सरकार ने हमें कोरोना वायरस से युद्ध के चलते सिर्फ घर में रहने को ही कहा है, वह भी हमारी ही भलाई के लिए पर जरा आप उन पुलिस वालों और मेडिकल इमरजेंसी में लगे लोगों के बारे में सोचिए कि उन्हें सारे खतरे के बावजूद फील्ड में रहना पड़ता है और इस दौरान ना तो वे अपने बच्चों से मिल पाते हैं, ना ही उन्हें गले लगा पाते हैं।
ऐसे में हमको अपने आप को खुशनसीब समझना चाहिए कि हमें अपने बच्चों के साथ और अपने परिवारों के साथ आराम से रहने का मौका तो मिल रहा है। इस बारे में इंदौर जिले के राऊ थाने के प्रभारी दिनेश वर्मा के विचार जिन्हें पढ़कर आपको लगेगा कि कितनी बड़ी लड़ाई वे लोग लड़ रहे हैं बिना अपनी जान की परवाह करते हुए। तब शायद आपको लॉक डाउन के दौरान घरों में रहने की हिदायत की कीमत समझ आएगी: -
दोस्तो करीब 10 दिनों के बाद आज यूनिफॉर्म , टॉवल चेंज करने घर गया गेट के पास ही पूर्व से लगी टेबल कुर्सी पर बैठ गया बेटी आरना 7 वर्ष और बेटा अदम्य 15 वर्ष को दूर से ही देखा , पत्नी ने मनपसंद दाल चावल खिलाया ,बडा भावुक पल था बेटी को गले लगना था लेकिन समझाने पर मान गई लेकिन उसकी शर्त थी कि वह भाई के गले लगेगी लेकिन मैं उसे प्यार से दूर से बात करूंगा जिससे उसे मेरे पास होने का अहसास हो , सबने हिम्मत से काम लिया बेटी ने खुद की बनाई पेंटिंग दिखाई जो उसने मेरे कैनवास कलर से बनाई थी और बेटे ने बताया वो मम्मी से खाना बनाना सीख रहा है और दीवार पर पंच मारकर हाथों को मजबूत कर रहा है मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस दोनों भाई बहन कर रहे है , पत्नी सिर्फ मेरी चिंता में घुली जा रही है जूनी इंदौर टी आई के पॉजिटिव आने से घबराई है उसे दिलासा दी और 2 घंटे में वापस आ गया फिर अपने कार्य स्थल पर , हम लड़ेंगे हम जीतेंगे के इरादे के साथ👊🏻👊🏻👊🏻✨✨🙏🏻
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