आशापारस फाउंडेशन फॉर पीस एंड हार्मोनी एवम् संकल्प कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन द्वारा रिसर्च मेथोडोलॉजी एंड स्टैटिस्टिकल एनालिसिस पर प्रशिक्षण का हुआ आयोजन

शोध एवं नवाचार पर आधारित शिक्षण नितांत आवश्यक : प्रो. अरुण भगत, सदस्य, बी.पी.एस.सी.

*शोध में वैज्ञानिकता का समावेश अत्यंत आवश्यक: प्रो. आशा शुक्ला, पूर्व कुलपति*  

भोपाल। समाज ही नहीं राष्ट्र के उत्थान में शोध एवं नवाचार पर केंद्रित ऐसी समाजसेवी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। सत्यान्वेषण की प्रक्रिया से अर्जित ज्ञान अपने विद्यार्थियों को प्रेषित करने की जरुरत है। हमें विद्यार्थियों को व्यवस्थित प्रक्रिया से परिचित करवाने की जरुरत है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सत्य एवं अनुसंधानयुक्त आधारित समाचार लोगों पर पहुँचाने की कोशिश जाती है। यह एक सफल और अनुगामी अध्ययन प्रक्रिया से संबंधित है। शोध के क्षेत्र में सब्जेक्टिविटी न होकर बल्कि ऑब्जेक्टिविटी आधारित रहना चाहिए। भारत की शोध विधि पश्चिमी शोध विधि से श्रेष्ठ है। उक्त बातें मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रोफेसर अरुण कुमार भगत, सदस्य, बिहार लोक सेवा आयोग, बिहार एवं पूर्व अधिष्ठाता महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी ने आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन, वेद फाउंडेशन, भारत तथा संकल्प इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा सप्ताह भर चलने वाले शार्ट टर्म प्रोग्राम- रिसर्च मेथड़ोलोजी एवं स्टेटिसटिकल एनालिसिस दिनांक 11-17 जनवरी, 2024 के उद्घाटन अवसर पर कही।

विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर अनिल कुमार निगम, आई.एम.एस. ग़ाज़ियाबाद के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष ने कहा कि मीडिया शिक्षा के अन्यान्य आयामों शोध की महती भूमिका है। मीडिया समाज के विकास से संबंधित शोध करने तथा शोध में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग करने पर जोर दिया जाना चाहिए। शोध में त्रुटियों को कम करने की व्यवस्थित तकनीकी का प्रयोग पत्रकारिता शोध में नितांत आवश्यक है।


बीज वक्ता के रूप में जुड़ी निस्कार्ट मीडिया कॉलेज, ग़ाज़ियाबाद की प्रधानाचार्य डॉ. ऋतु दुबे तिवारी ने कहा कि पिछली सदी में समाजविज्ञान को सारगर्भित बनाने में शोध प्रविधि की अहम भूमिका रही है। आज आरटीफिसियल इंटेलीजेन्स का दौर है. ए.आई. के इस दौर में शोध के लिए और अधिक सतर्क होने की जरुरत है। ए.आई. आंकड़ा संकलन में मदद कर सकता है, लेकिन पूरी तरह से ए.आई. पर निर्भर रहना मौलिकता से दूर करता है। प्राचीन ग्रंथ महाभारत एवं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में श्रेष्ठतम शोध विधि का प्रयोग किया गया है। आज ए.आई. जहाँ हर क्षेत्र में मदद कर रहा है, वहां शोध क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। ए.आई. के आने से तमाम चुनौतियाँ हैं लेकिन हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्राथमिक आंकड़ें स्वयं संकलित करें ताकि शोध में मौलिकता बनी रहे। 


अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति एवं आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन की निदेशक प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि शोधार्थी उचित पद्धतियों का समन्वय नहीं कर पाते हैं जिससे वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष नहीं प्राप्त हो पाता है। हमें प्रविधियों को परिमार्जित करने की आवश्यकता है। यह STP जिस विजन को लेकर चल रहा है। निश्चित रूप से प्रतिभागियों के समझ को बढ़ाने में सफल होगा। प्रो. शुक्ला ने महिला एवं जेंडर स्टडीज के शोध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने रिसर्च मेथोड़ोलोजी पर केंद्रित यह STP शिक्षा के विभिन्न आयामों जैसे योग, कला साहित्य, इतिहास, महिला अध्ययन, मीडिया, एजुकेशन और प्रशिक्षण को नई दिशा प्रदान करेगा।


शार्ट टर्म प्रोग्राम- रिसर्च मेथड़ोलोजी एवं स्टेटिसटिकल एनालिसिस दिनांक 11-17 जनवरी, 2024 में 12 जनवरी को अनुसंधान का दर्शन और नैतिकता एवं सैम्पलिंग तकनीक: रूपरेखा13 जनवरी को डेटा संग्रह करने के तरीके एवं नारीवादी अनुसंधान विधियाँ: उपकरण और तकनीक एवं परिकल्पना परीक्षण प्रक्रिया, 14 जनवरी को गुणात्मक और मात्रात्मक अनुसंधान विधियाँ तथा शोध पत्र लेखन और संदर्भ प्रबंधन के लिए उपकरण, 15 जनवरी को एसपीएसएस: एसपीएसएस के साथ परिचय और पैरामीट्रिक परीक्षण एवं 16 को अनुमानित आँकड़े: सहसंबंध और प्रतिगमन तथा 17 जनवरी को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान की प्रवृत्तियाँ, स्वदेशी ज्ञान प्रणाली एवं अंतःविषय अनुसंधान में पद्धति जैसे विषयों पर ख्यातिलब्ध विद्वानों द्वारा प्रशिक्षण दिया जायेगा । उत्कृष्ट सहभागिता एवं शोध परक दृष्टिकोण तथा शोध को बढ़ावा देने के लिए आशा पारस रिसर्च एक्सीलेंस अवार्ड तथा वेद रिसर्च एक्सीलेंस अवार्ड भी प्रदान किया जायेगा ।


उद्घाटन सत्र में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, कालेजों तथा संस्थाओं से प्रतिभागियों ने पंजीकरण कर सहभागिता की।

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