मप्र : रायता फैल चुका है

 मध्यप्रदेश की सियासत पर इन दिनों भांति भांति के रंग चढ़े हैं। सत्ता में तख्ता पलट के साथ राज्यसभा चुनाव जीतने का मामला हो तो हुर्रियारों की तरह हुड़दंग मचाते नेता गण खरीदने और बिकने की भांग के कुएं में डूबे हुए हैं। नीलामी का आलम ये है कि बिकने वाले भी चुप हैं और खरीदने वाले तो मुंह में दही जमाए बैठे ही हैं। बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व राज्यसभा की दो सीटें पहले की तरह जीतना चाहता है तो दूसरी तरफ इस आड़ में पार्टी के राज्यस्तरीय नेता कमलनाथ सरकार गिराने की जुगाड़ में हैं। दूसरी इच्छा थोड़ी कमजोर लगती है। हमने पहले भी लिखा है कमलनाथ सरकार को गिराने में भाजपा आलाकमान की रुचि न पहले थी और न अब नजर आती है। उसके पीछे नाथ और मोदी शाह के कार्पोरेट मित्रों का गठबंधन भी बड़ा रोल अदा कर रहा है। पिछले एक हफ्ते से दस कांग्रेस और सपा,बसपा के साथ निर्दलीय विधायकों के गायब होने से दही मथने का जो दौर चला था उससे मक्खन निकला हो या नहीं लेकिन सूरते हाल ये बताते हैं कि रायता तो फैल रहा है। पूरा सीन राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा के साथ साफ होने का अनुमान है।
विधायकों के पाला बदलने से लेकर उनके भाजपा नेताओं के चंगुल में फंसने और उससे निकलने के पहेलीनुमा किस्से सामने आ रहे हैं। गोया कि ऐसा लगता है विधायक नहीं हो गए बल्कि दुधमुहें बच्चे हो गए हों। जिन्हें कोई भी लालीपाप टाफी और बिस्कट का पैकेट देकर बहला गया हो। मजे की बात यह है कि कांग्रेस और विधायक कहते हैं वे चंगुल में फंस गए थे। दूसरी तरफ कहा ये जा रहा है कि ये माननीय फंस गए थे या चंगुल देखकर खुद उसी में चले गए थे। कांग्रेस और खबरचियों में इस बात की पड़ताल की जा रही है कि चंगुल से निकले ये विधायक आगे कहीं भाजपा के स्लीपर सेल की भूमिका में तो नहीं रहेंगे। खबर यह भी है कि भाजपा विधायक अरविन्द भदौरिया की कांग्रेस के एक मंत्री से तीखी तकरार भी हुई है। इसमें झूमा झटकी की नौबत भी आई। भाजपा में भदौरिया को कोई लाभ हो न हो लेकिन वे नाथ सरकार के निशाने पर तो आ गए हैं। इसी तरह संजय पाठक के पास भी अब पाने के लिए कुछ हो न हो खोने के लिए उनके खनिज का पूरा साम्राज्य दांव पर है। इसी तरह ई टेंडरिंग में उलझे नरोत्तम मिश्रा भी कानूनी दांव पेंच में उलझ सकते हैं। सरकार को समर्थन देने वाले दस विधायकों में से लगभग सब की वापसी हो गई है। लेकिन जो बयान हैं उनसे लगता है वे किसी एक पार्टी को धोखा जरूर देंगे। मसलन रामबाई कहती हैं- वे झूठ बोलेंगी नहीं और सच बता नहीं सकती। इसी तरह मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद एक विधायक ने कहा है कि भाजपा से बात करने में बुराई क्या है। इसका मतलब वे आगे भी भाजपा के संपर्क में रह सकते हैं। आठ विधायकों के सरकार को दोबारा समर्थन की बात करने के बाद दो अन्य विधायक भी कांग्रेस के संपर्क में बताए जाते हैं। इस पूरे मामले में सिंधिया कैंप की खामोशी जरूर कांग्रेस को चिन्ता में डाल सकती है। लेकिन राज्यसभा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम प्राथमिकता में सबसे ऊपर आने पर उनकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी और राज्यसभा के लिए दूसरे प्रत्याशी को कामयाब करने में कमलनाथ और दिग्विजय कैंप को पूरी ताकत लगानी पड़ेगी। यहां पेंच राज्यसभा से रिटायर हो रहे दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी को लेकर है। अगर सिंह उम्मीदवार नहीं बनाए गए तो कांग्रेस का दूसरा प्रत्याशी जीतेगा इसमें संशय है। भाजपा नेतृत्व यही चाहता है कि कांग्रेस के बजाए उसके दो उम्मीदवार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो जाएं। कांग्रेस हाईकमान दिग्विजय सिंह के पक्ष में कम नजर आता है। असल झगड़ा यहीं से शुरू होता है। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के पीछे दिग्विजय सिंह की बड़ी भूमिका है। ऐसे में उनकी अनदेखी से होने वाले असंतोष को संभालना एक बड़ा काम होगा। उम्मीद की जा रही है कि असंतोष बगावत न बने इसके लिए दिग्विजय सिंह फिर पूरे महाभारत में बागियों को सिंहासन से बांधे रखने के लिए सत्ता की बौछार कर इस आग को ठंडा कर सकते हैं। 
भाजपा कैंप में सारा मामला नव नियुक्त और युवा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की अगुवाई में भी चल रहा है। लेकिन यहां उनकी स्वीकारता का सवाल पहले है। गोपाल भार्गव से लेकर कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटैल, नरोत्तम मिश्रा,प्रभात झा आदि नेता वी डी के झंडे तले फिलहाल खड़े होना स्वीकार्य नहीं कर सकेंगे। पूरे खेल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इन दोनों दिग्गजों को दरकिनार कर भाजपा प्रदेश के राजनैतिक समीकरणों को बदलपाने में मुश्किल महसूस कर रही है। 


मुख्यमंत्री को मेल मुलाकात बढ़ानी पड़ेगी...
मुख्यमंत्री कमलनाथ की कम संवाद और अकेले रहने वाली कार्यशैली के कारण सरकार में बगावत के सुर तेज हुए थे। मंत्री विधायकों के साथ संगठन के लोगों से संवाद हीनता सरकार को भारी पड़ रही है। सबको याद होगा मंत्रियों को भी समय लेकर मिलने के निर्देश हैं। साथ ही उनकी किचिन कैबिनेट में राजनेताओं की बजाए नौकरशाही का कब्जा है। इस बात का खुलासा तो उनके खासमखास मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने ही किया था। बगावत की खबरों के बीच आखिरकार उन्हें बागियों से घंटों बाते भी करनी पड़ी। कांग्रेस में लोग कहते हैं नाथ अगर पहले ही सबसे संवाद और संपर्क करते रहते तो यह नौबत ही नहीं आती। इस चेतावनी को सबक के तौर पर नहीं लिया तो समझ लीजिए संकट अभी टला नहीं है।


सत्ता में आने के बाद भूले वादे...
कांग्रेस के सरकार में आने से पहले किसानों का दो लाख तक का कर्जा माफी का वादा साल भर के बाद भी पूरा नहीं हुआ है। बारिश और ओले के कारण बुन्देलखण्ड में अंतरिम राहत की दरकार है। गेहूं खरीदी पर बोनस एक साल बाद भी नहीं मिला है। युवाओं को बेरोजगारी भत्ते,व्यापमं और ई टेंडरिंग की जांच की अभी भी दरकार है।


सियासी दौर में बेहद मौजू कविता
मुनादी...
खलक खुदा का
मुल्क बादशाह का
हुकुम शहर कोतवाल का


हर खासोआम को मालूम हो 
कि आपके रहमदिल बाश्शा ने मुल्क को जन्नत बनाने का फैसला किया है; और
इस काम में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जायेगी.
खलक खुदा का मुल्क....


बाश्शा रहमदिल है, तो उसमें अपने फैसलों को सख्ती से लागू करने का हौसला भी है.


देखी नहीं उसकी रहमदिली, कैसे उसने अपनी रियाया को ईद मनाने की छूट दी?


मगर हुक्म उदूली उसे सख्त नापसंद है, ना सुनना भी नहीं


रियाया को आगाह किया जाता है कि उसके खौफ से बचना है तो मुल्क में लागू नये निजाम पर अमल करने में कोताही न करे


और नया निजाम बेवकूफाना जम्हूरियत के फिजूल उसूलों पर नहीं, खुदा के दूत बाश्शा की मर्जी पर चलेगा
और नये निजाम का पहला और अंतिम उसूल यह है कि सवाल पूछना मना है
खलक खुदा का, मुल्क...


बाश्शा चाहते हैं कि रियाया उसके मंसूबों के मुताबिक मुल्क की बेहतरी के काम में शिरकत करे, चाहे जो भी झेलना पड़े.


तो याद रहे, मुल्क में अमन चैन कायम रहे, मुल्क तेजी से आगे बढ़े, इसके लिए रियाया को कुछ दिनों के लिए अपने दुनियावी सुखों को कुर्बान करना पड़ सकता है.


अपने बाश्शा की नेकनीयती पर भरोसा करें. उसकी रहमदिली, साथ ही हुक्मउदूली से उसकी चिढ़ और उसके खौफ को भी याद करते हुए
अपने मुल्क को जन्नत बनाने के काम में लग जायें
निजी मान सम्मान को भूल जायें
आखिर मुल्क का सवाल है
बाश्शा यह सब रियाया की बेहतरी के लिए ही तो कर रहे हैं


इस दौरान जन्नतनशीं भी हो गये, तो परवाह नहीं करनी है..


खलक खुदा का, मुल्क बाश्शा का


प्रस्तुति : श्रीनिवास


 


टिप्पणियाँ