हाटपिपलिया: स्व. कैलाश जोशी के गढ़ में कांग्रेस की कड़ी चुनौती, दीपक जोशी की नाराजगी को दूर किया तो ही भाजपा जीत सकती है अपने गढ़ में

- विधानसभा क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर प्रदेश के राजनीतिक संत स्वर्गीय कैलाश जोशी का प्रभाव, उन्होंने ही भाजपा के गढ़ में तब्दील किया हाटपिपलिया को


- सज्जन सिंह वर्मा पहली बार दे रहे हैं बघेल परिवार को खुला समर्थन, कांग्रेस भाजपा की अपेक्षा अधिक एकजुट


 


इंदौर/हाटपीपल्या 11 जून। देवास - शाजापुर (अजा सुरक्षित) लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली हाटपिपलिया विधानसभा सीट का उपचुनाव भाजपा को अपने ही गढ़ में राजनीतिक रूप से मुश्किल चुनौती साबित हो रहा है। हाटपीपल्या सीट मालवा की माटी के महान सपूत और प्रदेश की राजनीति में संत माने गए स्वर्गीय कैलाश जोशी की जन्मस्थली भी है। इस विधानसभा क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर स्वर्गीय कैलाश जोशी का प्रभाव है। यह उन्हीं का नैतिक आभामंडल था कि 1977 में अस्तित्व में आने के बाद से हुए 10 चुनाव में भाजपा हाटपीपल्या से 6 बार विजयी रही है। भाजपा ने यदि शिवराज सिंह चौहान के पिछले कार्यकाल में स्कूली शिक्षा राज्य मंत्री रहे दीपक जोशी की नाराजगी को दूर नहीं किया तो इस उपचुनाव में उसके पहले से ही तय उम्मीदवार मनोज चौधरी की राह बेहद मुश्किल साबित हो सकती हैं। देवास जिले की कांग्रेसी राजनीति में पिछले तीन दशकों से राजेंद्र सिंह बघेल और सज्जन सिंह वर्मा गुटों में तीव्र मतभेद रहे हैं। बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति के कारण ऐसा पहली बार है कि बार खुद सज्जन सिंह वर्मा, बघेल परिवार का समर्थन कर रहे हैं। इस कारण भी कांग्रेस इस बार बेहद मजबूत स्थिति में दिख रही है। कांग्रेस की ओर से तीन बार विधायक रहे राजेंद्र सिंह बघेल के पुत्र राजवीर सिंह बघेल के अलावा मध्य प्रदेश दुग्ध महासंघ के अध्यक्ष तंवर सिंह चौहान भी दावेदार हैं। बघेल परिवार और तंवर सिंह चौहान दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खेमे के माने जाते हैं। टिकट की दौड़ में हांलाकि राजवीर सिंह बघेल आगे हैं, लेकिन क्षेत्र के पुराने कांग्रेसियों का मत है कि, यदि खुद राजेंद्र सिंह बघेल चुनाव लड़े तो कांग्रेस की संभावना और बढ़ जाएगी। जबकि 73 वर्षीय पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह बघेल ने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण राजवीर सिंह को आगे किया है। राजवीर सिंह दो बार सोनकच्छ नगरपालिका के निर्दलीय के रूप में अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं। बघेल परिवार में मूलतः सोनकच्छ विधानसभा का ही निवासी है,लेकिन चूंकि सोनकच्छ सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इसलिए दिग्विजय सिंह ने राजपूतों के दबदबे वाली हाटपिपलिया सीट पर 1985 में पहली बार ठाकुर राजेंद्र सिंह बघेल को टिकट दिया था जो कांग्रेस की लहर में उस चुनाव में जीते भी थे।


 


खाती, राजपूत, सेंधव और पाटीदार समाज का दबदबा..


हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में चंद्रवंशी खाती समाज के करीब 25 हजार मतदाता हैं। करीब 20 हजार मतदाता ठाकुर हैं, जबकि करीब 15- 15 हजार मतदाता सेंधव और पाटीदार समाज के हैं। चंद्रवंशी खाती समाज परंपरागत रूप से कांग्रेसी रहा है। बघेल परिवार के कारण पिछले दो दशकों से राजपूतों के वोट भी कांग्रेस को मिलते रहे हैं। जबकि पाटीदार और सेंधव समाज परंपरागत रूप से संघ और भाजपा समर्थक रहा है।


 


छह बार भाजपा और चार बार कांग्रेस जीती


भारतीय जनसंघ घटक के कार्यकर्ता और स्वर्गीय कैलाश जोशी के राजनीतिक शिष्य तेज सिंह सेंधव 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़े और जीते। 1980 कि कांग्रेस लहर में भी यहां से तेज सिंह सेंधव ने ही विजयश्री प्राप्त की। 1985 में कांग्रेस ने ठाकुर राजेंद्र सिंह बघेल को टिकट दिया जो पर्याप्त अंतर से चुनाव जीते। 1990 और 1998 में फिर से तेज सिंह सेंधव ने जीत हासिल की। जबकि 1993 और 2003 के विधानसभा चुनाव में राजेंद्र सिंह बघेल ने भाजपा को हराया। 2008 और 13 में स्वर्गीय कैलाश जोशी के सुपुत्र दीपक जोशी यहां से जीते। जबकि 2018 में कांग्रेस के मनोज चौधरी ने भाजपा के दीपक जोशी को पराजित किया।


 


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