ग्लेशियर की तरह है हिंदू, लगातार पिघलता और कम हो रहा है

ग्लेशियर की तरह है हिंदू, लगातार पिघलता और कम हो रहा है

 यूं तो ये सिलसिला 2000 वर्ष पहले शुरु हुआ था पर पिछले 1400 सालों में इस काम में काफी तेजी आई है. हम दूसरों पर इस सबका दोष मढ़कर खुश हो जाते हैं पर अगर गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि सनातन क पतन का कारण अन्य बाहरी तो कम, सनातनी ज्यादा है.

षड़यंत्रकारियों ने हमें खत्म करने के लिए सिस्टमैटिक तरीके से एक के बाद एक नैरेटिव फैलाए और इसे हमारा भोलापन कहा जाए या बेवकूफी, हमने ना सिर्फ मान लिया बल्कि उन्हें आत्मसात भी कर लिया. वैसे तो ऐसे सैकड़ों नैरेटिव हैं पर आज इस शो में हम उनमें से कुछ पर ही चर्चा करेंगे: -

1.  रसखान पहला व्यक्ति था जिसने योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण को माखन चोर, रासलीला करने वाला कहा था. शुरू में तो वह सिर्फ गलत शब्दों का इस्तेमाल करता था, वह तो बाद में सनातनियों के दबाव में उसने अपनी शैली सुधारी. वह एक मुसलमान था और उससे कभी इस्लाम या उसके विभिन्न पहलुओं पर कोई कविता नहीं लिखी.

2. हमें यह बताया जाता है कि गीता लोगों को संत बनाती है पर महाभारत पढ़ने से घरों में कलेश आता है जबकि सच्चाई यह है कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से यह बताना चाहा है कि मनुष्य को हमेशा सच्चाई का रास्ता ही अपनाना चाहिए और शांति व प्रेम दूसरों के लिए रखना चाहिए 

3. शुरू से ही इतिहास और समाजशास्त्र की पुस्तकों के माध्यम से एनसीईआरटी हमें यही अहसास कराने की कोशिश करता रहा है कि हिंदू कमजोर और डरपोक थे, इसलिए मुस्लिम आक्रांताओं से हार गए. अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए एनसीईआरटी में बैठे अर्बन नक्सल्स  सिलेबस में रखने के लिए इतिहास के बीच-बीच में से उन्हें हिस्सों को रखते थे जिससे उनका एजेंडा पूरा होता है.

4. भारत में इस्लाम किस तरह से फैला, इसके बारे में तमाम इतिहासकारों ने विस्तार से लिखा है. यहां तक कि मुस्लिम स्कॉलर जो पर्शिया, मध्य एशिया आदि इलाकों से आए थे, इसी सच्चाई को लिख कर गए की मारकाट का जो दौर मीर कासिम ने शुरू किया था उसका अनुसरण हर एक मुस्लिम आक्रांता ने किया था. कोई औरंगजेब जैसा क्रूर था जो यहां के लोगों को मारकर जनेऊ के ढेर हर चौराहे पर लगाता था तो वह वली बन गया. कोई अकबर जैसा था जिसने अपने सेनापति के कहने पर राजा हेमू की हत्या गला रेतकर 14 वर्षों की उम्र में ही कर दी थी तो सिर्फ इसलिए कि उसे गाजी की उपाधि लेनी थी पर हमारे इतिहासकारों ने उसे महान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है

5. हम हमेशा हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की अपील करते रहे और वह अपना जिहाद का मकसद लगातार पूरा करते रहे. कश्मीर के बाद केराना के बारे में तो थोड़ा बहुत पता चला है लोगों को पर केरल, असम और बंगाल कब हाथ से निकल गए, यह हमें पता ही नहीं चला.

6. बहुत ही सुंदर तरीके से आर्य-द्रविड़, दलित-ब्राह्मण, अगड़े-पिछड़े जैसे झूठे संघर्ष खड़े कर दिए गए और हम लोग इन संघर्षों में शामिल हो गए, बिना यह सोचे कि आर्य तो बाहर से आए ही नहीं थे. दलित जैसा कंसेप्ट प्राचीन भारत में था ही नहीं और "हिन्दवः सोदरा सर्वे" की थ्योरी पर चलने वाले हम अगड़े-पिछड़े कभी थे ही नहीं. 

7. बॉलीवुड का सबसे बड़ा रोल रहा है भारत को इस स्थिति तक पहुंचाने में. जहां कभी लोगों को अभिनेता बनने के लिए अपना नाम दिलीप कुमार व  मधुबाला रखना पड़ता था, वहीं पर आज सनातन धर्म को ढोंग वाला और इस्लाम को शांति का संदेश देने वाला, क्रिश्चियनिटी को सेवा भाव करने वाला धर्म बताने की लगातार कोशिश जारी है. बॉलीवुड द्वारा सिस्टमैटिक ढंग से ब्राह्मण को ढोंगी, धोखेबाज और झूठा बताया गया. ठाकुर को शोषण करने वाला और बलात्कारी बताया गया. व्यापारी को फरेबी बताया गया और यह बताया गया कि हिंदुओं में जाति भेद इतना गहरा है कि लोग एक दूसरे से हमेशा लड़ते रहते हैं जबकि मुस्लिम 73 फिर को में बटे हुए हैं और दुश्मनी व नफरत का आलम यह है कि मस्जिदों में नमाज में शामिल लोगों को इस फिरका परस्ती की नफरत के कारण गोलियों से उड़ा , ला दिया जाता है, मस्जिद ए बम से उड़ा दी जाती हैं जैसा हम पाकिस्तान , अफ़गानिस्तान, सीरिया, इराक, ईरान, जॉर्डन समेत अनेक देशों में इस तरह की घटनाएं देखते रहते हैं पर प्रदर्शित किया जाता है कि सिर्फ सनातन को मानने वालों के  बीच में ही ऊंच-नीच का भेद है

 8. बात अगर मीडिया की की जाए तो भारत में मीडिया का एक बड़ा वर्ग ऐसा है कि अगर कहीं रेप, मर्डर या आगजनी जैसी घटनाएं हो जाए तो काफी समय वह इसमें लगाते हैं कि पीड़ित और दोषी का धर्म क्या है. वही हुआ था जम्मू के आसिफा वाले मामले में, यही हुआ था दिल्ली की निर्भया के मामले में और यही होता है रोज हमारे आपके आसपास के इलाकों में. पीड़ित अगर अल्पसंख्यक है तो बस मान लीजिए कि मीडिया के उस वर्ग का तो धर्म है कि उसका इतना प्रचार प्रसार किया जाए जिससे कश्मीर, कैराना, असम और केरल को भूलकर लोग यह मान लें कि भारत में बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों पर जुल्म करते हैं. 

9. बाल मुरारी बापू, चित्रलेखा जैसे कथावाचक तो खुलेआम जिहाद का समर्थन करते देखे जा सकते हैं. इसके पीछे उनकी मंशा क्या है, कहां से यह लोग प्रेरणा लेते हैं, इन्हें क्या मिलता है यह सब करने के लिए, कुछ सवाल है जो आज सबके मन में होने चाहिए 

10. हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल जब नेहरू ला रहे थे तब उसका सबसे अधिक विरोध सरदार पटेल और डॉक्टर अंबेडकर ने किया था. फिर पटेल की मृत्यु के बाद नेहरू ने अपनी इच्छा पूरी कर ही ली.  यहां समस्या यह है कि चाहे सरदार पटेल हो या डॉक्टर अंबेडकर, हर नेता का साफ-साफ कहना था कि बजाय अलग कोड जैसे हिंदू कोड, मुस्लिम लॉ आदि बनाने के कॉमन सिविल कोड देश में लागू होना चाहिए पर नेहरू का एजेंडा ही कुछ और था इसलिए उसने यह बात कभी नहीं मानी. यही हाल हिंदू जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में भी देखा गया. उन्हें तो हम दो हमारे दो की घुट्टी अच्छे से पिला दी गई और उसका असर आज खतरनाक डेमोग्राफिक संकट के रूप में देखा जा सकता है. संयुक्त परिवार जो भारत के सनातन की रीढ़ की हड्डी हुआ करते थे, उसे भी सुनियोजित तरीके से खत्म कर दिया गया. 

11 आज के इस शो में हम आपको एक बात और बताना चाहेंगे कि हमें बहुत ही चतुराई से यह समझाया जाता है कि सनातन को कोई खतरा नहीं है और जब 1000 वर्षो की गुलामी इसे खत्म नहीं कर पाई तो अब कैसे खत्म होगा. हम मान भी लेते हैं वामपंथियों के इस narrative को और अफीम के नशे की तरह निश्चिंत होकर सो जाते हैं और आने वाली आपदा से मुंह मोड़ लेते हैं. आप अब किसी की बात मत मानिए, बस आजादी के समय देश की जनसंख्या में विभिन्न वर्गों की जनसंख्या का क्या प्रतिशत था, उसे आज के प्रतिशत से तुलना कीजिए. आपको यह पता चल जाएगा कि अगले 25 वर्षों में सब कुछ आपके हाथ से निकल जाएगा. हमारा उद्देश्य आपको किसी लड़ाई के लिए तैयार करना बिल्कुल नहीं है, हम तो चाहते हैं कि आप जनसंख्या के इस खेल को समझ जाएं और यह बात मान ले कि आपका बच्चा अगर अकेला होगा तो वह कमजोर भी होगा और आप भी उसे निकलने भी नहीं देंगे. अच्छी शिक्षा, अच्छी परवरिश देने के बहाने को भूल कर आप यह सोचे कि अगर वह दुनिया में रहेगा, तभी शिक्षा , परवरिश, संपत्ति सब कुछ काम आएगा. 

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