पर्यटन,संस्कृति एवं आध्यात्म मंत्री सुश्री उषा ठाकुर जी ने किया ‘वीर पुत्र महाराणा प्रताप शोध पीठ’ का उद्घाटन


 युवा पीढ़ी को महाराणा प्रताप के जीवन मूल्यों से अवगत करायें- मंत्री सुश्री उषा ठाकुर

महू। ‘आज का दिन पावन है जब हम वीर पुत्र महाराणा प्रताप की जन्म जयंती मना रहे हैं. प्रताप जी का भारतीय जीवन शैली, संस्कृति और राष्ट्र के प्रति जो जीवन दर्शन है, वह हमें हमेशा से प्रेरित करता रहा है. आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारी युवा पीढ़ी को  महाराणा प्रतापजी के शौर्य के साथ उनके जीवनमूल्यों से अवगत कराएं.’ यह बात मध्यप्रदेश की संस्कृति, पर्यटन एवं आध्यात्म मंत्री मध्यप्रदेश शासन सुश्री उषा ठाकुर ने कहा। सुश्री ठाकुर आज महाराणा प्रताप के 481वीं जन्मदिवस के अवसर पर डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय, महू, वीरपुत्र महाराणाप्रताप शोध पीठ, मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग मध्यप्रदेश शासन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित कर रही थीं. इस अवसर पर मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने विश्वविद्यालय में स्थापित ‘वीर पुत्र महाराणा प्रताप शोध पीठ’ का औपचारिक उद्घाटन किया.
वीर पुत्र महाराणा प्रताप की जन्म जयंती के अवसर पर ‘महाराणा प्रताप की युद्ध रणनीति एवं व्यूह कौशल : एक अभिनव दृष्टिकोण’ विषय का आरंभ करते हुए प्रो. डी.के. वर्मा ने विश्वविद्यालय में शोध पीठ की स्थापना की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए बताया कि जब उन्होंने इस संदर्भ में अवलोकन किया तो पाया कि महाराणाप्रताप जी के कई उजले और शौर्य पक्ष को अनदेखा किया गया है. वे इसे भारत के इतिहास का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष बताते बताया। उन्होंने कहा कि इतिहास का पुर्नेलेखन वर्तमान समय की जरूरत है ताकि युवाओं को अपने इतिहास की सही और तथ्यात्मक जानकारी मिल सके.
संगोष्ठी के प्रारंभ में प्रोफेसर रवीन्द्र शर्मा ने वीर पुत्र महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालते हुए ऐसे अनेक पक्ष तथ्यपरक रूप से सामने लाया जिसके बारे में भारतीय समाज आज भी अनजान है. प्रोफेसर शर्मा का कहना था कि भारतीय इतिहास के वे सबसे बडे और सर्वमान्य जननायक हैं. उन्होंने सभी वर्गों को साथ लिया और उनकी योग्यता के अनुरूप सम्मान दिया. उन्होंने कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. मुगलों के सामने वे कभी झुके नहीं और उनकी युद्ध रणनीति से मुगल शासक हमेशा चकित रहते थे. मुगल शासक क्या करने वाले हैं और किस तरह आक्रमण करेंगे, यह प्रतापजी को ज्ञात होता था लेकिन प्रतापजी किस तरह हमला करेंगे, यह मुगलों के लिए हमेशा पहेली बनी रही. करीब 55 वर्षों से महाराणाप्रताप पर शोध कार्य कर रहे प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि पूरे भारत वर्ष में ऐसा कोई शहर नहीं होगा जहां उनके नाम की संस्था ना हो. आज आवश्यकता है कि महाराणा प्रताप जी के नाम पर सैन्य विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए.
संगोष्ठी में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल दुष्यंत सिंह ने कहा कि गोरिल्ला युद्ध का जो स्वरूप आज हम देखते हैं, वह वीर पुत्र महाराणा प्रताप ने अपने समय में ही बना लिया था. गुरिल्ला युद्ध महाराणा प्रताप के युद्ध रणनीति का अहम हिस्सा था जिसकी वजह से हमेशा मुगल शासकों को पराजय का मुंह देखना पड़ता था या पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ता था. उन्होंने कहा कि नए जमाने में युद्ध की रणनीति बदल रही है लेकिन महाराणा प्रतापजी की गुरिल्ला युद्ध नीति आज भी कारगर है. उन्होंने इतिहास लेखन के बारे में कहा कि इतिहास हमेशा जीतने वालों का लिखा जाता है और हुआ भी यही है. उन्होंने इस बात की उम्मीद जाहिर किया कि वीर पुत्र महाराणाप्रताप शोध पीठ एक नई दृृष्टिकोण के साथ युवाओं के समक्ष इतिहास के अनछुये पहलुओंं को सामने लाएगा. उन्होंने इस बात की जरूरत बतायी कि प्रतापजी के शौर्य गाथा सुनकर जिस तरह मैं सेना में भर्ती हुआ, वैसे ही जोश और उमंग हमारे नौजवानों में संचार करने की आवश्यकता है.
डॉ. जयंत मिश्रा कसंलटेंट ड्रग लॉ इनर्फोसमेंट ने पीपीटी के माध्यम से वीर पुत्र महाराणा प्रताप के शौर्य एवं उनकी कौशल रणनीति को बारीकी से प्रस्तुत किया. उन्होंने महाराणा प्रताप के युद्ध में मेवाड़ के आदिवासियों के सहयोग का उल्लेख करते हुए अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुस्तकों का उल्लेख किया. महाराणा प्रताप एग्रीकल्चर एवं टेक्नालाजी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौर ने महाराणा प्रताप के बारे में अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उनके पूर्वजों ने उन्हें सिखाया था कि प्रतिदिन प्रात: प्रतापजी को नमन करना नहीं भूलना. मेवाड़ और राजस्थान में प्रतापजी प्रात:वंदनीय हैं. उन्होंंने एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि इब्राहिंम लिंकन भारत की यात्रा पर आने वाले थे तो उन्होंने अपनी माताजी से पूछा कि भारत से आपके लिए क्या लाऊं? तो उनकी माताजी ने कहा कि मेवाड़ की धूल लेते आना जहां महाराणा प्रताप जैसे शौर्य वीर हुए हैं. हालांकि उनका यह प्रवास रद्द हो गया. वे प्रताप के युद्ध कौशल का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि प्रतापजी के पास 20 हजार सैनिक थे और अकबर के पास 85 हजार लेकिन वीर प्रतापजी ने पीछे हटना कबूल नहीं किया. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे प्रतापजी के जीवन दर्शन के पांच तत्व अपने जीवन में उतार लें. और शपथ लेकर उनका अनुसरण करें.
संगोष्ठी की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने  अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि आज का दिन राष्ट्रीय चेतना एवं गौरवशाली इतिहास के पुनरावलोकन का दिन है. विश्वविद्यालय में वीर पुत्र महाराणा प्रताप शोध पीठ की स्थापना का उद्देश्य है कि हम अपने युवाओं को हमारे  गौरवशाली इतिहास से अवगत करायें. उन्होंने शोधपीठ के उद्घाटन एवं संगोष्ठी को संबोधित करने के लिए माननीय मंत्री सुश्री उषा ठाकुर जी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लगातार व्यस्तता के बाद भी हमारे बीच उपस्थित होकर हमारा हौसला बढ़ाया और ऊर्जा प्रदान की. उन्होंने संगोष्ठी का संचालन कर रहीं और शोधपीठ की प्रभारी डॉ. बिंदिया तातेर का धन्यवाद कहा और कहा कि उनकी उम्मीद से कहीं अधिक सारगर्भित संगोष्ठी का आयोजन किया गया है. उन्होंने अतिथियों का भी धन्यवाद किया.      
संगोष्ठी के सफल आयोजन में  कुलसचिव श्री अजय वर्मा, सहायक कुलसचिव संध्या मालवीय, डॉ. मनीषा सक्सेना, प्रोफेसर किशोर जॉन सहित ब्राउस परिवार  और  राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर से जुड़े प्रतिभागियों की इस महत्वपूर्ण विषय पर संयुक्त रुचि सहयोग पूर्ण रही।



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