भारत के अनेक पड़ोसी देशों मे एक चीन भी है जो कुछ वर्ष पूर्व हमारा पड़ोसी नही था क्योंकि हमारी सीमा और चीनी सीमा के बीच एक संपन्न, सुखी, शिक्षित और शांत देश तिब्बत हुआ करता था। जिसका क्षेत्र फल 12,28,000 वर्ग किमी था। उस पर सन् 1950 में चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के चलते अवैध कब्जा कर लिया और वहाँ के बौद्धो तथा लामाओं को मार दिया तथा उन्हें तिब्बत से निवार्सित कर दिया। जैसे दलाई लामा आदि। ऐसा नही कि चीन ने केवल तिब्बत मे ऐसा किया है। वह अपने हर पडोसी देश के साथ ऐसा ही करता रहा है। इसी कारण उसका 24 देशों जैसे भारत, रुस, ताईवान, वियतनाम, म्यान्मार, नेपाल, अफगानिस्तान, किर्जिकिस्तान, दक्षिण कोरिया, भूटान, कजाकिस्तान आदि से सीमा विवाद चल रहे हैं।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जो स्वयं को विश्वशान्ति का ब्राण्ड ऐम्बेसेडर समझते थे, उन्होंने चीन के तत्कालिन राष्ट्रपति श्री चाऊइन लाई के साथ पंचशील का समझोता किया । एक प्रकार हमारी सीमाओं पर खड़े सैनिकों के लहू का सौदा कर दिया, क्योंकि उस समय अन्तरराष्ट्रीय मामलों के जितने भी जानकार लोग थे जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर, प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, प्रथम कानून मंत्री श्री डॉ. भीमराव अम्बेडकर, केन्द्रीय मंत्री श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी, कांग्रेस सांसद श्री महावीर त्यागी, जनसंघ के अध्यक्ष श्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय आदि ने नेहरु जी को समझाया था कि चीन पर विश्वास करना घातक होगा लेकिन नेहरू नही माने । वे देश में नारा लगवाते रहे हिन्दी चीनी भाई- भाई । उधर चीन ने 20 अक्टूम्बर 1962 को भारत पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि उस समय हमारी सेना के पास पहाड़ों पर लड़ने के हिसाब से संसाधन नही थे फिर भी भारतीय सेना बड़ी वीरता से लड़ी मगर हमें जम्मू - कश्मीर का एक हिस्सा अक्साई चीन जो 38000 वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफल वाला है गंवाना पड़ा। इसके बाद 11 सितम्बर 1967 को चीन ने फिर युद्ध की पहल की। पर इस बार उसे मुंह की खानी पड़ी। सन 1975 में भी चीन ने नाकाम कोशिश की। चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश और असम पर भी दावा ठोकता है। वर्ष 2013 में 14-15 अप्रेल की रात्रि में 40-50 सैनिकों की एक प्लाटून व कुछ कुत्तों के बल पर दौलत बेग ओल्डी के रणनीतिक दृष्टि से हमारे लिए अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र पर 21 दिन तक अपना अधिकार जमा लिया था। अभी कुछ वर्ष पूर्व सितम्बर 2014 में डोकलाम मे हमारी सीमा मे घुस आया 40 दिन तक हमारी सेना डटी रही और उसे पीछे हटना पड़ा। वर्तमान मे वह गलवान घाटी, पेंगांग झील ओर फिंगर फोर क्षेत्र में नो मेन एरिया अर्थात (दोनो देशों के समझोतो के अनुसार जहाँ कोई भी व्यक्ति नही रहेगा ) वहाँ आ गया और अपने अस्थायी निर्माण करने लगा। चीन की इस हरकत को रोकने मे मुठभेड़ हुई जिसमे सैन्य अधिकारी सन्तोष बाबू सहित 20 वीर सपूतों का बलिदान हुआ। फिर भी हमारी सेना डटी हुई है। सरकार द्वारा सेना को खुली छूट के साथ 500 करोड़ की आर्थिक पैकेज की घोषणा की। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं लेह लद्दाख के नींमू क्षेत्र जो समुद्री सतह से 11,000 फिट की ऊंचाई पर है में पहुंच गए और हमारी सेना का उत्साहवर्धन किया।
ऐसा नही कि चीन अपने पड़ोसी देशो की मात्र जमीन हड़पता है अपितु वहाँ के उद्योग धंधे और रोजगार भी निगल जाता है। भारत और चीन बीच से प्रति वर्ष 6 लाख करोड़ रु. का व्यापार होता है। जिसमें से 4.9 लाख करोड़ रु. का आयात और मात्र 1.1 लाख करोड़ रु. का निर्यात होगा है।
चीन सायबर युद्ध भी करता है। वह विभिन्न प्रकार के एप्स बनाता है। जिसे हमे डाऊनलोड करने के लिए चीन की बहुत सी शर्ते माननी पड़ती हैं। उन शर्तो के बूते वह हमारी महत्वपूर्ण जानकारी बिना हमारी अनुमति के किसी को भी बेच देता है या हमारे विरुद्ध ही उपयोग करता है। इसी कारण भारत सरकार ने पिछले दिनों 69 एप पर रोक लगा दी।
चीन द्वारा सम्पूर्ण विश्व मे फैलाया गया कोरोना वायरस भी एक प्रकार का युद्ध ही है। उक्त सारी बातो से यह सिद्ध होता है कि चीन सम्पूर्ण विश्व का शत्रु है। इस नाते मेरा भी शत्रु है क्योंकि जो जवान सीमा पर शहीद हुआ, चीन के घटिया ओर सस्ते सामान के कारण जिसके उद्योग धंधे समाप्त हुए, कोरोना के कारण डॉक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी सहित हजारों लोग मरे वे सभी मेरे अपने थे। वे सब उसी भारत माता की सन्तान थे जिसका मैं हूँ।
अब प्रश्न है कि मेरे शत्रु चीन के साथ मेरा व्यवहार कैसा हो? क्या मुझे शत्रु राष्ट्र चीन से बदला लेना चाहिए? मैं शत्रु राष्ट्र चीन से बदला कैसे लूँ ?
उत्तर पर विचार करता हूँ तो देखता हूँ कि जो चीन हमारी जमीन, उद्योग, धंधे, व्यापार रोजगार निगल रहा है। जो हमारे सैनिको का लहू बहा रहा है। जो हमारे देश मे महामारी भेज रहा है। उसका आर्थिक पोषण हम चीनी सामान, चीनी एप का उपयोग कर, कर रहे है। क्योंकि हमे वह सामान सस्ता मिलता है या उस एप से हमारा समय कटता है मनोरंजन होता है आदि - आदि ।
मुझे चीन से बदला अवश्य लेना चाहिए क्योंकि हमारा इतिहास हमारी परम्परा हमे यही सिखाती है। भगवान श्रीराम ने जन्म भूमि को स्वर्ग से भी महान बताया था। भीष्म पितामह ने अपने अन्तिम समय मे कहा था राष्ट्र से बड़ा कुछ नही होता। आचार्य चाणक्य ने कहा था हिमालय से लेकर समुन्द्र पर्यन्त पग - पग भूमि मेरा राष्ट्र है मैं इसकी रक्षा करूंगा। स्वामी विवेकानन्द ने कहा कुछ वर्षों के लिए सारे देवी देवता को एक तरफ रख कर केवल और केवल राष्ट्र देवता का पूजन करें अर्थात राष्ट्र रक्षा हित कार्य करें।
मैं शत्रु राष्ट्र चीन के प्रत्येक सामान तथा एप स्वयं बहिष्कार करूं। साथ - साथ अपने मित्रों और सम्बन्धियों को भी इस हेतु प्रेरित करूं। रामायण मे एक प्रसंग आता है कि जब श्रीराम जी की सेना लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर सेतू बना रही थी तब सभी अपनी - अपनी क्षमतानुसार पत्थर चट्टान आदि समुद्र में डाल रहे थे। वहीं एक गिलहरी अपने शरीर पर रेत लपेट कर पत्थरो के बीच की दर मे डाल रही थी। वहीं एक उदाहरण यह भी है कि महाभारत मे जब भीमसेन ने दुर्योधन की जंघा तोड़ दी तो श्रीकृष्ग के बड़े भाई बलराम ने बोलना चाहा कि यह अनुचित है तो उन्हे श्रीकृष्ण ने यह बोल कर रोक दिया कि जब अर्जुन और दुर्योधन दोनो ही ने आपसे सहायता मांगी थी तब आपने निष्पक्ष रहने का निर्णय किया था तो अब क्यो परिणाम बदलने का प्रयास कर रहे हो। अर्थात राष्ट्र रक्षा का प्रयास अवश्य करना चाहिए भले वह प्रयास छोटा ही क्यो न हो। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है कि इतिहास उनके गुनाहों को भी लिखेगा जो खामोश रहे।
*सेना ने खदेड़ा पहाड़ो से*
*ग्राहक खदेड़े बजारो से*
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