स्वस्तिक का अर्थ और महत्व - धर्म, संस्कृति, ज्योतिष और वास्तु में उपयोग - सभी धर्मों और संस्कृतियों ने इसके महत्त्व को पहचाना - फिर हम क्यों भूल जाएं?

  


 1. अर्थ :

 स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए, किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।' इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' शब्द की निरुक्ति है - 'स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है।


 2. स्वस्तिक का स्वरूप, विलक्षणता और परम्परा :

 स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ध्वज में यही 'वामावर्त स्वस्तिक' अंकित था। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णुकी कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल- प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है।

 

 3. गहराई में अर्थ, और महत्व :

 अक्सर हमने देखा ही है कि लोग अपने घर में, मंदिरों में, संस्थानों आदि में स्वास्तिक बनाते है. कुछ इसे अपने घर के दरवाजे पर बनाते है. हमने स्वास्तिक को हमेशा से ही देखा है, लेकिन क्या कभी इसके बारे में जानने की कोशिश की है ? शायद नहीं.!

 लेकिन आज हम आपको स्वस्तिक का मतलब के बारे में वो सभी बातें बताने जा रहे है जो आपको जानना जरुरी है. हमारे वेद और पुराणों में स्वास्तिक को धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता भगवान गणेश का प्रतिक माना गया है. वहीं सनातन धर्म में स्वास्तिक को परब्रह्म के समान माना गया है. स्वास्तिक संस्कृत के दो शब्द 'सु' और 'अस्ति' से मिलकर बना है जिसका मतलब होता है शुभ हो और कल्याण हो.

 वहीं, विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि स्वस्तिक चार पदार्थों हवा, वायु, जल और आग से मिलकर बना होता है जिसे 'गतिशील सौर' भी कहा जाता है. यह चिन्ह शांति और समृद्धि का प्रतिक होता है जिसे जर्मनी की 'नाज़ी पार्टी' ने तीन हजार सालों के लिए चुना है उनके झंडे पर आज भी स्वास्तिक देखा जा सकता है. स्वस्तिक पॉजिटिव एनर्जी और गुड लक का प्रतिक भी है. वहीं, बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को बुद्ध के पैरों के निशान के रूप में बताया गया है. स्वस्तिक के बारे में जरुरी बातें आप जान ही गए होंगे.

 

 4. सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत :

 अब तो विज्ञान भी स्वस्तिक, इत्यादि माँगलिक चिह्नों की महता स्वीकार करने लगा है। आधुनिक विज्ञान ने वातावरण तथा किसी भी जीवित वस्तु, पदार्थ इत्यादि के ऊर्जा को मापने के लिए विभिन्न उपकरणों का आविष्कार किया है और इस ऊर्जा मापने की इकाई को नाम दिया है- बोविस। इस यंत्र का आविष्कार जर्मनी और फ़्राँस ने किया है। मृत मानव शरीर का बोविस शून्य माना गया है और मानव में औसत ऊर्जा क्षेत्र 6,500 बोविस पाया गया है। वैज्ञानिक हार्टमेण्ट अनसर्ट ने आवेएंटिना नामक यन्त्र द्वारा 'विधिवत पूर्ण लाल कुंकुम से अंकित स्वस्तिक की सकारात्मक ऊर्जा को 100000 बोविस यूनिट' में नापा है। यदि इसे उल्टा बना दिया जाए तो यह प्रतिकूल ऊर्जा को इसी अनुपात में बढ़ाता है।

 

 5. ज्योतिष और वास्तु-शास्त्र में स्वास्तिक के कई प्रयोग भी बताये गए है जिन्हें करने से कई समस्याएं दूर होती है, दुःख तकलीफ कम होते है और धन, धान्य, सौभाग्य और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

 

 तो आइये जानते है स्वस्तिक का मतलब और ज्योतिष प्रयोग :

 i) पूजा करने में लिए :

 जब आप अपने घर के मंदिर में इष्ट देवता की स्थापना करें तो उससे पहले उस जगह पर स्वास्तिक बनाये, इससे देवता तुरंत प्रसन्न होते है और मन चाहा आशीर्वाद देते है.

 

 ii) मनोकामना पूर्ण करने के लिए :

 अगर आपकी इच्छा काफी समय से पूर्ण नहीं हो रही है तो किसी मंदिर में जाकर कुमकुम से उल्टा स्वास्तिक बना दे, इससे जल्द ही आपकी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी. मनोकामना पूर्ण होने पर उसी जगह पर सीधा स्वास्तिक बना दे.

 

 iii) व्यापार में लाभ के लिए :

 व्यापार में लाभ के लिए घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में गुरुवार के दिन गंगाजल से धोकर वहां हल्दी से स्वास्तिक बनाये और पूजा करें, इससे जल्द ही आपको व्यापार में लाभ मिलेगा.

 

 iv) स्वस्तिक चारों दिशाओं का प्रतीक :

 मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।

 

 v) सूर्य भगवान का चिन्ह :

 स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं।

 

 vi) बौद्ध धर्म में स्वास्तिक :

 हिन्दू धर्म के अलावा स्वास्तिक का और भी कई धर्मों में महत्व है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।

 

 vii) जैन धर्म में स्वास्तिक :

 वैसे तो हिन्दू धर्म में ही स्वास्तिक के प्रयोग को सबसे उच्च माना गया है लेकिन हिन्दू धर्म से भी ऊपर यदि स्वास्तिक ने कहीं मान्यता हासिल की है तो वह है जैन धर्म। हिन्दू धर्म से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का जैन धर्म में है। जैन धर्म में यह सातवं जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।

 

 viii) प्राचीन ग्रीस में :

 प्राचीन ग्रीस के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। पश्चिमी यूरोप में बाल्टिक से बाल्कन तक इसका इस्तेमाल देखा गया है। यूरोप के पूर्वी भाग में बसे यूक्रेन में एक नेशनल म्यूज़ियम स्थित है। इस म्यूज़ियम में कई तरह के स्वास्तिक चिह्न देखे जा सकते हैं, जो 15 हज़ार साल तक पुराने हैं।

 

 ix) लाल रंग ही क्यों ?

 यह सभी तथ्य हमें बताते हैं कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने में स्वास्तिक चिन्ह ने अपनी जगह बनाई है। फिर चाहे वह सकारात्मक दृष्टि से हो या नकारात्मक रूप से। परन्तु भारत में स्वास्तिक चिन्ह को सम्मान दिया जाता है और इसका विभिन्न रूप से इस्तेमाल किया जाता है। यह जानना बेहद रोचक होगा कि केवल लाल रंग से ही स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है?

 

 x) लाल रंग का सर्वाधिक महत्व :

 भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता है।

 

 xi ) शारीरिक व मानसिक स्तर :

 लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है। यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं।

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