अर्णव और नाविका के खिलाफ एकजुटता दिखाने वाली बॉलीवुड की नशेड़ी गैंग कभी दाऊद के खिलाफ क्यों नहीं बोली?

लिख दिया, सो लिख दिया..


 


अर्णव और नाविका के खिलाफ एकजुटता दिखाने वाली बॉलीवुड की नशेड़ी गैंग कभी दाऊद के खिलाफ क्यों नहीं बोली ?


 


आतंकवाद के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलने वाले बॉलीवुड के कथित सितारे, कमजोर नस दबी तो 


बिलबिलाने लगे!


 


बॉलीवुड के करीब 30 बड़े फिल्मकारों और अभिनेताओं ने एकजुटता दिखाकर रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्णव गोस्वामी और टाइम्स नाउ की एडिटर नाविका कुमार के खिलाफ जंग छेड़ कर मांग की है कि इन्हें बॉलीवुड को बदनाम करने से रोका जाना चाहिए। इन सितारों की आपत्ति है कि बॉलीवुड की छवि खराब की जा रही है और सभी को नशेड़ी बताया जा रहा है। जिन लोगों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किए उनमें करण जौहर से लेकर सलमान खान तक सभी बड़ी हस्तियां हैं। आश्चर्य है कि बॉलीवुड के सितारों का जमीर तब नहीं जागा जब भारत विरोधी माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम बंदूक की नोक पर पूरी इंडस्ट्री को धमकाता था और अपने हिसाब से फिल्में बनवाता था। बॉलीवुड में खान भाइयों का दबदबा दाऊद इब्राहिम के कारण ही बढ़ा। दाऊद मुस्लिम अभिनेत्रियों को काम करने से रोकता था और निर्माताओं को धमकाता था कि मुस्लिम अभिनेत्रियों को नहीं लिया जाए। दूसरी ओर उसकी कोशिश होती थी कि मुसलमान अभिनेता हो और हिंदू अभिनेत्री। यही नहीं पटकथा में परिवर्तन करवाना और मुस्लिम पात्रों को अधिक तवज्जो देना दाऊद की फितरत में शामिल था। 1990 के बाद करीब 25 साल तक दाऊद इब्राहिम ने अपनी अंगुलियों पर या यूं कहें बंदूक की नोक पर बॉलीवुड को नचाया। पाकिस्तानी गायकों को काम दिलवाने में भी दाऊद का बहुत बड़ा योगदान था। किसी भी संगीतकार को तब तक गाना रिकॉर्ड नहीं करने दिया जाता जब तक पाकिस्तानी गायक उस गाने को ना गाएं। यह वह वह दौर था जब फिल्मों से भजन गायब हो गए थे और सूफी कलाम और कव्वालियां हर फिल्में शामिल की जाने लगी थीं। दाऊद की गुंडागर्दी का इस गैंग ने कभी विरोध नहीं किया लेकिन जब इनकी दुखती रग को कुछ चैनलों ने दबाया तो यह लोग बिलबिलाने लगे। जिन लोगों ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के खिलाफ हमला बोला है उनमें से कौन ऐसा है जो नशा नहीं करता ? जाहिर है दोगले और पाखंडी लोग हैं ये। इनसे और कोई उम्मीद नहीं रखी जा सकती। यह वही लोग हैं जो मुंबई बम ब्लास्ट पर चुप रहे। यह वही लोग हैं जिन्होंने मुंबई लोकल में हुए बम ब्लास्ट पर खामोशी अख्तियार की। यह वही दोगले लोग हैं जिन्होंने ताज होटल पर हुए हमले पर भी चुप्पी साध रखी थी। आतंकवाद पर बॉलीवुड खामोश रहा लेकिन नशेड़ी कहा गया तो तुरंत प्रतिक्रिया देने आ खड़े हुए।


 


पांच फिल्में भी ऐसी नहीं जिनमें भजन हो !


 


1990 के बाद से पांच भी ऐसी फिल्में बॉलीवुड नहीं बना पाया जिनमें भजन शामिल हों। यदि दिमाग पर जोर दिया जाए तो लगान, ऋतिक रोशन वाली अग्नीपथ और हाल ही में रिलीज हुई तानाजी के अलावा मुश्किल से एक दो फिल्में ही होंगी जिनमें भजन शामिल किए गए हैं। अन्यथा हर फिल्म में सूफी कलाम और कव्वालियों को शामिल किया जाता रहा है। सूफी कलाम और कव्वालियां शामिल करना गलत नहीं है लेकिन जानबूझकर भजन शामिल नहीं किए गए। जाहिर है इसका कारण दाऊद इब्राहिम की दादागिरी रहा है। स्थिति यह है कि यदि इंदौर के गीतकार स्वानंद किरकिरे से पूछा जाए कि उन्होंने कौन सी हिंदी फिल्म में भजन लिखा तो शायद वह ना बता पाएं। यही स्थिति नई पीढ़ी के गीतकारों की है जो भजन लिखना भूल गई है। प्रत्येक फिल्म मेंभजन होना अनिवार्य नहीं है लेकिन जब कहानी की मांग ना हो तो भी आप कव्वाली और सूफी कलाम तो शामिल करें लेकिन भजनों से परहेज करें यह रवैया ठीक नहीं प्रतीत होता। यही नहीं गीतकारों ने विशेष रुप से अपने गीतों में उर्दू, अरबी और फारसी शब्दों को डालना शुरू किया। शुरू में यह सब दाऊद इब्राहिम के कारण हुआ लेकिन बाद में इस तरह के ट्रेंड को बढ़ावा दिया गया।


 


लव जेहाद को बढ़ावा


 


इसमें कोई शक नहीं कि 90 के दशक के बाद बॉलीवुड ने सुनियोजित तरीके से लव जेहाद को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान और दाऊद इब्राहिम के एजेंडे के कारण ऐसा किया गया। वामपंथी और लिबरल बुद्धिजीवी तो लव जिहाद को मानते ही नहीं थे। इनके अनुसार लव जिहाद केवल संघी दिमाग की उपज है। लेकिन जब केरल पश्चिम बंगाल और असम में एक के बाद एक मामले उजागर हुए। मीडिया ने बवाल मचाया और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद के खिलाफ टिप्पणी करते हुए स्वीकार किया कि लव जिहाद अस्तित्व में है तब जाकर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग लव जेहाद को मानने लगा।


 


न्यू इंडिया से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं


 


अनुराग कश्यप और स्वरा भास्कर को ही नहीं महेश भट्ट जैसे पाखंडी यों को भी लगता है कि भारत अब बदल गया है। वास्तव में भारत बदल गया है। 2014 के बाद से दक्षिण कश्मीर के 8 -10 जिलों को छोड़ दें। 


 शेष भारत में आतंकवाद की एक भी घटना नहीं हुई है। यह नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धि है। अब बॉलीवुड उरी द सर्जिकल स्ट्राइक, केसरी, तानाजी जैसी फिल्में बनाने पर मजबूर हुआ है। अब इंडस्ट्री में खान भाइयों का वैसा दबदबा नहीं है। जाहिर है यह बदलाव वामपंथियों और विशेषकर हिंदू विरोधियों को डाइजेस्ट नहीं हो रहा है। इस नए इंडिया में अब यह लोग अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। इनको अब नोटिस भी नहीं किया जा रहा है।


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