आत्मनिर्भर भारत के सूत्रधार मदन मोहन मालवीय-प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय
'राष्ट्रनिर्माता पं. मदन मोहन मालवीय: आत्मनिर्भर भारत' विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
महू। आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को अंग्रेजी हुकूमत के समय ही चरितार्थ करने हेतु प्रयास करने वाले कोई नहीं, बल्कि मदन मोहन मालवीय ही थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय आत्म निर्भर भारत की परिकल्पना पर केंद्रित रहा। मालवीय जी ने अपने जीवन के प्रारम्भ से ही भारत को विकसित करने हेतु सम्बंधित भारतीय व्यापारियों को प्रेरित किया तथा नीतियों के निर्माण में भी नजर रखा। उक्त बातें डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय तथा हेरीटेज सोसाईटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार "राष्ट्रनिर्माता पं. मदन मोहन मालवीय: आत्मनिर्भर भारत" में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय ने मुख्य वक्ता के रूप में कही।
प्रो. पांडेय ने उद्बोधन को आगे बढ़ाते हुए कहा कि विदेशी भूमि पर भारतीय उत्पादों की प्रदर्शनी, भारतीय कृषि के महत्वपूर्ण विषयों पर शब्दकोष का निर्माण किया गया जिसमें जिसमें भारतीय कार्य पद्धतियों भी शामिल है। वर्ष 1905 के काशी अधिवेशन में विदेशी उत्पादों के बहिष्कार का लक्ष्य निर्धारित वर्ष 1907 में मालवीय ने 'अभ्युदय' नामक पत्रिका प्रारम्भ किया। इस पत्रिका में भारत का चहुमुखी विकास का लक्ष्य निर्धारित कर आत्मनिर्भर उद्योग परक निबंधों का प्रकाशन किया जाने लगा। भारत के गौरव को आगे बढ़ाने हेतु वर्ष 1909 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष भी मालवीय को बनाया गया। तत्पश्चात स्वदेशी का विचार काफी प्रबल रहा। आन्दोलन में अहिंसक पशुओं का वध का विरोध करने के दौरान ही महामना मदन मोहन मालवीय ने जीवन पर्यन्त कपड़े का जूता ही पहनने का संकल्प लिया। इसी प्रयास के प्रतिफल से ही वर्ष 1916 में अंगेजों के आद्योगिक आयोग में भारतीय सोच के एकमात्र व्यक्ति मदन मोहन मालवीय को सदस्य बनाया गया। मालवीय के विचार से ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अनगिनत कार्यशाला कराया जाने लगा ताकि स्वरोजगार विकसित किया जा सके। मालवीय के समय उस समय के लोक प्रचलित जननायकों में महात्मा गाँधी, गोपाल कृष्ण गोखले, विपिन चन्द्र पाल, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय का भी सहयोग लगातार मिलता रहा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ब्राउस की बाबू जगजीवन राम पीठ के आचार्य प्रो. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि प्रख्यात इतिहासकार, राष्ट्रचिंतक तथा विद्वान जीवनपर्यन्त अपने कार्यों से समाज को निरंतर अभिसिंचित करते रहते हैं मालवीय जी भी उन्हीं महान विभूतियों में शामिल हैं जिन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि माना। अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यों से चिर स्मरणीय रहेंगे। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय निरंतर कार्यक्रम कर स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनसे संबद्धों पर विमर्श आयोजित कर रहा है ताकि जनमानस स्वतंत्रता को समझ एवं महसूस कर सके। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू तथा हेरीटेज सोसाईटी के सहयोग से इस श्रृंखला का सफल आयोजन हो रहा है।
आजादी के अमृत महोत्सव के आयोजन में हेरीटेज सोसाईटी पटना के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन श्रृंखला के अकादमिक समन्वयक डॉ. अजय दूबे ने किया। आयोजन में प्रो. नीरू मिश्रा, प्रो. सम्पा चौबे का अकादमिक सहयोग तथा सानन्त टीम के सदस्यों का तकनीकी सहयोग प्राप्त हुआ। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालयों के फैकल्टी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विरासत प्रेमी ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया।
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