स्कील डेवलपमेंट में शिक्षकों की अहम भूमिका - खंबायत
महू (इंदौर)। ‘एक विकसित समाज में शिक्षकों की भूमिका बहुआयामी होती है और जब चर्चा स्कील डेवलपमेंट की हो तो शिक्षक सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं’. यह बात पंडित सुंदरलाल शर्मा इंस्ट्य्यिूट ऑफ़ वोकेशनल एजुकेशन, एन.सी.ई.आर.टी के संयुक्त निदेशक श्री राजेश खंबायत ने बीआर अम्बेडकर समाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू के सामाजिक विज्ञान अध्ययन शाला एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय वेबीनार में विशिष्ट अतिथि की हैसियत से कही. ‘नई शिक्षा नीति-2020 में स्कील डेवलपमेंट में शिक्षकों की भूमिका’ विषय को आगे बढ़ाते हुए श्री खंबायत ने कहा कि वोकेशनल एजुकेशन इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है. उनका कहना था कि हर जिले में स्कील लेबोरेटरी की स्थापना की जाना चाहिए ताकि आसपास के युवा यहां आकर ट्रेनिंग प्राप्त कर सकें. उन्होंने कहा कि अभी तक शिक्षा का जो प्रारूप बना था, उसे नई शिक्षा नीति में परिवर्तित कर स्कील बेस्ड बनाया गया है ताकि विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के बाद रोजगार प्राप्त कर सके. उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थायें स्कील डेवलपमेंट के साथ साथ स्थानीय संस्थाओं से करार कर विद्यार्थियों को व्यवहारिक ट्रेनिंग दिलाने में सहायक हो सकें. श्री खंबायत ने कहा कि स्कील डेवलपमेंट के बाद स्र्टाट अप के लिए एक्यूबेशन सेंटर अहम भूमिका का निर्वाह करेंगे. उन्होंंने शिक्षकों की भूमिका तीन टी से निर्धारित करते हुए बताया कि टीचर, ट्रेनिंग और टेक्रॉलाजी से ही हम नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को पूर्ण कर पाएंगे.वेबीनार के मुख्य अतिथि एमिटी विश्वविद्यालय कलकत्ता के कुलपति प्रो. संजय कुमार ने कहा कि नई शिक्षा नीति में निहित उद्देश्यों स्कील डेवलपमेंट में शिक्षकों की भूमिका गहन-गंभीर है. उन्होंने कहा कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है और शिक्षक का दायित्व है कि वह विद्यार्थियों की योग्यता के अनुरूप उनको तैयार करे. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय सैद्धांतिक शिक्षा का नहीं अपितु व्यवहारिक शिक्षा का है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शिक्षकों को भी समय-समय पर स्वयं प्रशिक्षण प्राप्त कर केपेबल बनें. उन्होंने सीखने और सिखाने की प्रक्रिया पर बल दिया. प्रो. कुमार ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का उदाहरण देेते हुए बताया कि हमारी पुरातन शिक्षक पद्धति हमेशा से व्यवहारिक रहा है.
संगोष्टी-वेबीनार के आरंभ में बीज वक्तव्य देते राष्ट्रीय कौशल विकास संस्थान नईदिल्ली के सलाहकार श्री चिरंजीवी गुहा ने कहा नई शिक्षा नीति 2020 में लक्ष्य को प्राप्त करना और नवाचार को प्रोत्साहित करना है. उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर ट्रेनिंग उपलब्ध कराने पर श्री गुहा का जोर था. लगातार और नियमित रूप से वर्कशॉप, सेमिनार आयोजित कर विद्यार्थियों के भीतर की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना होगा. उन्होंने कई उदाहरण दिए. कुलसचिव राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थान, अगरतला से पधारे डॉ. गोविंद भार्गव ने कहा कि हम पहले लीडर थे, अब फालोवर बन गए हैं. नई शिक्षा नीति के संदर्भ में उन्होंने कहा हम सबको एजुकेशन एनवायरमेंट की चर्चा करना है. हर विद्यार्थी के भीतर राम, परशुराम और विश्वकर्मा बनने की संभावना छिपी होती है और शिक्षक का दायित्व है कि जिसमें जो योग्यता है, उसे उस लायक बनाये. कोविड महामारी के बाद भी हम प्रोसेस ऑफ नॉलेज की ओर लगातार बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि जरूरी है कि हमारी भागीदारी नहीं, जुड़ाव हो. उन्होंने इस बात की उम्मीद जाहिर की कि आने वाले समय में आटर््स का स्टूडेंट अर्बन प्रोग्र्राम के बारे में बात करता हुआ दिखेगा. नई शिक्षा नीति का यही उद्देश्य है. श्री विश्वकर्मा विश्वविद्यालय हरियाणा के डीन श्री आरएस राठौर ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना चार वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया था. इन चार वर्षों में हम डिप्लोमा से लेकर पीएचडी तक का कोर्स चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि सभी विश्वविद्यालयों को शार्ट टर्म कोर्स शुरू करना चाहिए क्योंकि इसमें अतिरिक्त खर्च और मेहनत नहीं है. यह एनएसडी से एपू्रव्ह है और इसी तरह कौशल शिक्षा के लिए यूजीसी से मान्यता प्राप्त अनेक छोटे-छोटे कोर्स हैं जिन्हें आरंभ किया जाना चाहिए.
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि नई शिक्षा नीति-2020 में संभावनाओं के साथ चुनौतियां भी है और जिनका हम हल निकालेंगे. उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की कि अभी तक हमारे शिक्षक परम्परागत ढंग से पढ़ा रहे हैं और नई तकनीक के साथ संतुलन बिठाना भी एक चुनौती है. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने 40 प्रतिशत डिजीटल और 60 प्रतिशत फिजीकल एजुकेशन की बात कही है. उन्होंने अतिथियों से आग्रह किया कि वे एक-एक पेपर बाउज को भिजवायें ताकि आने वाले समय में उनका दस्तावेजीकरण किया जा सके.
कार्यक्रम में भारतीय शिक्षण मंडल की ओर श्री मदन खत्री, अखिल भारतीय शैली प्रकल्प सह-प्रमुख एवं पालक अधिकारी मध्य क्षेत्र ने संबोधित किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्णा सिंहा ने किया एवं अतिथियों का परिचय डॉ. मनीषा सक्सेना ने दिया. आभार प्रदर्शन डॉ. अजय दुबे ने किया. कार्यक्रम का समन्वय डॉ. डी के वर्मा, डीन सामाजिक विज्ञान अध्ययन शाला एवं रजिस्ट्रार श्री अजय कुमार एवं विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया.
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