दुनिया भर के ईसाई धर्मावलंबि आज गुड फ्राइडे मना रहे हैं और याद कर रहे हैं जीसस क्राइस्ट के उस बलिदान को जो बाइबल के अनुसार उन्होंने लोगों के पापों के लिए खुद के प्राणों की आहुति दे कर दिया था. 40 दिन के ईस्टर के व्रत भी इसी दिन खत्म होते हैं और गुड फ्राइडे के तीसरे दिन यानी संडे को ईस्टर का त्यौहार मनाया जाता है जो कि बाइबल के अनुसार उस दिन जीसस फिर से जिंदा हो गए थे. इसे "रिसरेक्शन" भी कहा जाता है. इस घटना के बाद जीसस को लोग मानने लगे और यहीं से शुरू हुआ क्रिश्चियनिटी के विस्तार और प्रसार का युग.
इसमें जीसस की महत्ता और महानता तो हमें माननी ही पड़ेगी, साथ ही जीसस के इस बलिदान के प्रति कृतज्ञ होने वाले उनके फॉलोअर्स को भी उसी महान नजरिए से देखा जाना चाहिए. क्योंकि दुनिया में समाजशास्त्र का एक नियम है कि कोई कितना भी महान कार्य क्यों ना कर ले, अगर समाज या समाज का कोई भाग उसे endorse नहीं करता है तो उस महान कार्य को आने वाली पीढ़ियां याद भी नहीं रखती हैं, उनका गुणगान तो बहुत दूर की बात है.
यह बात हम इसलिए कह रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट को जितनी यातना दी गई थी अगर उसकी तुलना भारत में सिख गुरुओं और अनेक हिंदू राजाओं से की जाए तो हम पाएंगे कि इन लोगों का बलिदान उनसे हजार गुना अधिक है. धन्य है यूरोप और पश्चिम के लोग और धिक्कार है इन मतलबी और मौकापरस्त भारतीयों पर जिन्होंने उन सब महान लोगों को भुला दिया जिन्होंने इसी धरती मां और इसी सनातन धर्म के लिए अपनी बोटी-बोटी कटवा दी मगर इस्लाम कबूल नहीं किया.
बात राजा दाहिर से शुरू होती है जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद के परिवार वालों कि उनके खून के प्यासे उनके ही अरब लोगों से रक्षा की थी. पर कुछ ही वर्षों बाद मीर कासिम ने 712 ईसवी में दाहिर के साम्राज्य जो आज का अफगानिस्तान है पर हमला किया और बेरहमी से उन्हें मार दिया.
आपको क्या लगता है कि महमूद गजनबी गजनी से गुजरात तक आया और सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करके अपने साथ सिर्फ सोना-चांदी ले गया था? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो यह आपकी गलतफहमी है और इससे पता चलता है कि आपकी शिक्षा ही गलत है!
दरअसल गजनवी ने सोमनाथ तक पहुंचने में हजारों हिंदुओं का कत्ल किया था और उस पवित्र मंदिर को भी पुजारियों, पंडो और धर्मावलंबियों के खून से धोया था. वापस जाते समय वह अपने साथ सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात के साथ-साथ यहां की सैकड़ों युवतियों को भी ले गया था जिन्हें लूट के माल के साथ अपने लोगों में बांट लिया था.
मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की कहानी तो सबको मालूम है कि कैसे मोइनुद्दीन चिश्ती के बुलावे और मदद पर गौरी ने चौहान पर हमला किया और 16 बार चौहान के हाथों हारने पर जिंदा वापस चला जाता था क्योंकि राजपूतों का यह कायदा था कि पीठ पर या भागते हुए पर वह कभी वार नहीं करते थे. पर 17vi बार जैसे ही गौरी को मौका लगा, उसने सबसे पहले पृथ्वीराज की आंखों में गर्म सलाखें डालकर उन्हें अंधा कर दिया. इसी दौरान महारानी संयोगिता पर भी उसी स्थान पर अत्याचार हुआ जहां पर आज अजमेर वाली दरगाह है और पूरे देश से हिंदू माथा टेकने जहां जाते हैं. वहीं पर राजकुमारी बेला को भी पकड़ लिया गया और उसे गौरी अपने साथ ले गया था .मोइनुद्दीन चिश्ती को उसी स्थान पर किसने मारा और क्यों मुस्लिम ऐसा कहते हैं कि चिश्ती ने इस्लाम की राह में अपनी कुर्बानी दी थी, इस पर पिछले कुछ वर्षों में काफी कुछ कहा जा चुका है. सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है, इसलिए इस शो में हम उस पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाल रहे हैं.
राजा हेमू अपने साथियों द्वारा धोखे के कारण अकबर से हार गया और उस अकबर को जिसे हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने महान बताया है, हाथ पैर बंधे हेमू को भरे दरबार में बेरहमी से मार दिया. हेमू को अकबर ने तड़पा-तड़पा कर मारा था. उस समय उसकी उम्र सिर्फ 14 वर्ष थी और उसका उद्देश्य था गाजी की उपाधि हासिल करना. गाजी क्या होता है? इस पर आप लोग स्वयं गूगल सर्च कर लीजिए क्योंकि काफिर को मारने वाली परिभाषा अगर हम बताएंगे तो काफी समय इसमें भी लग जाएगा.
अब तक हमने जिस क्रूरताा की बात की है, वह सब फीकी पड़ जाएगी जब हम सिख गुरुओं को दी गई यातनाए के बारे में सुनेंगे.
शुरुआत करते हैं हम पांचव गुरु गुरु अर्जुन देव से, जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने स्वयं तड़पा-तड़पा कर मारा था. 1606 ईस्वी में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनको 5 दिन तक इस कदर की यातनाएं दी गई थी कि पढ़ने और सुनने वालों की रूह तक कांप जाए. उन्हें तांबे के बर्तन में बैठाकर उसमें खोलता हुआ पानी डाला गया था, पूरे शरीर पर फफोले पड़ गए थे पर गुरु के चेहरे पर चिकन नहीं आई थी. इस पर लाल गरम रेत उनके सर पर से डाली गई और बाकी शरीर खोलते पानी में ही रहने दिया. उन्हें गर्म तवे पर बैठाया गया और आग उसके नीचे से तेज की गई. गुरुजी का बहुत बुरा हाल हो चुका था पर इसके बाद भी उन्होंने ना तो इस्लाम स्वीकार किया, ना ही जहांगीर के सामने सर झुकाया. पांचवें दिन गुरु जी ने कहा कि उन्हें रावी नदी में स्नान करना है जिस पर जहांगीर ने इसलिए हां कर दी थी क्योंकििि उसे लगा की जले हुए शरीर के नदी के पानी में जाने पर और कष्ट होगा. सनातन का वह महान रक्षक नदी में गया और प्रभु के चरणों में वहीं पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
जो गुरु अर्जन देव के साथ जहांगीर ने 1606 ईस्वी में किया था, वही कार्य गुरु तेग बहादुर के साथ औरंगजेब ने 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक मैं किया था दरअसल औरंगजेब ने कश्मीरियों को इस्लाम अपनाने के लिए 1669 में आदेश दिया था और कहा था कि अगर वह इस्लाम नहीं अपनाएंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा. इस पर वह गुरु तेग बहादुर से मिले और उन से विनती की कि उन्हें बचाएं. इस पर 25 मई 1675 को गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के सामने कश्मीरियों से यह शर्त रखवाई की अगर गुरु ने इस्लाम कबूल कर लिया तो हम सारे कश्मीरि भी इस्लाम कबूल कर लेंगे.
इसके बाद गुरु दिल्ली के लिए निकल पड़े. 27 जुलाई 1675 को नूर मोहम्मद खान ने उन को बंदी बना लिया और 9 नवंबर को काजी ने उनके साथी भाई दयालदास को खोलते पानी में डलवा दिया और कहा कि यह सब गुरु तेग बहादुर के सामने ही होगा. 11 नवंबर को उन के एक और साथी भाई मती दास के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और तीसरे साथी भाई सती दास को rui में ही में लपेट कर आग के हवाले कर दिया. 21 नवंबर को गुरु तेग बहादुर को भी शहीद कर दिया गया पर अंतिम सांस तक उन्होंने इस्लाम कबूल नहीं किया और इस तरह से कश्मीर में सनातन की उन्होंने अपने प्राण देखकर रक्षा की.
इस शो में हमने आपको भारतीय इतिहास में सैक्रिफाइस यानी बलिदान कि सिर्फ 6 घटनाओं के बारे में बताया है पर हमारा इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है. हमारा उद्देश्य जीसस के महत्व को कम करना नहीं है पर हम यहां के लोगों को यह बताना चाहते हैं कि जीसस से कई गुना यातनाएं हमारे महापुरुषों ने सिर्फ धर्म की रक्षा के लिए सही हैं.
सीखो ईसाइयों से कि वे जीसस के लिए अपना सब कुछ लुटा सकते हैं और एक आप हैं कि इस शो को भी पूरा देखने में आपको कष्ट होगा, सब कुछ न्योछावर करना और उन महापुरुषों का कृतज्ञ होना तो बहुत दूर की बात है
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