देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती एवं विश्व मातृ दिवस के उपलक्ष्य पर राष्ट्रीय विमर्श “मातृशक्ति पुण्यश्लोका माता अहिल्याबाई का समग्र अवदान” विषय पर आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन, भारत एवं वेद फाउंडेशन, भारत द्वारा आयोजित किया गया।
प्रो. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति एवं प्रबंध निदेशक, आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन, भारत ने माता अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अपने प्रस्तावना वक्तव्य में कहा कि माता अहिल्याबाई का जीवन राष्ट्र, भक्ति और सामाजिक संवेदनशीलता पर केंद्रित रहा उन्होंने जेंडर संवेदनशीलता को अग्रसर करने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए, उन्होंने महिलाओं को प्रशासन में भाग लेने का अवसर दिया और यह साबित किया कि महिलाएं भी कुशल प्रशासक हो सकती हैं । प्रो. शुक्ला ने कहा कि माता अहिल्याबाई के द्वारा किए गए समाज सुधार कार्य एवं उनका जेंडर संवेदनशील होना उनको न्यायप्रिय और कुशल प्रशासक बनाता है। उनके द्वारा लिए गए कई महत्वपूर्ण निर्णय समाज में बदलाव लाये, उनकी नीतियां आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, खासकर महिला सशक्तिकरण और समावेशी प्रशासन के संदर्भ में।
प्रो. रेखा आचार्य, निदेशक, दीन दयाल उपाध्याय कौशल केंद्र, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर ने मुख्य वक्तव्य प्रदत्त करते हुए कहा कि पुण्यश्लोका मातोश्री अहिल्या बाई होल्कर के शासन काल को एक ऐसे स्वर्णिम काल के रुप में रेखांकित किया जाता है जो ना केवल प्रशासनिक कुशलता तथा सुशासन के लिए प्रख्यात हुआ बल्कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक समृद्धी औऱ न्यायिक धर्म स्थिरता के लिए भी पहचाना गया। उन्हें एक न्याय प्रिय औऱ शक्तिशाली शासक के रूप में भी जाना जाता है। उनकी युद्ध नीति, कूट नीति और सामाजिक-आर्थिक नीति के सभी कायल थे। प्रो. आचार्य ने कहा कि माता अहिल्याबाई ने अपने राज्य के क्षेत्रीय विस्तार की बजाय धार्मिक आस्था के विस्तार, महिला सशक्तीकरण तथा उत्कृष्ठ और न्यायप्रिय शासन को प्राथमिकता दी।
विषय विशेषज्ञ डॉ. सीमा अलावा, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त, इंदौर ने देवी अहिल्या माँ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका संपूर्ण जीवन समाज के प्रति समर्पित होकर लोक कल्याण से ओतप्रोत था तथा उनके राजकीय निर्णयों में महिला भागीदारी , सामाजिक न्याय एवं समानता ,स्वशासन , महिला सशक्तिकरण की बात सशक्त की तथा अपने राज्य को सुरक्षित करने हेतु किए गए प्रयासों जिसमे युद्ध कोशल के साधन और क़िले की स्वयमेव सुरक्षा की दूरदर्शिता को बताया , शिव को साक्षी मानकर उनके राजनीतिक निर्णयों के सम्बन्ध में भी चर्चा की।
विषय विशेषज्ञ प्रो. कुसुम त्रिपाठी, वरिष्ठ साहित्यकार एवं नारीवादी चिंतक, ठाणे द्वारा अपने वक्तव्य में कहा कि अहिल्याबाई जिन्होंने ने १८ वीं सदी में जब महिलाओं का रीतिकालीन राज दरबारी कवि बिहारी जैसे कवि नख-शिख वर्णन कर रहे थे, ऐसे काल में जब महाराष्ट्र के पेशवा ब्राह्मण के शासनकाल के अधीन अहिल्याबाई शासन कर रही थी जो घोर पितृसत्तात्मक व्यवस्था के समर्थक, जाति प्रथा के हितैषी और दलितों के घोर विरोधी थे। दलितों को गले में हांडी बांधनी पड़ती थी जिसमें वे थूंक सके , उन्हें जमीन पर थूंकना मना था, कमर में झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि उनकी परछाई से गंदी हुई जमीन साफ हो जाएं। जिन्होंने विधवाओं का बाल कटवाकर उन्हें अशुभ कहकर सफेद साड़ी में एक समय खाना देने और घर के पिछवाड़े में रहने का नियम बनाया था वो विधवा औरत शासन संभाला रही थी। अहिल्याबाई ने पेशवा राज के विरोध में जाकर महिलाओं के लिए शिक्षा , विधवाओं को संपत्ति में अधिकार,, आदिवासियों, दलितों को कुटीर उद्योग, हथकरघा और कपास की खेती से जोड़ा। उन्हें जमीनें दी,और प्रशिक्षित किया। उन्होंने लिखा दिया कि मात्र शस्त्र बल से ही दुनिया को नहीं जीता जा सकता, बल्कि प्रेम और धर्म के बल पर भी राज किया जा सकता है।
डॉ. मारकण्डेय राय, अध्यक्ष, वेद फाउंडेशन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में माता अहिल्याबाई के धार्मिक – सामाजिक कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माता अहिल्या बाई इनके साथ-साथ आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ऊपर रहकर स्त्री सत्ता में रहते हुए कोमलता, ममत्व और सामाजिक उत्थान को नहीं छोड़तीं थीं। वह लगातार समाज, राष्ट्र और जनता के लिए कार्य करती रहीं वह निर्भीक, निडर और न्यायप्रिय कुशल प्रशासक थीं। उन्होंने कहा दोनों संस्थाओं द्वारा यह आयोजन उनके अवदान को लोगों तक विस्तारित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है।
अंत में धन्यवाद संस्था के कार्यकारी प्रबंधक, लव चावड़ीकर द्वारा प्रदत्त किया गया। राष्ट्रीय विमर्श में देश के अलग-अलग स्थानों से शिक्षा जगत के लोग, मीडिया प्रतिनिधि, साहित्यकार, शोधार्थी एवं सामाजिक कार्यकर्ता आदि एक सैकड़ा से अधिक लोगों ने प्रतिभागिता की।
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