टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन एवं सीए शाखा इंदौर द्वारा 'ए-आई' के इस युग में टैक्स प्रोफेशन की चुनौतियाँ एवं गीता ज्ञान से समाधान; विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसे गीता पर कई रिसर्च कर चुके एवं असीमित गीता के लेखक सीए असीम त्रिवेदी ने सम्बोधित कियाl
टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के मानद सचिव सीए डॉ अभय शर्मा ने कहा कि चुनौतियाँ किसी भी व्यवस्था का अंग होती हैं लेकिन जब इसकी आवृत्ति बड़ने लगती तो कहीं न कहीं नैराश्य का कारण बनती हैं। कुछ ऐसा ही टैक्स प्रोफेशन में देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से फेसलेस रिजीम, ऑटोमेशन, ऑनलाइन जैसे कई मूलभूत परिवर्तनों ने प्रैक्टिस के स्थापित सिद्धांतों को बदलने पर मजबूर किया है तथा कहीं न कहीं कर सलाहकारों को परेशानी में डाला ही है। कहते हैं गीता में सभी परेशानियों का हल है तथा निश्चित रूप से हम गीता ज्ञान से हर व्यावहारिक समस्या का हल निकाल सकते हैंl
टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सीए जे पी सराफ ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता में जीवन के कई महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। यह आध्यात्मिक मार्गदर्शिका है जो कर्म, धर्म, ज्ञान, भक्ति, और मोक्ष के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि सिर्फ टैक्स प्रोफेशन ही नहीं वरन संसार की सारी समस्याओं का हल गीता में उपलब्ध हैl
सीए असीम त्रिवेदी ने कहा कि हर तरफ बदलाव की आंधी चल रही है। महाभारत से सम्बन्धित प्रसंग बताते हुए कहा कि जब युद्ध भूमि में अर्जुन ने यह सोचा कि वह अब कुछ भी नहीं कर सकते, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें स्मरण दिलाया कि उनका कर्तव्य है युद्ध करना – परिस्थितियाँ कैसी भी हों। आज की बदलती प्रणाली भी अर्जुन की तरह हमें भ्रमित कर सकती है, परन्तु हमारा उत्तरदायित्व यही है कि हम अपने कार्य को नवीन साधनों और तकनीकों के साथ करते रहेंl नयी तकनीक का प्रशिक्षण लें। ग्राहकों को डिजिटल सहायता देने में कुशल बनें। परामर्श की भूमिका को ‘मानवता से युक्त तकनीकी सहायता’ की तरह समझें।परिवर्तन को विरोध नहीं, सहयोग से ही रूपांतरित किया जा सकता हैl
जीवन में असफलता के प्रश्न पर सीए त्रिवेदी ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता का प्रसंगिक श्लोक अध्याय २, श्लोक १४: में लिखा है
"मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदा:।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥"
अर्थात हे अर्जुन! सर्दी-गर्मी, सुख-दुख आदि इन्द्रियों के स्पर्श से उत्पन्न होने वाले अनुभव हैं, जो आते-जाते रहते हैं – ये नश्वर हैं। अतः हे भारतवंशी! तू उन्हें सहन कर। असफलता जीवन के ताप और ठंड की तरह है – एक अनुभव, जो आता है और चला जाता है। गीता यह नहीं कहती कि दुख मत आओ, या असफलता न आये – बल्कि यह सिखाती है कि जब वह आये, तो हम स्थितप्रज्ञ रहें – समभाव में टिके रहें।असफलता में हमें यह जानने को मिलता है कि कौन-सा प्रयास पूर्ण नहीं था, कहाँ परिवर्तन चाहिए। श्रीकृष्ण हमें सहनशीलता (तितिक्षा) और विवेक के साथ हर अनुभव को देखने की दृष्टि देते हैं l
टैक्स प्रोफेशन में ए-आई के बढ़ते दखल पर उन्होंने बताया कि जब अर्जुन युद्धभूमि में अपने शस्त्र त्याग देता है और कहता है कि वह युद्ध नहीं करेगा, तब श्रीकृष्ण उसे कर्म और धर्म का बोध कराते हैं। यदि अर्जुन भी बाह्य स्थितियों से भयभीत होकर अकर्मण्य हो जाता, तो धर्म का संस्थापन न हो पाता। उसी प्रकार यदि टैक्स प्रोफेशन में ए आई आ भी रही है, तो उसका सामना करके, स्वयं को पुनः प्रशिक्षित करके और अपनी भूमिका को परिभाषित करते हुए कर्म करना ही उचित होगा। असीमित गीता के अनुसार अध्याय २ में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी परिवर्तन से घबराने की नहीं, बल्कि अपनी स्वधर्म और कर्म के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है। ए आई एक उपकरण है – और जब तक मनुष्य उसमें विवेक, नैतिकता और जटिल व्याख्या का समावेश करता है, तब तक उसकी आवश्यकता बनी रहेगी। असीमित गीता यह बतलाती है कि यंत्रों से नहीं, विवेक से युक्त बुद्धि से कर्म करना ही समाधान है। ए आई से डरने की नहीं, उसे अपनाकर और आगे बढ़ने की आवश्यकता है। आप सीखते रहें, नवाचारों से जुड़ें, और अपने 'मानव' मूल्य – जैसे संवेदना, समझदारी और निर्णय शक्ति – को अपना सबसे बड़ा बल बनाएं।
सेमिनार का सञ्चालन टीपीए के मानद सचिव सीए डॉ अभय शर्मा ने किया l धन्यवाद् अभिभाषण सीए उमेश गोयल ने दियाl इस अवसर पर सीए अजय सामरिया, सीए एस एन गोयल, सीए एवं सीनियर एडवोकेट सुमित नेमा, सीए दीपक माहेश्वरी, सीए सुनील पी जैन, सीए अभिषेक गांग सहित बड़ी संख्या में सदस्य उपस्थित थे।
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