सामाजिक माध्यम, समाज और सामाजिक समरसता पर महू के अंबेडकर विश्वविद्यालय ने किया राष्ट्रीय वेबीनार

 फेसबुक ट्विटर प्रॉफिट लेते हैं रिस्पांसिबिलिटी नहीं - एंबेसडर अशोक सज्जनहार

महू। सोशल मीडिया आज के संदर्भ में महत्वपूर्ण पावरफुल और प्रभावशाली माध्यम है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इसके नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता है। यह दो धारी तलवार है। यह बहुत पोटेंशियल है लेकिन हिंसा, द्वेष, अराजकता और विघटनकारी भी है। फेक न्यूज़ से अधिक नुकसान होता है इसके दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए रेगुलेशन की आवश्यकता है। फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म प्रॉफिट लेते हैं पर जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करते। युवा पीढ़ी इसमें बहुत समय दे रही है वह वर्चुअल ज्यादा और रियल कम होते जा रहे हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि भारत में बहुत विविधता है, अतः यहां पर प्रजातंत्र नहीं रह पाएगा और भारत यूनाइटेड नहीं होगा, पर इतिहास यह बताता है कि बाहर से आए लोग भी इसमें मिल गए, उक्त विचार अनेक देशों में राजनयिक रहे, श्री अशोक सज्जनहार ने सामाजिक माध्यम, समाज और सामाजिक समरसता राष्ट्रीय वेबीनार में व्यक्त किए। इसका आयोजन डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय और गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के संयुक्त तत्वावधान में डॉक्टर अंबेडकर वैचारिक स्मरण पखवाड़े के अंतर्गत किया गया था। कार्यक्रम के सह अध्यक्ष विद्यापीठ के कुल नायक राजेंद्र खेमानी ने कहा कि सामाजिक समरसता से पहले आर्थिक क्षेत्र में समरसता आएगी। आज संयुक्त कुटुंब में रहना बंद हो गया है, साथ रहेंगे ही नहीं तो समरसता का प्रश्न ही पैदा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का नियंत्रण दबाव से नहीं होगा मनुष्य को ही कम उम्र से बदलना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ब्राउज़, महू की कुलपति ने सामाजिक समरसता के लिए मानवीय दृष्टिकोण को अपनाने और वर्ण, रंग, जाति, लिंग आदि मानसिकता से मुक्त होने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि सामाजिक आचरण और सामाजिक व्यवहार अन्योनाश्रित है। परिवार का बढ़ा हुआ रूप ही समाज है। वेबीनार के पूर्व में सुप्रसिद्ध पत्रकार संत समीर ने कहा कि भारत में 40 करोड़ से अधिक लोग सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए इसके सकारात्मक नकारात्मक पक्ष को स्पष्ट किया और कहा कि आज सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ और असल न्यूज़ का भेद ही पता नहीं लगता है, कई बार फेक न्यूज़ असल न्यूज़ जैसी लगती हैं। फिर भी अखबारों से अधिक, लोगों को अभिव्यक्त करने का अवसर सोशल मीडिया से मिला है। प्रोफेसर प्रेमानंद मिश्रा ने कहा कि आज सेलिब्रिटी एजुकेटर हो गए हैं, स्पर्धी विलासी और वैभवित जीवन सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिष्ठित हो रहा है। सामाजिक पारिवारिक जीवन पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। डॉ आशीष द्विवेदी ने कहा कि सोशल मीडिया वन मैन आर्मी है इसमें बिना समझे तेजी से रिजेक्ट करने की प्रवृत्ति है। उन्होंने कहा कि सामाजिक मूल्यों को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कमजोर किया था लेकिन सामाजिक माध्यमों ने इसे नेस्तनाबूद कर दिया है। कला समीक्षक एवं सोशल वर्कर चिन्मय मिश्र ने कहा कि संविधान में अंबेडकर ने बंधुता शब्द को जोड़ा था। सोशल मीडिया आइसोलेशन में नहीं रहता है। यह प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ही बायप्रोडक्ट है तो। इसने भाषा, भाव और मूल्यों को क्षति पहुंचाई है। यह भड़ास निकाल लेने की जगह हो गया है। समाज और व्यक्ति पैरासाइट की तरह सोशल परिवर्तन नहीं कर सकते हैं उन्हें सीधे संघर्ष में उतरना होगा। विद्यापीठ के प्रोफेसर विनोद पांडे ने कहा कि समाज के प्रतिमान बदल रहे हैं, सहनशीलता कम हो रही है, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में कमी आ रही है।

राष्ट्रीय वेबीनार का संचालन एवं आभार प्रदर्शन डॉक्टर अंबेडकर विश्वविद्यालय महू के प्रोफेसर सुरेंद्र पाठक ने किया। वेबीनार में मीडिया संस्थानों के अध्यापक और विद्यार्थियों की उपस्थिति देखी गई। 
















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