महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा एक पुलिस वाले को 100 करोड़ की वसूली का टारगेट देने पर एक चर्चा



टारगेट 100 करोड़,डायल 100 वाले विभाग में उसके निर्वाचित मुखिया द्वारा दिया गया ,,महान राष्ट्र ,, में सिर्फ एक शहर के लिए , वो शहर कभी सपनो का शहर तो कभी हादसों का शहर कहलाता है

             

देश का मुखिया इससे कम टारगेट दे भी नही सकता गरिमा का प्रश्न जो ठहरा ।

             

अब सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार और अपराध पर पुलिस अंकुश कैसे लगाए ,अगर टारगेट हिट करना है तो असामाजिक तत्वों को छूट तो देना ही होगी,राजनीति का घिनौना चेहरा और बदरंग होती खाकी आप जनता के सामने है वे किस पर भरोसा करें समझ से परे है लगता है जनता ने खुद को ईश्वर के हवाले कर दिया है ।

            

पुलिस का अपराधियो से गठजोड़ कोई नई बात नही है सभी देश इस समस्या से ग्रस्त है कोई कम कोई ज्यादा ।

             

परंतु जो ,,परम् ,, सच जनता के सामने आया है वो अकल्पनीय है पुलिस का मुखिया खुद अपराध को बढ़ावा दे रहा है पुलिस अपराध के दलदल में खुद ही धसी जा रही है पैसे के लिए पुलिस का रसातल तक गिरना जन विश्वास को खत्म कर रहा है।

             

हमारे शहर में भी आये दिन पुलिस कर्मियों के लूटखसोट के किस्से सुनाई देते है । जांच के नाम पर लीपापोती होती रहती है प्रदेश की आर्थिक राजधानी हमारा शहर जो मिनी मुंबई कहलाता है उसी के तर्ज पर चल निकला है ।बड़े अधिकारियों को चाहिए कि समय रहते उपाय कर पुलिस की भ्रष्ट गतिविधियों पर कठोर कार्यवाही कर अंकुश लगाए । 

            

देश भक्ति जन सेवा का स्लोगन अपनी वर्धि पर धारण करने वाली पुलिस अपना आत्म मूल्यांकन करे कि उनमें इस स्लोगन का कितना भाव बचा है या खत्म हो गया ।

              

मेरी बात जरूर कड़वी लग रही होगी परंतु देश की आंतरिक सुरक्षा का जुम्मा आप का ही है । किसी भी लालच में आ कर उसे खत्म न होने दे ,वरना समाज के जंगल राज कायम हो जाएगा माननीय तो पांच साल के लिए आते जाते है उनसे इतना ख़ौफ़ खाने की जरूरत नही की उनके दिए गलत टारगेट भी आप पूरे करने में लग जाये ।अपनी आत्मा को जगाए रखिये निर्बल जनता जनार्दन आपसे ही सुरक्षा की अपेक्षा रखे हुए है । बुरा धन जिस तेजी से आता है उसी तेजी से जाता भी है ध्यान रखे।

          


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