कोरोना महामारी के दौर में समाज के उजले पहलू आये सामने- वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल

कोरोना ने समाज में मौजूद अच्छे और बुरे दोनों चेहरों को उजागर कर दिया है। एक तरफ वे लोग हैं, जो उनकी मदद के लिए आई स्वास्थ्य विभाग की टीम पर थूकते हैं , पत्थर बरसाते हैं तो दूसरी तरफ वे लोग हैं  जो कोरोना के कारण घर से नहीं निकल पा रहे हैं और उसी वजह से दो वक्त की रोटी भी एक मसला है, उन लोगों के राशन-पानी की मुक्त हस्त से व्यवस्था कर रहे हैं । कुछ लोगों के पास राशन खरीदने के पैसे तो जैसे-तैसे हैं, लेकिन किराना दुकानों के भी शटर गिरे होने के कारण वे खरीदारी नहीं कर पा रहे। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मजबूरीवश या मजदूरी के लिये इंदौैर में थे, लेकिन लॉक डाउन में चाह कर भी अपने मूल घरों को नहीं लौट पाये। इनके सामने भी राशन-पानी की समस्या थी। ऐसे लोगों की मदद के लिये एक बार फिर इंदौर के दानदाता,सेवाभावी लोग सामने आये। ये लोग निजी और संस्थागत तौर पर पहले दिन से ही मोर्चा संभाले हुए हैं।
       इंदौर में आम दिनों में समाज सेवा की समृद्ध परंपरा रही है। कार्यक्रमों की भी भरमार यहां रहती है। भोजन-भंडारे तो जैसे इंदौर की पहचान है। एक तरह से 365 दिन कोई न कोई जलसा, लंगर, सामूहिक भोज के आयोजन होते रहते हैं। अब तो शादी समारोह में 5 से 10 हजार लोगों का खाना हो जाता है। तब बहुत स्वाभाविक है कि मानवता पर संकट के समय में लोग मदद के लिये आगे आयें। कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन ने जब लोगों को घरों में बंद कर दिया और उनके सामने खाने, नाश्ते, चाय तक की समस्या खड़ी हो गई, तब अनेक लोगों ने इनके मन में उम्मीदों के दीये जगमगाये और उस रोशनी से खुद को दूर रखा। याने उसके झंडे गाडऩे का दिखावा नहीं किया।
   इस पूरे मामले में आशा कंफेक्शनरी का जिक्र जरूरी है। इसके संचालक श्रीमती आशा दरियानी व उनके बेटे दीपक उल्लेखनीय सेवा कार्य कर रहे हैं। वे लॉक डाउन की शुरुआत से भोजन पैकेट तैयार कर जरूरतमंदों के बीच पहुंचा रहे हैं। शुरुआत 10 हजार पैकेट से कर अब यह संख्या 15 हजार पैकेट प्रतिदिन पर पहुंच गई है। इसके लिये उनकी सांवेर रोड स्थित फैक्टरी पर स्थित भोजनशाला का ही उपयोग हो रहा है। उनके संस्थान में नियमित रूप से रोजाना 14 सौ श्रमिक व कर्मचारी दोनों वक्त का भोजन नि:शुल्क प्राप्त करते हैं। उसी जगह अब कोरोना प्रभावित लोगों के लिये भोजन सामग्री तैयार होकर वितरित हो रही है।
    दीपक दरियानी इस सारी व्यवस्था को संभालते हैं और आशाजी उनका मार्गदर्शन करती हैं। एक महिला रसोई संबंधी व्यवस्थायें यूँ  भी बेहतर तरीके से संभाल सकती है। एक उद्यमी महिला का इस काम को देखना सोने पर सुहागे जैसा है, जहां हर चीज नपी-तुली होती है। इस पुण्य काम में इंदौर कंफेक्शनरी एसोसिएशन भी सहयोग कर रहा है। उनके कार्यकर्ता भी आकर सेवा कार्य करते हैं। इस रसोई से 25 मार्च  से 10 हजार पैकेट रोज बनने का काम शुरू हुआ था, जो मांग के साथ बढक़र अब 15 हजार पैकेट प्रतिदिन हो चुका है।
   इतनी बड़ी तादाद में भोजन सामग्री तैयार करना मामूली काम नहीं होता। इसके लिये उतनी मात्रा में कच्चा राशन भी लगता है, जिसे पहले से संग्रहित कर रखना होता है। इतने पैकेट के लिये अनुमानित रूप से 15 क्विंटल आटा, 7 क्विंटल सब्जी, 3 क्विंटल तेल, एक क्विंटल मिर्च मसाले की खपत रोजाना हो रही है। दुकान बंदी के दौर में इतनी सामग्री जुटाना भी डेढ़ी खीर होता है।
     दीपक दरियानी ने फर्श से अर्श का सफर किया है। उनकी माताजी ने श्रमिक बस्ती नंदानगर में 10 बाय 15 के कमरे में रहते हुए घर पर चाकलेट बनाने का कुटीर उद्योग प्रारंभ किया था। खुद दीपक 9 बरस की उम्र से कारोबार में आ गये थे और मां से कारोबार की बारीकियां सीखते हुए देश की प्रमुख कंफेक्शनरी इकाई के स्वामित्व तक पहुंचे हैं। घनघोर गरीबी देखने की वजह से मां-बेटे के मन में परोपकार की भावना हमेशा बनी रही। इसीलिये जब फैक्टरी भी प्रारंभ की तो श्रमिक हितों को कभी अनदेखा नहीं किया। उनके यहां काम करने वालों के दो बच्चों की शिक्षा, भविष्य निधि, कर्मचारी बीमा का लाभ जैसी सुविधाओं के साथ दोनों वक्त का भोजन भी वे नि:शुल्क देते हैं, जो देश की कम ही इकाइयों में मिलता होगा। उनके यही जज्बात कोरोना पीडि़तों की मदद के लिये भी काम आये और वे इसमें जुट गये। उनके यहां से 5 हजार पैकेट पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्यकर्मी के लिये जाते हैं तो 10 हजार पैकेट नगर निगम लेकर जरूरतमंदों तक पहुंचाता है। सबसे बड़ी बात ये भोजन पैकेट पूरी शुद्धता के साथ तैयार होते हैं।
   इंदौर में किसी तरह के सेवा कार्यों का उल्लेख हो और क्षेत्र क्रमांक 2 के भाजपा विधायक रमेश मैंदोला का जिक्र न हो , ऐसा संभव नहीं । इलाके के लोग उन्हें देवदूत मानते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि जिस तरह से दानवीर कर्ण के दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था, वैसा ही हाल रमेशजी का है। रमेश मैंदोला के बारे में कहा जाता है कि वे यह भी नहीं देखते कि मदद चाहने वाला उनके इलाके का है या नहीं । वे न तो किसी पर नाराज होते हैं, न इनकार कर पाते हैं। कई बार वे व्यक्ति के चले जाने के बाद किसी को उसकी मदद के लिये कह देते हैं। वे सातों दिन, बारहों महीने जनसेवा में लगे रहते हैं। कैलाश विजयवर्गीय के बाद इंदौर में वास्तविक जननेता के तौर पर रमेश मैंदोला ही याद किये जाते हैं। यह बहुत स्वाभाविक भी है, क्योंकि कैलाश विजयवर्गीय उनके राजनीतिक गुरु और बाल सखा जो हैं। राजनीति का जो तरीका कैलाशजी का रहा, ठीक उसी लीक पर रमेशजी चल रहे हैं। कैलाशजी का एक ही सूत्र है, जो आये,उसकी हर संभव मदद करें। कैलाशजी के पहले महू जाने, फिर राष्ट्रीय राजनीति में जाकर राष्ट्रीय महासचिव बनने पर रमेशजी ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाल रखी है। आलम यह है कि सुबह रमेशजी के जागने से पहले लोग उनके घर पहुंचना शुरू कर देते हैं, जो सिलसिला रात में देर तक तब भी चलता रहता है, जब वे घर पर नहीं होते हैं। इस वक्त भी कैलाश विजयवर्गीय के मार्गदर्शन में रमेश मैंदोला ने इलाके में न्यूनतम दस जगह पर लंगर की तरह व्यवस्था कायम की हुई है। निरंजनपुर गुरुद्वारे, सुखलिया चौराहे, तीन पुलिया चौराहे, नंदानगर अन्न क्षेत्र, बास्केट बॉल कॉम्प्लेक्स आदि जगह पर सूखे अनाज और भोजन पैकेट का वितरण जारी है। रोजाना करीब 20 हजार लोगों की व्यवस्था इन स्थानों पर हो रही है, जो शहर में सबसे अधिक है।
   कुछ इसी तरह के सेवाभाव से प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता उमेश शर्मा लगे हुए हैं। उन्होंने लॉक डाउन में 2 अप्रैल से तीन वार्ड क्रमांक 55,63 व 64 के लोगों के लिये भोजन पैकेट का वितरण प्रांरभ कर दिया था। शुरुआत 5 हजार पैकेट से की गई थी। बड़ी बात यह है कि इसे भाजपा के स्तर पर न करते हुए 5-7 मित्रों के साथ किया और मदद के लिये फेस बुक, सोशल मीडिया को जरिया बनाया। नतीजा यह हुआ कि प्रदेश व देश के भी अनेक स्थानों से उनके पास मदद पहुंचना प्रारंभ हो गई। उनके खाते में लोग पैसे डाल देते हैं । शहर से भी इसी तरह से सहायता मिल रही है।
   वे बताते हैं कि भोजन सामग्री बनाने में रोजाना 7 क्विंटल आटा, साढ़े तीन क्विंटल सब्जी, सवा सौ किलो तेल लगता है। इसे बनाने के लिये 16 हलवाई और 30 महिलायें लग रही हैं। ये महिलायें उन्हीं मोहल्लों की हैं, जो कोई पारिश्रमिक नहीं लेती। सुबह 6 से शाम 6 बजे तक वे काम करती हैं और जाते वक्त घर के लिये इन्हें 10-10 पैकेट भोजन के दे दिये जाते हैं जो इनके परिवार के लिये होते हैं। 14 अप्रैल को जब लॉक डाउन बढ़ा दिया गया, तबसे साढ़े 6 हजार पैकेट प्रतिदिन लग रहे हैं। उमेश शर्मा बताते हैं कि उन्हें कांग्रेस के अनेक नेताओं ने आर्थिक मदद की, क्योंकि वे इस काम को देख चुके हैं। मदद का जज्बा इस तरह है कि एक बच्चे की मुंह दिखाई के ढाई हजार रुपये उनके परिजन दे गये तो किसी ने मृत्यु भोज न देते हुए उस पर खर्च होने वाली रकम भोजन वितरण के लिये दे दी ।
    इंदौर के लोगों की यही खासियत उन्हें अन्य से अलग करती है। कुछ लोग बिना नाम जाहिर किये भी मदद के लिये हमेशा तैयार रहते हैं। अपने इलाके में भोजन वितरण का काम कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला भी कर रहे हैं। वे भी अप्रैल के प्रारंभ से 15 हजार पैकेट वितरित कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिये अपने विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 1 को चुना है। इसके 4 जोन के 17 वार्ड में उनकी टीम यह काम देख रही है। कुछ पैकेट नगर निगम को भी दिये जाते हैं, लेकिन ज्यादातर वे ही बांटते हैं। रोजाना करीब 15 क्विटंल आटे, 10 क्विटंल सब्जी, 35 डिब्बे तेल से ये भोजन सामग्री तैयार करने में रसोइये समेत करीब सौ लोगों की टीम सुबह से शाम तक लगी रहती है। वे भी अपने खर्च से इस पूरी व्यवस्था को संभाले हुए हैं। संजय शुक्ला वैसे भी अलग-अलग मौकों पर अपने इलाके में भोजन भंडारे करते रहते हैं। इस बार भी उम्मीद थी कि वे जरूरतमंदों के लिये आगे आएंगे और वे उस पर खरे उतरे।
  इसके अलावा अग्रवाल समाज की ओर से अरविंद बागड़ी ने कमान संभाल रखी है। वे भी उन लोगों के बीच भोजन पैकेट प्रदाय कर रहे हैं, जो रोज कमाकर रोज खाते हैं। अन्य समाज भी सीमित दायरे में रहकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। अनिल भंडारी सहायता संस्था की ओर से वैसे भी प्रतिदिन एम वाय व अन्य 5-7 अस्पताल में मरीजों के सहायकों के लिये भोजन की व्यवस्था करते आ रहे हैं। इस समय वे प्रशासन को औसत 5 हजार पैकेट प्रतिदिन दे रहे हैं। इसी के साथ वे 5 वेंटीलेटर व पीपीई किट भी दे चुके हैं।
  इस तरह देखें तो इंदौर में सेवा कार्यों की समृद्ध पंरपरा अभी-भी जारी है, वह भी तब जब प्रशासन ने पता नहीं क्यों समाजसेवियों और संस्थाओं को इस कार्य से वंचित कर रखा है, जबकि यह पूरी व्यवस्था इन्हीं के सुपुर्द कर दी जाती तो प्रशासन और अधिक मुस्तैदी से कोरोना के संक्रमण को रोकने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था।


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