सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए दोषियों को अदालत में अपील दाखिल करने के लिए मिली 60 दिन की समयसीमा पूरी होने से पहले ही सजा की तामील के लिए निचली अदालतों की ओर से ब्लैक वारंट किए जाने पर सवाल उठाया है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 2015 के एक फैसले का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि किसी दोषी के खिलाफ मौत का वारंट 60 दिन की उस अवधि के पूरे होने से पहले जारी नहीं किया जा सकता, जो दोषी को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने के लिए मिली है।
पीठ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि इस संबंध में एक फैसला रहने के बावजूद निचली अदालतें ब्लैक वारंट जारी करने के आदेश कैसे पारित कर रही हैं। किसी को तो यह समझाना ही पड़ेगा। न्यायिक प्रक्रिया को इस प्रकार से होने नहीं दिया जा सकता।
पीठ ने बलात्कार और हत्या के दोषी अनिल सुरेन्द्र सिंह यादव के खिलाफ गुजरात की सत्र अदालत द्वारा जारी ब्लैक वारंट पर रोक लगा दी।
साथ ही पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस संबंध में सहायता करने को कहा और उनसे उच्चतम न्यायालय के अदेश के बावजूद मृत्यु वारंट जारी होने के कारणों का पता लगाने को कहा।
क्या था मामला
दोषी अनिल यादव ने 14 अक्टूबर 2018 को सूरत में पड़ोस में रहने वाली साढ़े तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी थी। इस मामले में निचली अदालत ने 31 जुलाई 2019 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने भी उसकी सजा बरकरार रखी थी। इसके बाद निचली अदालत ने डेथ वॉरंट जारी कर उसे 29 फरवरी को सुबह 6 बजे अहमदाबाद की साबरमती जेल में फांसी देने का आदेश दिया। दोषी अनिल ने सजा के खिलाफ 14 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
अपील की अवधि पूरी होने से पहले ही दुष्कर्म के दोषी को मृत्यु वारंट, सुप्रीम कोर्ट सख्त
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