तो अफ़सोस कैसा
भूखा हूँ चोटिल हूँ पर मरहम की तुमसे क्यों दरकार करूँ, चुना है रास्ता मैंने खुद ही, मैं ही बना के नैया समुंदर पार करूँ।
लेखक-गीतांजली कश्यप
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