एक जर्मन महिला, साथ में एक स्पेनिश पुरुष दोनों रह रहे कालाकुंड के जंगलों में, किसी अथॉरिटी को खबर ही नहीं

 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भगोरा  की टीम ने  ग्राम लोधिया में ठहरे दो विदेशी नागरिकों की सूचना मिली यह नागरिक 30 मार्च 2020 से इंदौर आए थे जिसमें एक महिला जर्मन व्  पुरुष  स्पेन का नागरिक है।


दोनों लोधिया के जंगल में अपना कैंप लगाकर 21 मार्च से कालाकुंड पंचायत में रह रहे थे। सूचना मिलने के बाद कोरोना संक्रमण के संबंधित सर्वे टीम ने उन दोनों की जानकारी ली और उनकी जांच की जिसमें यह पता चला कि दोनों लोग 2 माह पहले इंदौर में आए थे।


उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की टीम को बताया कि वे भारतीय जीवन शैली के आदिवासी पहलुओं पर रिसर्च करने के लिए यहाँ आए हैं। वे 21 मार्च से लोधिया के  जंगल में अपना कैंप लगाकर रह रहे हैं।


टीम ने उनकी प्राथमिक जांच की व उनसे 20 दिन की जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि हम पूरी तरह से स्वस्थ हैं। ना खांसी है ना सर्दी है ना किसी तरह की कोई तकलीफ है तब भी उन्हें डॉक्टर ने सलाह दी कि आप सोशल डिस्टेंशिग का पालन करें। यह कार्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भगोरा के प्रभारी मेडिकल ऑफिसर गोपाल प्रसाद तिवारी द्वारा किया गया।


देखने में तो हम सबको यह एक साधारण सी खबर लग रही है जिसमें एक विदेशी कपल भारत के आदिवासी इलाके के एक जंगल में आकर रुका और यहां आकर उसने आदिवासी संस्कृति पर अपनी रिसर्च की। और फिर एक दिन महीने- दो महीने रुकने के बाद वापस चला गया।


लेकिन अगर इस खबर की गहराई को देखा जाए और कोरोनावायरस को लेकर देश और दुनिया के वर्तमान परिदृश्य को देखा जाए तो समझ में आएगा कि यह खबर एक साधारण सी खबर नहीं है। दरअसल जैसा हम जानते हैं कि कोरोनावायरस नाम की बीमारी भारत में विदेशियों से या विदेशों से आने वाले लोगों के माध्यम से पहुंची है और फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर बार-बार एक बात चल रही है कि


"गलती पासपोर्ट की थी और सजा मिली राशन कार्ड को"


इसका मतलब यह होता है कि पासपोर्ट जो लोग रखते हैं ये वो लोग होते हैं, विदेशों में जिनका आना जाना होता है या फिर वे विदेशों में काम करते हैं। ऐसे लोग जो विदेशों में काम करते हैं या जिनका विदेशों में आना जाना होता है वे लोग इस बीमारी को अपने साथ लाए और इस देश में फैला दिया और उसका नतीजा यह रहा कि भारत सरकार को और सारी प्रदेश सरकारों को अपने-अपने क्षेत्रों में लाँकडाउन या कर्फ्यू लगाना पड़ा जिसके कारण गरीब आदमी जो रोज कमाता है, रोज खाता है, ऐसे व्यक्ति को इसकी सजा मिली।


अगर हम इस बात पर गौर करें तो यह मामला बहुत ही सीरियस लगेगा क्योंकि 2 विदेशी अपने यहां सुदूर आदिवासी अंचल में एक जंगल में आकर रुक गए और ना तो उस क्षेत्र के वन अधिकारी को पता है, ना ही डीएफओ इंदौर को पता है।


साथ ही किसी भी सरकारी अधिकारी को इस बात की जानकारी नहीं है, यह अपने आप में एक बहुत ही बड़ी चिंता का कारण है और इंटेलिजेंस का फेलियर भी।


आश्चर्य की बात तो तब होगी जब सारी सरकारी मशीनरी इस गांव की तरफ और उस जंगल की तरफ दौड़ेगी जब यह खबर अखबारों में सुर्खियां बनेगी। यहां सोचने वाली बात यह है कि इतना बड़ा प्रशासनिक तंत्र इतनी छोटी सी बात को समय पर नहीं जान पाए तो उसका पूरा का पूरा तंत्र विफल होता हुआ दिखता है। क्योंकि किसी चौराहे पर खड़े पुलिसकर्मी को बिना हेलमेट या बिना सीट बेल्ट लगाए कोई निकल जाए तो पुलिस इस चौराहे पर नहीं तो अगले चौराहे पर पकड़ ही लेती है। पर जो देश हित का मामला है, देश की सुरक्षा का मामला है और देश की जनता की सुरक्षा का मामला है, उसमें इस तरह की घोर लापरवाही कहां तक उचित है। इस पर हम सबको मिलकर विचार करना चाहिए।




 


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