विशिष्ट वक्ता श्री इन्द्रेश कुमार जी, मार्गदर्शक, भारत-तिब्बत सहयोग संघ ने अपने उद्बोधन में शोषणमुक्त एवं सम्मानयुक्त समाज की स्थापना को नए और उदीयमान भारत के निर्माण के लिए अनिवार्य बताया। उन्होंने कहा कि पूज्य बाबासाहेब भी समतामूलक एवं शोषणमुक्त समाज के लिए संकल्पित थे तथा विभाजित भारत के लिए नहीं वरन् पूर्ण स्वराज के पक्षधर थे। आपने छूआछूत को अपराध, अधर्म एवं पाप बताते हुए मानव के माथे पर कलंक के रूप में बताया। उन्होंने समाज के प्रत्येक व्यक्ति को शरीर, मन और बुद्धि से छूआछूत नामक वायरस से युक्त होने की बात कही, जिससे समता, समरसता और न्यायपरक समाज की स्थापना होगी।
उन्होंने विश्वविद्यालय के सामाजिक दायित्वों का बोध कराते हुए कहा कि यह सोशल इंजीनियरिंग के लिए समर्पित है। इसे जनजागरण करते हुए सुरक्षा कवच के पालन के लिए अलख जगाने का कार्य करना होगा। साथ ही एक नए सशक्त भारत का निर्माण करते हुए समाज और देश की रक्षा के लिए संकल्पित होकर इंच-इंच भूमि की रक्षा करनी होगी। प्यार, सद्भाव और सम्मान की जीवनशैली अपनाते हुए अपनी भूमिका को श्रेष्ठ बनाना होगा। उन्होंने जेण्डर समानता को सामाजिक समानता के लिए आवश्यक बताया।
वैश्विक महामारी को रोकने में भारत की भूमिका के संदर्भ में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सर्वाधिक घनत्व वाला देश होते हुए भी भारत ने इसको नियंत्रित करने के लिए ठोस प्रयत्न किये। उन्होंने कोरोना योद्धाओं के कार्यों की भी प्रशंसा की। उन्होंने विकसित, सभ्य एवं शिक्षित समाज के नए मापदण्ड तय करने की बात कही एवं आत्मनिर्भर भारत अभियान को अपनाते हुए ठम प्दकपंद ठनल प्दकपंद की बात कही।
व्याख्यान के आरंभ में स्वागत उद्बोधन एवं प्रस्तावना वक्तव्य देते हुए कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि अवसरों को चुनौतियों एवं संभावनाओं में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है इसका विश्वविद्यालय द्वारा अक्षरशः पालन किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा मानवता के संरक्षण एवं संवर्धन को स्वीकार करते हुए सीमित दायरे में न रहते हुए सामाजिक चैन के माध्यम से समाज के निचले तबके तक पहुँचने का कार्य किया जा रहा है। सामाजिक दायित्व का बोध करते हुए डाॅ. अम्बेडकर के विचारों को प्रवाहित करते हुए समाज-सेवा के कार्यों के लिए विश्वविद्यालय दृढ़संकल्पित है।
अन्त में आभार व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय के प्रो. डी.के. वर्मा ने कहा कि श्री इन्द्रेश जी के उत्कृष्ट एवं नवाचारी उद्बोधन से वर्तमान में राष्ट्र के प्रति दायित्व को विलुप्त करने की दिशा में जा रहे समाज को नयी संकल्पनाएँ एवं दिशाबोध मिला है । साथ ही विश्वविद्यालय को कत्तव्यों और दायित्वों के निर्वहन हेतु मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ है! संचालन भरत भाटी ने किया।
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