"रिसोर्ट मे विवाह" की परंपरा जो बनती जा रही है एक नई सामाजिक बीमारी

 




कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है! अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं!

शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिये जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है। आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। जिसके पास चार पहिया वाहन है वही जा पाएगा, दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। 

दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी हैं, किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है! किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है! किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है! और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!!!!!!! इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है! सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!!!!!!!


महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं और बाकी की सब रस्मों में भाग लेने से अधिक अहमियत कोरियोग्राफी की ट्रेनिंग में भाग लेने को दी जाती है। 



मेहंदी लगाने के लिए भी महंगे आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं: मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है, जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है या फिर लोअर केटेगरी का माना जाता है।

अब हम बात करते हैं हल्दी की रस्म की: इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है, उसकी इज्जत कम होती है।

इसके बाद वर निकासी होती है: इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडितजी को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते हैं, वो लोग बारात प्रोसेशन में 5 से 10 हजार नाच गाने पर उड़ा देते हैं ।

इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है: स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे,,,,,, आजकल स्टेज पर धुंए की धूनी छोड़ देते हैं!!!!!!!!!!  दूल्हा दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है, बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं, साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती है ।



स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता हैउसमें प्रीवेडिंग शूट की वीडियो चलती रहती है, जिसमें यह बताया जाता है कि शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और उल्टे सीधे कपड़े पहन कर---- 

कहीं चट्टान पर,   कहीं बगीचे में,    कहीं कुएं पर,    कहीं बावड़ी पर,    कहीं श्मशान में, कहीं नकली फूलों के बीच------- इस तरह से फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करवा कर आती है, जैसे किसी फिल्म की शूटिंग करके आई हो। लोग भी चटकारे ले- लेकर इस प्री वेडिंग शूट को देखते हैं।

प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं: जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!  क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!! मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!!!!! रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं, सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं और यही अमीरियत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकती है। कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं, परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता है।  वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!



एक और बात जो मुझे लगता है बहुत जरूरी है: इस तरह से रिसॉर्ट या मैरिज हॉल में शादी को लेकर जो बात है, वह हमारी सनातन संस्कृति में एक परंपरा है कि जब लड़की विदा होती है तो वह चावल के दाने पीछे की ओर डाल कर जाती है और चावल जिसे अक्षत भी कहते हैं उसे पीछे की ओर डालते हुए जाने का मतलब यह होता है कि लड़की अपने घर की लक्ष्मी की वृद्धि करते हुए जा रही है। जब शादियां घरों में होती थी तो लक्ष्मी घर में रहती थी इस परंपरा के कारण पर अब जब शादियां मैरिज हॉल और रिसॉर्ट में होने लगी है तो जाहिर है, लक्ष्मी उन रिसॉर्ट मालिकों और मैरिज हॉल के मालिको के पास ही आएगी, आपके पास नहीं। यह देखा भी जा सकता है जब हम मैरिज हॉल और रिसॉर्ट के मालिकों की संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई देखते हैं।  हमारी संस्कृति को हर तरह से दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है!!

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है,  पैसा आपका है ,  कमाया आपने है, आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं, पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं!    कर्ज लेकर या अपनी जीवन भर की जमा पूंजी अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत कीजिए।   जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा कीजिए क्योंकि 4 -5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है, यह भी याद रखना चाहिए। दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!    अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू कीजिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

जय हिन्द जय भारत!

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