प्रभु के प्रभार वाले जिले में कोई स्वास्थ्य सुविधा पर ध्यान देने वाला नहीं, राम भरोसे जिला अस्पताल जिम्मेदार अधिकारी नही ध्यान

 आशीष यादव, धार

सरकारी डॉक्टर कर निजी अस्पताल में इलाज

जहा एक सरकार करोड़ो की योजना बनाकर जनता को सुविधाए देनी की बात करती है मगर जमीनी हकीकत यह है कि सरकार की पगार लेकर निजी अस्पतालों में इलाज करने जाते है मगर जिम्मेदार सिविर सर्जन कुंभकर्ण की नींद सोये है पूर्व में भी इस हॉस्पिटल में निजी अस्पताल को लेकर भी मरीजो व डॉक्टरों में विवाद हो गए है। राज्य सरकार ने शासकीय डॉक्टरों के निजी अस्पताल और नर्सिंग होम में जाकर ईलाज करने पर प्रतिबंध लगा रखा  है मगर जिला अस्पताल में यहां के जिम्मेदार एसी गाड़ी व रूमो में बैठकर कार्य ओर हास्पिटक में नही देखरेख कर रहे है वही  जिला अस्पताल के अधिकाँश डॉक्टरो ड्यूटी समय में निजी नर्सिंग होम में जाकर ईलाज कर मरीजों की कोई देखने वाला नही ओर जिला अस्पताल में आये मरीजो प्रलोभन देकर निजी नर्सिंग होम में लेजाया जाता है वही सरकारी ड्यूटी के समय उपचार व ऑपरेशन के लिए रैफर कर प्रायवेट नर्सिंग होम में जाकर उपचार करते है। पूर्व मे कही डॉक्टर ड्यूटी समय में प्राइवेट हॉस्पिटल के ऑपरेशन थियेटरो देखे गए थे जिसका वीडियो भी वायरल हुआ था। उस समय भी प्रकरण की शिकायत प्रमाण के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ अनसुइया गवली को की गई थी। 

जिला अस्पताल कोई देखने वाला नही:

जिला अस्पताल में  जमीनी हकीकत जानने के लिए सवादाता जिला अस्पताल  में पहुंचा और ड्यूटी डॉक्टरो की जानकारी ली मगर अधिकांश डाक्टर तो अपने केबिन में मौजूद नही थी वही वहां मौजूद कर्मचारी से पूछा गया तो डॉ डयूटी चार्ट की जानकारी मिल जायेगी मगर डयूटी पर अधिकार मौजूद नही थे। मगर जिम्मेदार भी इस ओर ध्यान देने को तैयार नही है वही यह कहता है नियम वह अपने निजी निवास पर ड्यूटी समय के बाद मरीजो का उपचार कर सकता है। ट्रामा सेंटर के अधिकाश कक्षो में डॉक्टर अपनी कुर्सी पर मौजूद नही थे । एक अन्य महिला चिकित्सक सयोगि बैठे हुए थे। एक्सरे रूम में भी कोई डाक्टर मौजूद वही दोपहर बाद चले जाते है फिर  तीन चार आते हैं जब तो मरीज हास्पिटल से चले जाते है वही कही मरीज तो ।फोन लगाकर डाक्टरो को बुलाते है

ऑपरेशन का लेते है ठेका 

पूर्व के दो प्रकरण में मरीजों से मिली जानकारी के अनुसार दो बच्चे ऑपरेशन से होने के बाद तीसरा बच्चा भी ऑपरेशन से करने के लिए 25 से 30 हजार रुपये में सरकारी डॉक्टर ठेका लेकर प्रायवेट हॉस्पिटल में भर्ती कर उपचार व ऑपरेशन करते है। सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों को प्रायवेट निजी नर्सिंग होम में ले जाकर ऑपरेशन किया जाता हैं। प्रायवेट हॉस्पिटल की यह पूरी राशि उन्हें नहीं मिलती हैं इसमें अन्य चिकित्सक व निजी नर्सिंग होम के ऑपरेशन थियेटर व वार्ड का चार्ज दवा गोली भी शामिल रहता है। ड्यूटी टाइम जिला अस्पताल में बैठकर आदिवासी गरीब महिलाओं और आम जनता का उपचार करें। राज्य सरकार आपको शासकीय सेवा के बदले में अच्छा खासी त्वंखा भी देते   हैं फिर भी जिला अस्पताल के आदिवासी गरीब मरीजो को बहला फुसलाकर प्रायवेट हॉस्पिटल में क्यो ले जाने की सलाह देते हो यह डॉक्टर सरकारी अस्पताल में कम ड्यूटी टाइम में प्राइवेट हॉस्पिटल में ही दौड़ लगाते रहते हैं। 

अस्पताल बना दलालों अड्डा

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल का प्रसूति वार्ड के अलावा पुरुष सर्जिकल वार्ड के कर्मचारी प्रायवेट हॉस्पिटल के प्रबंधन, डॉक्टर व स्टॉफ से मिले हुए हैं। जिला अस्पताल में मरीज उपचार के लिए आते हैं और अस्पताल के कर्मचारियों के द्वारा प्रायवेट हॉस्पिटल वालों को फोन लगाकर बुला लिया जाता है और मरीजो को अच्छा उपचार नहीं होने का भय दिखाकर उन्हें प्रायवेट हॉस्पिटल में रैफर करने के लिए प्रेरित करते हैं। जिला अस्पताल के वार्डो में प्राइवेट हॉस्पिटल के कर्मचारी दलाल दिन व रात में घूमते हुए देखे जा सकते हैं और मरीजो को रैफर करके ले जाते हुए भी दिखाई देते हैं और जिला अस्पताल के कर्मचारियों को कमीशन के रूप में  राशि मिल जाती हैं। प्रायवेट हॉस्पिटल वाले उपचार व ऑपरेशन के नाम पर हजार रुपये तक ऐंठ लेते हैं। इसकी जानकारी जिला अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारियों को भी है। मगर वह भी शुभ लाभ हो जाता है पूर्व में कही जांच भी हो चुकी हैं मगर आज तक कोई जांच पर आंच नही आई है जिला अस्पताल के कई कर्मचारी प्रायवेट हॉस्पिटल वालो से मिले हुए हैं। वही मरीजो को कहते है अस्पताल में यह ऑपरेशन नहीं होगा यह भी कहते है  यह सब जानकारी जिला अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारी को होने के बाद भी आंख बंद करके बैठे हुए हैं। सभी को पता है कौन सा डॉक्टर कौन से प्रायवेट हॉस्पिटल में मरीजो को रैफर कर रहे हैं। जिला अस्पताल से नदारद रहते है उनकी कुर्सियां खाली पड़ी रहती हैं और मरीज डॉ को ढूढते रहते हैं।

कोई नही दे रहा ध्यान:

जिला अस्पताल की व्यवस्था व दुर्दशा के लिए जिम्मेदार अधिकारी शासकीय योजनाओं की राशि का बंदरबांट करने में बिजी रहते हैं। राज्य सरकार से करोड़ो रूपये की राशि स्वीकृत होकर आती हैं और मशीनों व उपकरण के रखरखाव के नाम पर फर्जी बिल लगाए जाते हैं और कोरोना काल में अस्थायी कर्मचारियों की भर्ती के मामले में भी घोटाले की खबर है। बाद में कुछ अस्थायी कर्मचारियों को हटा दिया गया। इसी प्रकार जिला अस्पताल के एक कर्मचारी का वेतन नेताजी के कहने से व तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश पर रेडक्रॉस से निकाला जा रहा है! जिसकी जांच की जाना चाहिए। रेडक्रॉस के फंड का दुरुपयोग किया जा रहा है। तत्कालीन सीएमएचओ व सिविल सर्जन स्थानांतरित या सेवानिवृत्त होने के बाद मंहगे शासकीय सामान को अपने साथ ही ले गए। जिला अस्पताल के रिकॉर्ड में मंहगे सामान को नष्ट होना बता दिया जाता है। मरीजो के लिए आई दूध की थैली से लेकर किराना सामान भी नहीं बचता है। सामान की बंदरबांट होती रहती हैं।

एक अधिकारी दो जिम्मेदारी

वही जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं प्रभारियों के भरोसे है मगर प्रभारी भी एक कही व्यक्ति दो पदों पर है जो कि सिविल सर्जन के साथ सीएमएचओ भी है जो एक साथ दोनों जगह नही रहे सकते है वही सीएमएचओ कार्यालय बैठते है तो जिला हॉस्पिटल में काम नही होता है वही भोज हॉस्पिटल में बैठते है तो वहां का काम नही होता वही जिले के जिम्मेदार कलेक्टर को सीएमएचओ का पद किसी जिम्मेदार अधिकारी को देना चाहिए जिसे जिले की स्वास्थ्य सेवाएं सुधर सके मगर जिम्मेदार भी इस ओर अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नही है पूर्व में सीएमएचओ चौधरी थे उनके बीमार  होने के बाद वापस ज्वाईन किया मगर उनको सीएमएचओ का पदभार नही दिया गया वही मालवीय के बाद जिले का सीएमएचओ के साथ सिविल सर्जन भी है जो के एक साथ दो काम कर रहे है मगर इनके आपसी खींचतान के चक्कर मे  जिले की स्वास्थ्य सेवाओं पर इसका प्रभाव पड़ रहा है।

राज्यपाल के दौरे के कारण कुछ डॉक्टर माडू थे और कुछ मरीजो को देख रहे होंगे वही हमे सभी डॉक्टरों की बैठक भी ली है जिसमे हमे सभी को आदेशित किया है कि ड्यूटी समय में हॉस्पिटल में रहकर अपने कार्य करें।   ~~ डॉक्टर एमएल मालवीय सिविल सर्जन  व सीएमएचओ धार 





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