आशीष यादव, धार
आजकल भौतिकता की आँधी में हर कोई उड़ा चला जा रहा है ।अधिकांश लोगों को उनके जीवन का न तो उद्देश्य पता है, और न ही जीवन का लक्ष्य । वर्तमान युवा पीढ़ी सोशल मीडिया, महँगे मोबाइल,गाड़ी ,शानदार कपड़े, वीकेंड की पार्टियाँ व भौतिक सुविधाओं को ही जीवन का अंतिम सत्य और लक्ष्य मान रही है ।आज के कुछ युवाओं का मन चकाचौंध की दुनिया में ऐसा फँस गया है कि इन्हें अपने आने वाले कल का भान तक नहीं है ।
यह तो बात रही भोग की , आओ अब बात करतें हैं सहयोग की , कि कैसे मदर टेरेसा ने लोगों को सहयोग करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया ।1910 को अल्बानिया में जन्मीं, पॉंच भाई बहनों में सबसे छोटी थीं । इनके पिता का 9 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया। एवं 19 वर्ष की उम्र में भारत के दार्जिलिंग पहुँच कर शिक्षा लेना शुरू किया । फिर वहीं पढ़ाने भी लगीं । 1942 में बंगाल में अकाल पड़ने तथा युद्ध में घायल लोगों की मददसे शुरू ,उनका सेवा कार्य बाद में 1950 में मिशनरी ऑफ़ चैरिटी की स्थापना के बाद निरंतर बढ़ता ही रहा ।
मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दीन-दरिद्र, कुष्ठ रोगी, बीमार,असहाय और ग़रीबों की सेवा में बिता दिया।कहते हैं कि मदर टेरेसा एक सच्ची मॉं की तरह कुष्ठ रोगियों की सेवा करती थी ।सन 1997 में इनकी मृत्यु तक मदर टेरेसा के 130 देशों में 610 फ़ाउंडेशन काम कर रहे थे ।इनके सेवा कार्य को देखते हुए 1979 में नोबेल पुरस्कार तथा 1980 में भारत रत्न तक दिया गया ।
सहयोग के लिए धन से ज्यादा , अच्छे मन की जरूरत होती है ।भगवान ने सभी को मदद की सामर्थ्य नहीं दी है। यदि परमात्मा ने आपको जरा भी काबिल बनाया है, तो उसके सच्चे प्रतिनिधि की तरह अपनी जिम्मेदारी जरूर निभाइएगा ।वैसे भी सहयोग करने वाले लोग, इस दुनिया में हमेशा खुश रहते हैं ।यदि आपके जीने से ,और भी लोग जीवन जीते हैं तो समझिए कि जीवन सार्थक हुआ है ।अन्यथा केपीएम अर्थात् खाओ,पियो,मर जाओ के जीवनों की गिनती ही नहीं है ।
लेखक- नागेश्वर सोनकेशरी ने पूर्व में अद्भुत श्रीमद्भागवत ( मौत से मोक्ष की कथा ) की रचना भी की है ।
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