चीन के वुहान शहर में फैले जानलेवा कोरॉना वायरस

चीन के वुहान शहर में फैले जानलेवा कोरॉना वायरस से संक्रमित संख्या वहाँ के सरकारी सूत्र जो भी बता रहे हों किंतु निश्चय ही ये संख्या लाखों तक पहुँच चुकी है तभी विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसे वैश्विक आपदा घोषित करना पड़ा।


भले ही इस वायरस से मरने वालों की संख्या अधिकृत तौर पर सैकड़ों में ही बताई जा रही हो पर जानकार बताते हैं कि चीन द्वारा बताई जा रही मृतकों की संख्या को 100 से गुणा करके ही मरने वालों का सही आँकड़ा जाना जा सकता है क्यूँकि चीन एक ऐसे देश के रूप मै जाना जाता है जहाँ से कोई भी सूचना बाहर आना बेहद कठिन है। 
 
हालात ऐसे हैं कि चीन ने इसे अपने देश के बाकी हिस्सों में  फैलने से रोकने के लिए सख्त या यूँ कहें कि निर्मम कदम उठाते हुए वुहान के वाशिंदों को वहाँ से बाहर निकलने के सारे रास्ते ही बन्द कर शहर में ही कैद कर दिया है। 
ऐसे में जो अभी तक इस वायरस के प्रभाव में नहीं हैं उनकी भी जान जाने की भारी आशंका उत्पन्न हो गई है, 
ये एक तरह से वुहान के नागरिकों को मरने के लिए छोड़ देने जैसा ही है।


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जैसे शाहीन बाग से ही फुर्सत नहीं है जो भारत सरकार के त्वरित कार्यवाही और अपने जीवन को खतरे में डाल कर वुहान में फँसे अब तक 647 भारतीयों को वापस ले आए एयरइंडिया स्टाफ और राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कर्तव्यनिष्ठ डॉक्टरों के नायकत्व और शौर्य की प्रेरक गाथा दब कर रह गई।
भारत सरकार की तारीफ इसलिए कि न केवल उसने बिना विलंब अपने नागरिकों को बचाने का निर्णय लिया बल्कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मोदी के मधुर संबंधों के चलते, चीन ने अपने बंद पड़े शहर में भी भारतीय विमान को उतरने और भारतीय नागरिकों को खुद की मेडिकल टीम से जाँच के उपरांत ले जाने की तुरंत अनुमति दी। इतना ही नहीं विमान पर सवार होने के पूर्व 6 भारतीय स्वास्थ्य परीक्षण में संदिग्ध कोरॉना वायरस से संक्रमित पाए गए जिन्हें चीन ने अपने यहाँ ही इलाज के लिए रोक लिया ताकि इस वायरस को भारत पहुँचने से रोक सके। 


मोदी सरकार के साढ़े पाँच वर्षों के कार्यकाल में ये पहला अवसर नहीं है जब सरकार ने अतिसक्रियता दिखाते हुए भारतीय नागरिकों के लिए युद्ध स्तर पर बचाव और राहत कार्य किया। 
पहले भी विदेशों के युद्ध भूमि में फँसे हजारों भारतीयों की सुरक्षित वतन वापसी कराई है। 
याद करिए जब अगस्त 2014 में लीबिया के गृहयुद्ध में फँसे उन हजारों भारतीयों और त्रिपोली में फँसी केरल की उन 44 नर्सों को जब जनरल वी के सिंह की अगुआई में सभी की सुरक्षित वतन वापसी हुई थी।


याद करिए अप्रैल 2015 को तब युद्धग्रस्त यमन में फँसे उन 5000 से अधिक भारतीयों को, जब देश की अन्य प्राथमिकताएं भूल सरकार एक बार फिर जनरल वी के सिंह को जैसे देवदूत बना कर बचाने में जुट गई थी। 
तब की1 स्थिति इतनी विकट थी कि यमन को नो फ्लाई ज़ोन घोषित कर दिया गया था। सऊदी अरब लगातार यमन के हाउथी विद्रोहियों पर हमले कर रहा था और उसी तेजी से विद्रोही भी हमलों का जवाब दे रहे थे। ऐसे में न किसी भी भारतीय अथवा विदेशी विमान का वहाँ उतरना संभव था न ही कोई भारतीय पोत वहाँ के बंदरगाहों पर पहुँच सकता था। 
तब एक बार फिर मोदी की विदेश यात्राओं से मजबूत हुए व्यक्तिगत और कूटनीतिक संबंध काम आये। 
सऊदी अरब और यमन विद्रोहियों दोनों से बात करके  भारत सरकार ने टुकड़ों में युद्ध विराम करा कर ऑपरेशन "राहत" चलाया।
भारतीय नेवी के युद्ध पोत 'आईएनएस सुमित्रा', 'आईएनएस मुंबई ', 'आईएनएस तरकश ', लगातार चार दिन 2500 मील की समुद्री यात्रा करके यमन पहुँचे। 
यही नहीं भारतीय वायुसेना के दो ग्लोब मास्टर C-17 कार्गो एयरक्राफ्ट ने एयर इंडिया के एयरबस A320 विमानों के साथ युद्धग्रस्त यमन के जिबूती एयर पोर्ट पर कई बार उतर कर बिना जाति धर्म का भेद किए हर भारतीय की सुरक्षित वतन वापसी सुनिश्चित की। 
इतना ही नहीं भारतीय जांबाजों ने अमेरिका और यूरोप के भी सैकड़ों नागरिकों को वहाँ से बाहर निकाला।


अगर इतना याद आ ही गया है तब 1990 की वी पी सिंह के दौर को भी याद कर लीजिए जब इराक़ी प्रमुख सद्दाम हुसैन की फौजों ने कुवैत पर हमला कर कब्जा कर लिया था। 
उस समय वहाँ लगभग दो लाख भारतीयों के जान पर बन आई थी। 
उन्हें वहाँ से सुरक्षित निकालने में तत्कालीन वी पी सिंह सरकार ने हाथ खड़े कर दिए थे और तब के महानायक और नेता विपक्ष राजीव गाँधी ने भी उन पर इसके लिए कोई दबाव नहीं बनाया क्यूँकि देशवासियों से ज्यादा उन्हें सत्ता से प्रेम था और वो चन्द्रशेखर के साथ वीपी सिंह सरकार को गिराने के तिकड़म में जुटे थे।


संकट की उस घड़ी में तब वहाँ पर टोयटा कम्पनी की साझीदार कम्पनी में एम डी के पद पर कार्यरत केरल से आने वाले भारतीय "माथुनी मैथ्यूज" हीरो बन कर उभरे और अपने एकल प्रयास से एक लाख सत्तर हजार भारतीयों को कुवैत से बाहर निकाला। 
जो इतिहास का सबसे बड़ा बचाव अभियान बना और गिनीज बुक में दर्ज भी हुआ। 
कुछ वर्षों पहले इसी घटना पर अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म "एयर लिफ्ट" भी आई थी ।


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