भारत, नरेंद्र मोदी, हिंदू व मुसलमान-- इस गंभीर विषय पर पक्ष विपक्ष में पत्रकार मिलिन्द जी का तथ्यात्मक विश्लेषण

#लिख दिया, सो लिख दिया..


 दो पक्ष...
  
वे लोग भारत में करीब 20 करोड़ हैं। जबकि महिला डॉक्टरों और फीमेल नर्सिंग स्टाफ के सामने कपड़े उतारने वाले, अश्लील वीडियो देखने वाले, काफिरों की महिलाओं और लड़कियों के साथ कुछ भी करना जायज है ! उनके साथ कुछ भी करने से जन्नत नसीब होगी, हुक्मरान नरेंद्र मोदी को हम वजीरे आजम नहीं मानते क्योंकि इन्होंने तीन तलाक का कानून बनाकर, अनुच्छेद 370 खत्म करके और सीएए लाकर यह जता दिया की मोदी मुसलमानों को खत्म करना चाहते हैं। हमें मोदी हुकूमत की कुछ भी इमदाद मंजूर नहीं (हज की सब्सिडी छोड़ कर) यह कथन रेडिकल इस्लामिक एलिमेंट्स के हैं जो सोशल मीडिया और अन्य स्थानों पर उपलब्ध हैं। क्योंकि
ऐसे लोग बमुश्किल देश में कुछ सैकड़ा या तीन-चार हजार के आसपास होंगे। ऐसे भटके हुए, मासूमों(!) पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, देशद्रोह का कानून या आतंकवाद विरोधी संशोधित एनआईए एक्ट लगाने की आवश्यकता नहीं बल्कि इन भटके हुए, बेरोजगारी के कारण कुंठित, उदारीकरण और दक्षिणपंथी नीतियों के कारण आर्थिक विषमता, सामाजिक विषमता का शिकार नौजवानों से वार्ता करनी चाहिए। यही हमारी भारतीय संस्कृति है। हम मानते आ रहे हैं कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं। इसलिए हमें रामायण, भगवत गीता,बुद्ध, महावीर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का अनुसरण करते हुए इन मुट्ठी भर जातियों से सहानुभूति रखना चाहिए। इन्हें समझाने की आवश्यकता है, ना कि  इनसे नफरत करने की। वास्तव में  समस्या यह लोग नहीं संघ परिवार है। स्वामी दयानंद,लोकमान्य तिलक को मानने वाले, स्वतंत्र वीर सावरकर को मानने वाले लोग हैं। यदि नफरत करना ही है तो तिलकवादी, वीर सावरकरवादी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से करना चाहिए। संक्षेप में देश के लिए घातक जमाती नहीं बल्कि संघी हैं, आर्य समाजी हैं या सावरकरवादी हैं। इन्हें वैसे ही मारना या जलाना मानवता सम्मत है, जैसे 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में 59 कारसेवकों (मित्रों,तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने लगभग इसी आशय का बयान संसद में दिया था जिसे हंगामा होने पर विलोपित किया गया) को जलाना लगभग जायज था। मित्रों, पता नहीं यह याद दिलाना प्रशासन की नसीहतों का उल्लंघन है कि नहीं ! लेकिन प्रसंग निकला है तो बता दूं कि गोधरा के पीछे भी इसी तबलीगी जमात का हाथ कथित रूप से बताया गया था।
अभी भी नफरत की  जो लहर उन 20 करोड़ अल्पसंख्यकों के खिलाफ समूचे देश में महसूस की जा रही है। यही तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चाहते हैं। यही तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र  संघ से कश्मीर मसले पर हस्तक्षेप की मांग करते हुए अगस्त 2019 ने कहा था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने तब अपनी अर्जी में कहा था कि श्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गुरु गोलवलकर की विचारधारा के प्रतीक हैं। यह संघ परिवार के लोग मुसलमानों का वैसा ही सहार करना चाहते हैं जैसा हिटलर ने पिछली सदी के 30के दशक में यहूदियों का गैस चेंबर के जरिए किया था। इसलिए इन मुट्ठी भर जमातियों से नफरत कर उन्हें सजा दे कर हम पाकिस्तान और चीन के  डिजाइंड एजेंडे को ही लागू करेंगे। यानी जमा क्यों को सजा देना एक तरह से भारत के हितों के खिलाफ है यानी देश विरोधी काम है। इस समय तो होना यह चाहिए कि  मोदी और अमित शाह के हाथों बिके हुए भक्त टीवी समाचार चैनलों पर पाबंदी लगा देनी चाहिए जो ऐसी नफरत फैला रहे हैं। ऐसा करने से भविष्य में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ने का अंदेशा है इसलिए भी इन मासूम जमातियों  को माफ करना चाहिए। दरअसल, इन नादान युवाओं की गलतियों को नजरअंदाज कर हमें बुनियादी सवालों को हल करने यानी रोटी कपड़ा और मकान की चिंता करनी चाहिए। इन मासूमों को रिहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती कर इनसे दया करनी चाहिए।
यह भी हो सकता है कि यह लोग जमाती नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के लोग हूं जिन्होंने जमाती बनकर या ऐसे भटके हुए मुस्लिम नौजवानों का भेष धारण कर यह कथित आतंकवाद अंजाम दिया हो। इसकी जांच संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में होनी चाहिए कि वास्तव में ऐसा करने वाले जमाती हैं अभी कि नहीं ?
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दूसरा पक्ष..


 या तो छोटे-मोटे अपराधों में बंद निर्धन,विचाराधीन और 3 साल से गम की सजा पाए जयराम पेशा जनजातियों के लाखों कैदियों को एक अध्यादेश द्वारा रिहा कर देना चाहिए ताकि खुलेआम स्वास्थ्य कर्मियों के साथ लगभग सामूहिक दुष्कर्म जैसा लोमहर्षक जघन्य अपराध और आतंकवाद की श्रेणी में आने वाला मानवता विरोधी काम  करने वालों के खिलाफ रासुका (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) लगाना चाहिए। और क्योंकि,हजारों लोगों के खिलाफ रासुका लगानी पड़ेगी इसलिए भी उक्त उल्लेखित विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों को रिहा करना चाहिए। ताकि जेलें और उनके बैरक्स ऐसे लोगों के लिए खाली मिले। या पूरे देश में हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर कानून और व्यवस्था सेना के हाथ में दे देनी चाहिए। ऐसा करने के लिए यदि तीन चार- महीनों के लिए भारतीय नागरिकों के अधिकार भी छीनना पड़े तो गलत नहीं है। क्योंकि संविधान संशोधन करके यह प्रावधान कर दिया है कि अब देश में 1975 की तरह आपातकाल नहीं लगाया जा सकता। इसलिए हेल्थ इमरजेंसी के नाम पर नागरिक अधिकार लंबित कर कानून और व्यवस्था सेना को सौंप देनी चाहिए। संघ लोक सेवा आयोग( यूपीएससी),
राज्यों प्रशासनिक अधिकारियों के कैडर भी सेना के अधीन काम करें। ऐसे में पुलिस अपने आप ही सेना के अधीन आ जाएगी। अभी यह व्यवस्था है कि जिला दंडाधिकारी यानी कलेक्टर की सिफारिश के बाद, परिस्थितियों के अनुसार राज्यों के राज्यपाल सेना तैनाती का आदेश देते हैं। सीमित आपातकाल लगाने के बाद जिला दंडाधिकारी  यानी कलेक्टरों के अधिकार स्टेशन कमांडर या कमांड ऑफिसर्स के पास आ जाएंगे। कुल मिलाकर आमतौर पर देश की भावना यही है कि ऐसे लोगों के खिलाफ वही सख्ती बरतनी चाहिए जो निर्भया के कातिलों के साथ या तेलंगाना पुलिस ने वेटरनरी डॉक्टर दिवंगत प्रियंका रेड्डी के सामूहिक दुष्कर्म करने वालों के साथ बरती थी। यानी एनकाउंटर करना(यानी teat for tat )? क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते..
 
-मिलिंद मुजुमदार


284,न्यू उमरिया कॉलोनी
10 मकान के पीछे, ग्राम पंचायत उमरिया, थाना किशनगंज तहसील महू,जिला इंदौर मध्य प्रदेश।(मो.9754792524, मित्रों नाचीज़ ने इस बारअपना पता इसलिए दिया है कि यदि कोई शुभचिंतक साइबर क्राइम या ऑनलाइन शिकायत करना चाहे तो उसे आसानी हो। हमारे जूरिडिक्शन के आदरणीय थाना प्रभारी महोदय भी खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं)


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