ट्रंप की यात्रा: एक दीवार में कितनी झुग्गियां छिपाएगी सरकार ...अजय बोकिल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया की पहली भारत यात्रा की चर्चा उनकी अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात से ज्यादा इस शहर में एक झुग्गी बस्ती को ढंकने के लिए दीवार खड़ी करने को लेकर ज्यादा हो रही है। लोग समझ नहीं पा रहे कि एक झुग्गी बस्ती को छिपाने से समूचे भारत की गरीबी और हजारों झुग्गी बस्तियों पर परदा कैसे पड़ जाएगा? ऐसा भी नहीं कि ट्रंप को पता न हो कि भारत में अमीरों से ज्यादा गरीब रहते हैं। अगर एक झुग्गी अपनी हालत  बयान करती रहती तो इससे कौन सा फर्क पड़ जाता?  
गौरतलब है ‍कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में पहली बार भारत आ रहे हैं। क्योंकि भारत से साथ मजबूत रिश्तों से ज्यादा उन्हें आगामी चुनाव में भारतवंशियों के वोट हासिल करने की ज्यादा चिंता है। इनमें भी बड़ी तादाद गुजरातियों की है। पिछले साल अमेरिका में मोदी को प्रोजेक्ट करने के लिए ‘हाउ डी मोदी’ जैसा हिट कार्यक्रम आयो‍िजत किया गया था। इसका खूब प्रचार भी हुआ। मोदीजी के भाषण पर अमेरिकी भारतीय झूमते दिखे। उसी कार्यक्रम के जवाब में ‘केम छो ट्रंप’ का भव्य आयोजन‍ किया जा रहा है। मेहमान की खातिरदारी में कोई कसर न रहे, इसकी पूरी कोशिश है। सब झूम रहे हैं सिवाय उस झुग्गी बस्ती के, ‍िजसे अपना दाना-पानी भी बंद हो जाने का अंदेशा है। ट्रंप को भी दूसरी बार राष्ट्रपति बनना है। कट्टर युवा अमेरिकियों का समर्थन उन्हें प्राप्त है। लेकिन चुनाव  जीतने के लिए उन्हें गैर अमेरीकियों का भी समर्थन चाहिए, जिनमें भारतवंशी भी हैं। 
बताया जाता है प्रधानमंत्री मोदी अपने गृह राज्य की राजधानी अहमदाबाद का वैभव दिखाने अपने विदेशी दोस्तों को जरूर ले जाते हैं और इसकी चमकीली तस्वीर दिखाने के लिए कोई भी कठोर कदम उठाने से गुरेज नहीं करते। जो ट्रंप यात्रा के वक्त हो रहा है, कमोबेश वैसा ही पांच साल पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग की अहमदाबाद यात्रा के वक्त भी हुआ था। कई गरीब बस्तियों को परदे के पीछे सरका दिया गया था। यह बात अलग है कि स्वदेश लौटते ही शी ने भारत को उसकी औकात बता दी। अब ट्रंप दंपती अहमदाबाद में बापू के साबरमती आश्रम जाएंगे। एयरपोर्ट से साबरमती आश्रम तक रास्ते में इंदिरा ब्रिज के बीच में एक झुग्गी बस्ती भी पड़ती है, जिसका नाम सरणियावास है। यहां करीब ढाई हजार गरीब कच्चे मकानों और झोपडि़यों में रहते हैं। विकास के तमाम दावों के बाद भी उन्हें आज तक पक्के मकान नहीं‍ मिल सके हैं। ऐसे में यह दाग दिखाने के बजाए उसे सात फीट ऊंची दीवार से ढंक देना ही बेहतर समझा गया। इस फैसले के हक में तर्क दिया जा सकता है कि जब घर में मेहमान आते हैं तो घर का कचरा दरवाजे की आड़ में और दाग कालीन या दरी के नीचे छिपा दिए जाते हैं ताकि अतिथि को सब ‘अच्छा ही अच्छा’ दिखे। यही भारतीय संस्कृति है। ऐसे में ट्रंप की निगाहों से सरणियावास की झुग्गी छिपाने में गलत क्या है? ट्रंप की रवानगी के साथ ही इस बस्ती का नकाब हट जाएगा या फिर झुग्गीवासी उस दीवार को गिरा देंगे। इसमें इतना उबलने की क्या जरूरत है ? दीवार से ज्यादा वक्त की नजाकत अहम है। 
सवाल यह भी है कि ट्रंप आखिर भारत आ क्यों रहे हैं? क्या उन्हें ‘हाउ डी मोदी’ का कर्ज उतारना है या फिर वे भारत से कोई बड़ा व्यापारिक समझौते करने वाले हैं? अथवा यह सिर्फ मोदी-ट्रंप के बीच अनौपचारिक ठहाके की अगली  कड़ी है? दोनो शीर्ष नेताअों के बीच बैठक के अंजेडे के बारे में बताया जा रहा है कि ट्रंप दरअसल भारत के साथ व्यापारिक समझौते करने आ रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिका के लिए अपने व्यापार के दरवाजे और खोले। कहा जा रहा है कि अब कृषि,  डेरी व अंडा उद्दयोग तथा दवाअों का क्षे‍त्र भी अमेरिकी कंपनियों के लिए खोला जाएगा। जबकि भारत की चाहत विश्व में एक रणनीतिक साझेदार जोड़ने की है, जो उसे चीन से लोहा लेने में मददगार हो। खुद अमेरिकी अधिकारियों को आशंका है कि ट्रंप इकतरफा शर्तों पर भारत से व्यापारिक समझौते की पहल कर सकते हैं, जिसका दीर्घकालिक नुकसान भारत-अमेरिका रिश्तों को होगा। इधर भारत के व्यवसायियों को डर है कि कहीं व्यापार समझौता केवल अमेरिका के हित में न हो वरना देश में कृषि और डेरी उद्दयोग का रहा सहा दम भी निकल जाएगा। देखने की बात यह है कि मोदी ट्रंप से किस दमदारी से बात करते हैं और भारत के लिए अमेरिका से क्या हासिल करते हैं? क्योंकि देशों के द्वीपक्षीय सम्बन्ध जमीनी यथार्थ से तय होते हैं न कि ‘ दे ताली’ वाले अंदाज में।
बहरहाल बात उतनी आसान है नहीं ‍िजतनी कि लगती है। क्योंकि गुजरात विकास के बहुप्रचारित माॅडल में झुग्गियों के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में ताबड़तोड़ यही काम हो सकता था कि इस ‘कलंक’ को ढंक दिया जाए। ट्रंप अमीरी के आईने में ही अहमदाबाद का चेहरा देखें और खुश हो लें।  मेहमान खुश तो मेजबान भी बल्ले-बल्ले। लेकिन इस खुशी में ‘दीवार’ ने ही पलीता लगा दिया है। जब यह मामला मीडिया में  उछला तो राज्य  की रूपाणी सरकार अकबकाई दिखी। अहमदाबाद नगर निगम ने सफाई दी कि झुग्गी के छिपाने दीवार ट्रंप दौरे की वजह से नहीं बनाई जा रही है। यह तो नगर निगम की जमीन है। इसके पूर्व ननि ने इसे अतिक्रमण मानते हुए झुग्गीवासियों को वहां से हटने के नोटिस भी जारी किए थे। शहर की महापौर बिजल पटेल ने कहा कि मुझे कुछ पता नहीं है। जबकि दीवार नगर निगम ही बनवा रहा है। इस पर सोशल मीडिया पर लोग खासे चटखारे ले रहे हैं। एक कार्टूनिस्ट का तीखा तंज था कि अगर भारत में ऐसे ही झुग्गी बस्तियों को ढंकने के लिए दीवारें बनने लगीं तो हम ‘चीन की दीवार’ को भी पीछे छोड़ देंगे। एक ने ट्वीट किया कि झुग्गी बस्ती को ढंकने का बिल अहमदाबाद ननि ( गरीब) मैक्सिको को भेज देगा। एक अन्य ने इसे मोदी सरकार का ‘गरीबी छिपाअो अभियान’ करार दिया। जबकि शिवसेना ने कहा कि ऐसी दीवारें खड़ी करने से न तो रूपए की और न ही गरीबों की हालत सुधरेगी। 
जो भी हो, ट्रंप को भारत के हितों से ज्यादा चिंता अपना अगला चुनाव जीतने की है तो भारत को अपनी माली हालत सुधारने के लिए अमेरिका का सहारा चाहिए। लेकिन इन सबके बीच सरणियावास के झुग्गीवासियों का क्या दोष है, जो उनका चेहरा दीवार के पीछे छिपाने  की कवायद जारी है। गरीबी अहमदाबाद में क्या अमेरिका में भी है, ‍िजसे वो हाई पावर्टी कहते हैं। लेकिन अपना उजला चेहरा दिखाने के लिए कोई इस तरह दागों पर बैंडेज नहीं बांध देता। नकली मुस्कान ज्यादा देर नहीं टिकती। ट्रंप आ रहे हैं तो आएं। खुश होकर जाएं। इस बात की रत्ती भर भी गारंटी नहीं है कि ट्रंप का चश्मा भी उसी नंबर का हो जाएगा, जो उन्हें मोदी पहनाना चाहते हैं। अमेरिका को हमारी अंदरूनी खबर हमसे भी ज्यादा है। विशिष्ट अतिथि के आने पर शहर की साफ-सफाई हो, यह तो लाजमी है, लेकिन गरीबी पर नकाब डालने से हकीकत छिप तो नहीं जाएगी। 


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