म.प्र. के गुना में हुए शिकार, शिकारियों द्वारा तीन पुलिसकर्मियों की हत्या & शिकारियों की पृष्ठभूमि का वरिष्ट पत्रकार अतुल गुप्ता द्वारा बहुत ही सटीक विश्लेषण

 गुना के वे शिकारी सिर्फ निकाह में मांस बांटने के लिये काले हिरण और राष्ट्रीय पक्षी का शिकार करने नहीं गए होंगे। वे पहले से ऐसा करते रहे होंगे। तभी पुलिस आने पर उन्होंने फायरिंग की। 

इंसान पहली बार कोई अपराध करता है तो छिपकर और बचकर करता है ना कि बेखौफ पुलिस वालों पर फायर करता है‌। शिकारी शायद भूल गए होंगे कि दिग्विजयसिंह की सरकार को प्रदेश से गए 19 साल और कमलनाथ की सरकार को गए 2 साल से ज्यादा हो गए हैं। वैसे भी विशेष अपराधियों पर कांग्रेस और उसके समर्थकों व नेताओं का वरदहस्त रहता है। इस बार तो भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने इसका खुला आरोप पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर लगाया है। पुरानी बात याद करें तो ध्यान में आएगा कि अर्जुनसिंह के बंगले में चीतल का शिकार हुआ था या पाए गए थे। 



खैर, आश्चर्य तो मारे गए शिकारी नौशाद की मासूम पत्नी का बयान सुनकर हुआ। उसका कहना है कि नौशाद नदी से अवैध रूप से रेत निकालता और बेचता था। मांस खाता था पर मोर या हिरण मारने की बात का पता नहीं। मासूम इसलिए कहा क्योंकि जो झटका और हलाल के मांस का अंतर कर लेते हैं, वह बकरे, मुर्गे, गाय, भैंस और हिरण-मोर के मांस में अंतर नहीं कर पाते होंगे। खैर, यह जांच का विषय है और मरे पुलिसकर्मी हैं इसलिए वे इस बार खोद-खोदकर, खोज-खोजकर सच बाहर निकाल लेंगे क्योंकि सिर्फ खोदने-खोजने से ही सच बाहर आएगा जैसे ज्ञानवापी, मथुरा और भोजशाला के आने की उम्मीद बंध रही है।

बात वापस, गुना के आरोन की। इस बात पर आश्चर्य किया जा सकता है कि आखिर इस लेख में पूर्व कांग्रेस नेता स्व. अर्जुनसिंह के नाम का उल्लेख क्यों किया गया? हिरण और मोर से उनका क्या नाता?

 तो आपको बता दूं कि मोर और हिरण की वहां (आरोन में) आबादी बढ़ने में उनका भी परोक्ष रूप से योगदान रहा है। चंबल के एक डाकू (नाम याद नहीं आ रहा, शायद मलखान सिंह)‌ ने उनके कार्यकाल में समर्पण किया था। उन्हें आरोन में जमीन दी गई और वे वहीं बस गए। अपने खेत की चौथाई फसल वे खेत से नहीं निकालते थे और वह उन्होंने पक्षियों व मवेशियों के आरक्षित कर रखी थी। उन्होंने बताया था कि कहीं से एक मोर आया और करीब 20 सालों में (2009 में) उनकी संख्या सैकड़ों में पहुंच गई। स्थिति यह हो गई कि मोर उनके खेत छोड़कर अन्य गांव वालों की फसल भी खाने लगे। पर, उनके रहते न तो किसी ग्रामीण ने कभी उसका विरोध किया और न कोई शिकारी उनके गांव जाकर किसी मोर का शिकार कर पाया। हालांकि वे कहते थे कि गांव और आसपास तो इनका शिकार नहीं होगा लेकिन गांव से दूर इनका शिकार किया जा सकता है। अभी तो मेरा डर है लेकिन बूढ़ा हो रहा हूं या मर जाऊंगा तो शायद ही ये मोर बच पाएं। शाकाहारी होने और मांसाहार का कम ज्ञान के कारण मैंने उनसे पूछा था कि जब मुर्गे और बकरे का मांस बहुतायत में हैं तो खरगोश, हिरण, चीतल, मोर आदि को शिकारी क्यों मारते हैं? तो वे बोले थे कि इनका मांस अन्य जानवरों के मुकाबले नरम और पचाने में आसान होता है। साथ ही इनका सेवन करने से सैक्स ताकत बढ़ती है और बूढ़े हो रहे नेता इसका सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। 

जैसे उनके पैरों में करीब 6 से ज्यादा गोलियों के निशान पक्के हो गए थे, उसी तरह उनकी बात भी सच हो रही है। और, मुझे शंका नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री इन मोर के शिकार को रोकने में सफल नहीं हो पाएंगे। क्योंकि पुलिस से ज्यादा खौफ डाकुओं का था। 

नोट: मोर राष्ट्रीय पक्षी है। इसकी हत्या साबित होने पर फांसी की सजा भी हो सकती है।



टिप्पणियाँ
Popular posts
इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जनक डॉ मैटी का इंदौर में मनाया जन्मदिन, डॉ मैटी नें 1865 में इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का अविष्कार किया
चित्र
देवली बालक छात्रावास में बच्चों में मोबाईल को लेकर हुआ था झगड़ा उसी से आहत होकर छात्र ने की आत्महत्या, गुसाई परिजनों ने घेरा हॉस्टल
चित्र
Mistral Unveils AI Enabled Direct RF family of Products Powered by Altera’s latest Agilex™ 9 FPGAs and SoCs
चित्र
Indian Temple which Deserves Much More than Leaning Tower of Pisa, One of the Seven Wonders
चित्र
पत्रकार लोकेंद्र सिंह थनवार लगातार छठी बार अध्यक्ष चुने गए, मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ इंदौर जिला इकाई की 21 सदस्यीय कार्यकारिणी का नवगठन
चित्र